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चिराग पासवान आम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने को तैयार, दलित राजनीति से आगे बढ़ाने की रणनीति

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने रविवार को बिहार के आरा में आयोजित एक रैली में ऐलान किया कि वह आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। खास बात यह रही कि उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वे किसी आरक्षित नहीं, बल्कि सामान्य विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं। यह कदम उन्हें दलित राजनीति के दायरे से बाहर निकालकर एक व्यापक सामाजिक आधार तैयार करने की दिशा में माना जा रहा है।

जब उनसे पूछा गया कि क्या यह कदम मुख्यमंत्री पद की ओर इशारा करता है, तो चिराग ने स्पष्ट किया कि उनका मकसद केवल अपनी पार्टी की जीत की दर बेहतर बनाना है, जिससे एनडीए को मजबूती मिले।

पहली बार विधानसभा चुनाव, वह भी सामान्य सीट से

चिराग पासवान ने अब तक किसी भी विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया है। वे 2014 और 2019 में जमुई से और 2024 में हाजीपुर से लोकसभा सांसद रहे हैं। यदि वे इस बार सामान्य सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो यह उनके राजनीतिक करियर में एक नया मोड़ होगा।

हालांकि, पिछले दो दशकों के चुनावी आंकड़े बताते हैं कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के उम्मीदवारों को सामान्य सीटों से जीतने में खासी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बिहार में, 2004 के बाद से केवल पांच SC/ST उम्मीदवार ही सामान्य सीटों से विधानसभा चुनाव जीत पाए हैं।

सामान्य सीटों पर जीत – आंकड़ों की नजर में

2004 से अब तक लोकसभा में सामान्य सीटों से 5,953 SC/ST उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से केवल 62 विजयी हो पाए (1% से भी कम)। विधानसभा चुनावों में यह आंकड़ा 20,644 उम्मीदवारों का रहा, जिनमें से सिर्फ 246 ही जीत दर्ज कर पाए (1.19%)।

इनमें भी आदिवासी (ST) उम्मीदवारों की जीत की दर अनुसूचित जाति (SC) उम्मीदवारों की तुलना में बेहतर रही है। लोकसभा चुनावों में अब तक 47 ST उम्मीदवारों ने सामान्य सीटों से जीत दर्ज की है, जबकि केवल 15 SC उम्मीदवार सफल हुए हैं।

दलित नेताओं के लिए सामान्य सीटें – एक नई चुनौती

चिराग पासवान का यह निर्णय पार्टी के लिए एक साहसी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन उनके इस कदम की पृष्ठभूमि में चुनावी आंकड़े कुछ और कहानी बयां करते हैं। LJP, जिसने पहले भी SC/ST उम्मीदवारों को सामान्य सीटों से मैदान में उतारा है, को अब तक वहां से सफलता नहीं मिली है।

पार्टियों की भागीदारी और जीत का विश्लेषण

SC/ST उम्मीदवारों को सामान्य सीटों से चुनाव लड़वाने में सबसे आगे बहुजन समाज पार्टी (BSP) रही है, जिसने लोकसभा में ऐसे 600 उम्मीदवार खड़े किए। भाजपा और कांग्रेस ने क्रमशः 54 और 52 उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें भाजपा के 28 और कांग्रेस के 15 ही जीत सके। चौंकाने वाली बात यह है कि स्वतंत्र उम्मीदवारों की संख्या सबसे अधिक रही (3,284), लेकिन इनमें से केवल तीन ही जीत पाए – सभी लद्दाख से।

विधानसभा चुनावों में भी यही रुझान देखने को मिला है। BSP ने सबसे अधिक 3,210 SC/ST उम्मीदवार सामान्य सीटों से उतारे, जबकि भाजपा ने 295 और कांग्रेस ने 222 को। यहां भी अधिकांश जीत भाजपा और कांग्रेस के हिस्से में गई है।

उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़त

जहां एक ओर महाराष्ट्र, यूपी, तमिलनाडु जैसे बड़े राज्य उम्मीदवारों की संख्या में आगे हैं, वहीं जीत के मामले में असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश जैसे उत्तर-पूर्वी राज्य अव्वल रहे हैं। विधानसभा चुनावों में असम में 30, राजस्थान में 26 और सिक्किम में 22 SC/ST उम्मीदवारों ने सामान्य सीटों से जीत दर्ज की।

चिराग पासवान का सामान्य सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला, दलित राजनीति से आगे बढ़ने की रणनीति के तहत देखा जा रहा है। लेकिन देशभर के आंकड़े बताते हैं कि यह राह आसान नहीं होगी। यह निर्णय न केवल उनके व्यक्तिगत राजनीतिक कद की परीक्षा है, बल्कि यह देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या यह LJP (रामविलास) को बिहार की राजनीति में व्यापक जनाधार दिला सकता है।

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