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होलिका दहन का वैदिक, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

 वैदिक काल में इस पर्व को नवासस्येष्टि यज्ञ कहा गया। उस समय अधपके अन्न को यज्ञ में दान कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता था। इस अन्न को होला कहते थे। अतः इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।

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खेलत अवधपुरी में फाग, रघुवर जनक लली

होली हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। भारतीय संस्कृति का अनूठा संगम उनकी त्योहारों और पर्वो में दिखाई देता है। इन पर्वो में न जात होती है न पात, राजा और रंक सभी एक होकर इन त्योहारों को मनाते हैं। सारी कटुता को भूलकर अनुराग भरे माधुर्य से इसे मनाते हैं। इसीलिए होली को एकता, समन्वय और सदभावना का राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है।

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परंपरा, संस्कृति और सामाजिक समरसता का त्यौहार होली

होलिकोत्सव भारत में ही नहीं भारत की सीमा से बाहर विश्व के अनेक देशों में भी मनाया जाता है। भारत के सभी पड़ौसी देशों नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, सुरीनाम, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, ट्ररीनाड आदि देशों के साथ अमेरिका, फ्रांस ब्रिटेन जर्मनी आदि देशों में भी प्रवासी भारतीय होलिकोत्सव मनाते हैं। काठमांडू में तो यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है।

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सामाजिक समरसता और राष्ट्रभाव का प्रतीक तीर्थयात्राएं

इस महाकुंभ में पचास करोड़ से अधिक लोगों ने डुबकी लगा चुके हैं। सबने एक दूसरे का कंधा पकड़कर, एक दूसरे का सहयोग करके डुबकी लगाई। किसी ने किसी से जाति नहीं पूछी, अमीरी और गरीबी का भेद नहीं था, अधिकारी और सामान्य का भी भेद न था। सबकी एक ही पहचान “सनातनी हिन्दू”।

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ब्रजभूमि का अनूठा पर्व : फूलेरा दूज

फूलरिया दूज  या फ़ूलेरा दूज भारतीय संस्कृति और हिंदू परंपराओं में विशेष स्थान रखने वाला एक अद्भुत त्योहार है, जिसे मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है और इसे श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम व होली महोत्सव से जोड़ा जाता है।

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शिव तत्व की लोक जीवन में व्यापकता

लोक में शिव तत्व जीवन की सहजता, सरलता, और व्यापकता को दर्शाता है। वे एक ऐसे ईश्वर हैं जो आडंबर से दूर हैं, जो सबको स्वीकार करते हैं, जो सृजन, पालन और संहार तीनों को साधते हैं। लोकमानस में शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन और अस्तित्व के सत्य का प्रतीक हैं। यही कारण है कि शिव हर गाँव, हर संस्कृति, और हर व्यक्ति के हृदय में बसते हैं।

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