धर्म-अध्यात्म

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उदार बनो और सेवा करो – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानन्द सच्चे कर्मयोगी थे। उन्होंने गरीबों के दुःख दूर करने के विशेष प्रयोजन के लिए जन्म लिया था और इसका उन्होंने अन्तिम श्वास तक अनवरत निर्वहन भी किया। वे कहते हैं- ” नर सेवा ही नारायण सेवा है।”

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लंका एवं अध्योध्या के बीच भगवान श्री रामचंद्र जी की अट्ठारह दिन की यात्रा

लंका विजय के बाद रामजी को अयोध्या लौटने में पूरे बीस दिन लगे। यह अवधि अनावश्यक विलंब या अपनी विजय का उत्सव मनाने की नहीं है अपितु रामजी द्वारा पूरे भारतवर्ष और प्रत्येक समाज को समरस बनाने की अवधि है

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चालिस वर्षों से मंचित हो रही है ग्राम तुरमा में रामलीला

जन-जन के हृदय में वास करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी की अद्भुत लीला के मंचन का इतिहास छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिले के भाटापारा तहसील के अंतर्गत तुरमा नामक गांव में देखने को मिला, जहां पर रामलीला का मंचन सन 1983-84 से अद्यतन होते आ रहा है।

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futuredधर्म-अध्यात्महमारे नायक

भारतीय समाज में एकता और समरसता के प्रतीक महर्षि वाल्मीकि

वाल्मीकि जी सही मायने में राष्ट्र जागरण और सामाजिक एकत्व के अभियान में सक्रिय रहे। उन्होंने रामायण के अतिरिक्त और भी काव्य रचनाएं तैयार की। भारतीय रचना शीलता जगत में गुरु वंदना के अतिरिक्त भगवान गणेशजी और माता सरस्वती के बाद बाल्मीकि जी की ही वंदना की जाती है। इसे भारतीय वाड्मय के किसी भी ग्रंथ रचना से समझा जा सकता है।

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futuredधर्म-अध्यात्मलोक-संस्कृति

आध्यात्मिकता और प्रकृति सौंदर्य का उत्सव शरद पूर्णिमा

भारतीय संस्कृति मे शरद ॠतु का महत्व यहाँ के जन जीवन में स्पष्ट रुप से परिलक्षित होता है। वर्षा के बीतने के पश्चात दशहरे एवं दीवाली का त्यौहार मनुष्य के जीवन में नव उल्लास एवं नव संचार लेकर आता है, जो जीवन क्षमता में वृद्धि करता है, क्योंकि प्रकृति उल्लास एवं उमंग का ही पर्याय है। प्रकृति हमें सह अस्तित्व के साथ जीना सिखाती है और वसुधा, वसुंधरा होकर चराचर जगत के जीवों के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देती है।

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छत्तीसगढ़ में दशहरा मनाने की अद्भूत परम्परा

रायगढ़ में मथुरा की नाटक मंडली आकर रामलीला का मंचन करती थी। छत्तीसगढ़ में रामलीला के लिए अकलतरा और कोसा बहुत प्रसिद्ध था। इसी प्रकार रासलीला के लिए नरियरा और नाटक के लिए शिवरीनारायण बहुत प्रसिद्ध था। टी.बी. की चकाचैंध ने रामलीला, रासलीला और नाटकों के मंचन को प्रभावित ही नहीं किया बल्कि समाप्त ही कर दिया है। यह एक विचारणीय प्रश्न है।

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