हमारे नायक

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अमर शहीद क्रांतिकारी भगत सिंह

युवता के योग्यतम प्रतीक सरदार भगत सिंह के इस महान बलिदान और त्याग ने देश के जन मानस में आजादी की ऐसी तड़प पैदा कर दी, एक ऐसी क्रांति की अलख जगा दी कि परिणाम स्वरूप देश का हर व्यक्ति आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए, बलिदान होने के लिए स्वेच्छा से आगे आने लगा। भगत सिंह केवल एक नाम ही नहीं अपितु एक श्रेष्ठ विचारधारा हैं

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रानी हंसादेवी सहित नौ सौ क्षत्राणियों का अग्नि प्रवेश

सिवाणा का किला वीरता और बलिदान की अनेक गाथाओं का साक्षी है। 1308 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय सातलदेव सोनगरा और रानी हंसादेवे ने वीरता और स्वाभिमान की रक्षा हेतु जौहर और साका किया। लगभग दो वर्षों तक दुश्मन का सामना करने के बाद, सिवाणा की 900 महिलाओं ने जौहर किया और हजार सैनिकों ने अंतिम युद्ध लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की।

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पूर्ण एकाग्रता से लक्ष्य साधो : स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द ने बिना कुछ कहे उस युवक के हाथ से बन्दूक ली और एक के बाद एक लगातार बारह छिलके पर सटीक निशाना लगाया। सारे युवक आश्चर्यचकित हो सोचने लगे कि स्वामी निश्चित ही वे कोई बड़े निशानेबाज हैं। स्वामी जी उनकी मनःस्थिति भाँपकर बोले – ” मैंने अपने जीवन में कभी भी गोली नहीं चलाई है बन्धु । आज ये जो निशाना ठीक लगा है उसकी सफलता का रहस्य है- पूर्ण एकाग्रता । “

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एकात्म मानववाद और अंत्योदय के प्रणेता : पंडित दीनदयाल उपाध्याय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन और दर्शन भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे पंडित जी ने अपने जीवन में सामाजिक सेवा और राष्ट्र की एकता के लिए संघर्ष किया

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एकात्म मानव दर्शन : चतुर्पुरुषार्थ सिद्धांत को व्यवहारिक स्वरूप दिया था दीनदयाल जी ने

दीनदयाल उपाध्याय ने “एकात्म मानव दर्शन” के माध्यम से चतुर्पुरुषार्थ सिद्धांत को व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि समाज के विकास का आधार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के संतुलन पर होना चाहिए।

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24 सितम्बर 1932 क्राँतिकारी प्रीतिलता का अंग्रेजों से लड़ते हुए बलिदान

प्रीति लता वोददार का जन्म 5 मई 1911 को चटगाँव में हुआ। वे 24 सितंबर 1932 को अंग्रेजों के मनोरंजन क्लब पर बम फेंकने के दौरान घायल हुईं और शहीद हो गईं। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के प्रति वफादारी की शपथ लेने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उनकी डिग्री रोक दी गई।

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