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जीवन में आध्यात्मिकता ले जाती है परमात्मा तक

मानव जीवन में ईश्वर की अवधारणा सदियों से रही है, परंतु इसका वास्तविक स्वरूप क्या है? यह आलेख इस गहन प्रश्न पर एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यहाँ हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं, बल्कि हमारे भीतर निहित शक्ति का प्रतिबिंब है।

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पटरियों से परे जीवन के अनकहे सफर

मानव जीवन की यात्रा माँ के गर्भ से आरंभ होती है और जन्म के पश्चात इस लोक में आकर प्राणी जीवन की यात्रा सांसारिकता एवं संघर्ष के साथ ईश्वर द्वारा प्रदत्त सांसों के तारतम्य में जन्म से मृत्यु तक चलायमान रहती है। बस और रेल की यात्रा सभी करते हैं। परन्तु इन दोनों की यात्राओं में बहुत अंतर है।

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घिर घिर आये काले कजरारे मेघ : मनकही

मानसून आने का उल्लास आस बांधे उन किसानों की आखों से प्रगट होता है जो जेठ की तपती हुई धरती

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लेखक का लेखन कब मरता है ?

जब कलम किराये पर चढ़ जाती है, तो लेखन कमजोर पड़ जाता है। लेखक की कलम को जब और कहीं से मार्गदर्शन मिलता है, तो वे धीरे-धीरे लेखक मरने लगता हैं। उनकी आत्मा की प्रखरता और तेजस्विता समाप्त हो जाती है। शब्दों की शक्ति कमजोर हो जाती है, और विचारों में गहराई नहीं रह जाती।

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सनातन मूल्यों से समृद्ध होता भारत : एक नया युग

भारत जो किसी वक्त में सोने की चिड़िया रहा है जिसका किसी वक्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान

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अलख निरंजन शब्द की उत्पत्ति एवं सामाजिक आध्यात्मिक प्रभाव

अलख, अ+लख, जो दिखाई न दे, जो दृष्टिगोचर न हो। माने निराकार और निराकार ईश्वर को ही कहा गया है। निरंजन शब्द की उत्पत्ति अंजन शब्द में निर् प्रत्यय लगाने के बाद होती है। निर का अर्थ है बिना या रहित तथा अंजन का अर्थ है काजल या अंधकार। निरंजन का शाब्दिक अर्थ होता है “जो अंजन (काजल या अंधकार) से रहित हो। किन्तु इसका तत्वार्थ बहुत गहरा है।

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