\

आम, अमराई और वे बचपन के दिन

आजकल अंधड़ के मौसम में शाम को मैहर से सतना लौटते वक्त कभी-कभी धूल भरी तेज हवाओं के बीच से

Read more

नाना नानी हो तो नीम जैसे

नीम इतना परिचित और अपना है कि नीमला, नीबड़ा जैसे मैत्री वाली भाषा से भी बुलाया और बतलाया जाता है। है भी ठेठ गंवाई पेड़। गली का पेड़। गली की गांठ चौरे का पेड़। इसको पेड़ से ज्यादा अपना सगा ही माना जाता है। आत्मिक नीम! सेहरी का प्रहरी और घर का जर। रोग हर।

Read more

बचपन की शैतानियाँ

बचपन तो शैतानियाँ का दूसरा नाम है। हमारा बचपन भी हम चारों भाई बहनों की शैतानियों का मिला जुला रूप

Read more

गांव-गुलेल और पेड़ में गिट्टी

गांव के बच्चे गुलेल को न जाने ऐसा बिल्कुल सम्भव नहीं है। गुलेल का उपयोग सबसे पहले कहां हुआ? कौन इसका आविष्कारकर्ता है? इसमें पड़ने की बजाय हम गुलेल की वह यादें याद करना चाहते हैं, जहां आम, ईमली, बेर, जामुन, आंवला, गंगा-ईमली आदि तोड़ने के लिए उपयोग में लाते थे।

Read more

गाँव की यादें : कुछ तो है -कविता वर्मा

नरसिंगपुर जिले के छोटे से रेलवे स्टेशन गाडरवारा से चौदह किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव चीचली। सुबह चार बजे पहुँचती थी एकमात्र सीधी गाड़ी और रास्ते में दादी मुझे उठा कर कहती थीं, बेटा जरा स्टेशन का नाम तो पढ़ो कौन सा स्टेशन आया है।

Read more