\

देवी दुर्गा की आराधना और ऋतु परिवर्तन का पर्व नवरात्रि

नवरात्रि को कृषि और ऋतु परिवर्तन के संदर्भ में भी देखा जाता है। यह समय फसल की कटाई और नई फसल की बुवाई का होता है। शारदीय नवरात्रि विशेष रूप से शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है, जब मौसम बदलता है और धरती पर नई ऊर्जा का संचार होता है।

Read more

शक्ति उपासना का पर्व नवरात्र

छत्तीसगढ़ में शिवोपासना के साथ शक्ति उपासना प्राचीन काल से प्रचलित है। कदाचित इसी कारण शिव भी शक्ति के बिना शव या निष्क्रिय बताये गये हैं। योनि पट्ट पर स्थापित शिवलिंग और अर्द्धनारीश्वर स्वरूप की कल्पना वास्तव में शिव-शक्ति या प्रकृति-पुरूष के समन्वय का परिचायक है।

Read more

पितरों के माध्यम से प्रकृति की अनंत ऊर्जा से जुड़ने और आदर्श समाज निर्माण का संदेश

पितृमोक्ष अमावस्या शरद ऋतु के समापन और हेमन्त के आरंभ की तिथि है। ऋतुओं के इस मिलन से मौसम परिवर्तन

Read more

गृह शांति एवं व्यावसायिक सफ़लता के लिए सृष्टि के रचयिता भगवान विश्वकर्मा की पूजा उपासना

सृष्टि के निर्माता भगवान विश्वकर्मा किसी एक समाज के आराध्य देव नहीं हैं, वे सकल समाज के अराध्य हैं और उनकी पूजा सकल समाज को करनी चाहिए। प्राचीन काल में देवता सकल समाज के होते थे, वर्तमान में देवताओं को भी लोगों ने जातियों में बांट और बांध लिया। हम हिन्दू समाज में विघटन और संघर्ष का देख रहे हैं, उसका मुख्य कारण यही है।

Read more

वैश्विक संस्कृति में भगवान गणेश का प्रभाव एवं महत्व : विशेष आलेख

भगवान गणेश का वैश्विक संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी पूजा का स्वरूप और महत्त्व अलग-अलग संस्कृतियों में भिन्न हो सकता है, लेकिन उनका प्रतीकात्मक महत्व लगभग समान है—विघ्नहर्ता, बाधाओं को हरने वाले और ज्ञान, समृद्धि व सौभाग्य के दाता के रूप में।

Read more

गणपति के नाम और स्वरूप पुराणों से तांत्रिक पूजा तक

उपनिषद काल में भी गणपति की पूजा की परम्परा रही। गणपत्युपनिषद इसका प्रमाण है, जिसमें गणेश जी को कर्ता-धर्ता और प्रत्यक्ष तत्व कहा गया है। जिनके रूपों में साक्षात ब्रह्म व आत्मस्वरूप बताया गया है। स्मृति काल में भी गणेश पूजा का विधान रहा। नवग्रहों के पूजन के पूर्व गणेश की पूजा करने का निर्देश है। इनसे ही लक्ष्मी की प्राप्ति सम्भव होती है। पुराण युग में इस पूजा का उज्ज्वल रूप में उदय हुआ।

Read more