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भारतीय नव वर्ष का धार्मिक सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक महत्व

भारत में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का प्रारंभ माना जाता है। चैत्र मास सामान्यतः मार्च-अप्रैल के महीने में आता है, और इस समय देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है

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माँ दुर्गा के नौ स्वरूप और उनका आध्यात्मिक महत्व

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिन्दू नववर्ष या नव संवत्सर का आरंभ होता है ।जिसे भारत के विभिन्न राज्यों में जैसे महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक में उगादि, जम्मू कश्मीर में नवरेह तथा मणिपुर में साजिबु नोंगमा पंबा के नाम से जाना जाता है।

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विश्व शांति एवं समृद्धि के लिए हिंदुओं को एक करने का प्रयास करता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

वैश्विक अशांति के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारत में समरस और संगठित हिंदू समाज निर्माण का प्रस्ताव पास किया है। इस प्रस्ताव में भारत की प्राचीन संस्कृति के महत्व और राष्ट्र के विकास के लिए सनातन संस्कारों के पालन पर जोर दिया गया है। संघ के प्रयासों से सामाजिक समरसता, पर्यावरणीय जागरूकता और नागरिक कर्तव्यों की भावना बढ़ रही है।

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एकादशी व्रत एवं पापमोचनी एकादशी का महत्व

पापमोचनी एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्म-शुद्धि और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का अवसर भी प्रदान करती है। यह व्रत पापों से मुक्ति, मानसिक शांति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का साधन है। विधि-विधान से इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बना सकता है और मोक्ष के पथ पर अग्रसर हो सकता है।

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माता शीतला की उपासना और पौराणिक मान्यताएँ

शीतला सप्तमी एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्व है जो माता शीतला को समर्पित होता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत राजस्थान गुजरात और मध्य प्रदेश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा कर रोगों से मुक्ति और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

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छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी के दिन लट्ठमार होली

छत्तीसगढ़ में रंग पंचमी का त्योहार पारंपरिक उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार होली के पांच दिन बाद आता है और इसमें रंगों की धूम देखने को मिलती है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में इसे एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है, तथा इस दिन भी फ़ाग गाने एवं रंग खेलने की परम्परा दिखाई देती है।

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