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बिहार में घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, नीतीश सरकार ने दी नई अक्षय ऊर्जा नीति को रफ्तार

बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले, मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने राज्य के 1.67 करोड़ घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की घोषणा कर दी है। उन्होंने यह घोषणा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर की, साथ ही सार्वजनिक स्थानों और लोगों के घरों की छतों पर उनकी सहमति से सोलर प्लांट लगाने का प्रस्ताव भी दिया।

यह कदम राज्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को अक्षय स्रोतों से पूरा करने और बिजली की लागत को कम करने की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास माना जा रहा है। फिलहाल बिहार अपनी अधिकतम 8,500 मेगावाट बिजली मांग को मुख्य रूप से थर्मल प्लांटों और अन्य राज्यों से आयातित बिजली से पूरा करता है, जिससे राज्य पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है। 2024-25 में ही बिजली सब्सिडी पर राज्य सरकार ने लगभग ₹15,343 करोड़ खर्च किए हैं।

हाल ही में घोषित अक्षय ऊर्जा नीति 2025 के तहत सरकार ने 2030 तक 23 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। इस नीति के जरिए राज्य सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई रियायतें दे रही है — जैसे 100% SGST वापसी, 15 वर्षों तक बिजली कर में छूट, निश्चित टैरिफ, कार्बन क्रेडिट का लाभ और सिंगल विंडो क्लियरेंस।

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ऊर्जा विभाग के सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा, “हमारे पास 23 गीगावाट की मांग है और बिहार में निवेश करने वालों को अधिकतम रिटर्न मिलेगा।” जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने इस कदम को “वित्तीय योजना के साथ लिया गया दूरदर्शी निर्णय” बताया।

औद्योगिक विकास को नई गति

राज्य सरकार की यह ऊर्जा नीति बिहार की औद्योगिक नीति से भी जुड़ी हुई है, जिससे सस्ती बिजली मिलने पर उद्योगों को नई ऊर्जा मिलेगी। अब तक राज्य में ₹1.81 लाख करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं, जिनमें से ₹84,000 करोड़ की परियोजनाएं प्रतिबद्ध मानी जा रही हैं। अकेले एक पंप स्टोरेज परियोजना की लागत ₹36,000 करोड़ बताई जा रही है।

उद्योग विभाग के अपर मुख्य सचिव मिहिर कुमार सिंह के अनुसार, “टेक्सटाइल, चमड़ा और फूड प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहे हैं। वैश्विक व्यापार स्थितियों में हो रहे बदलाव का फायदा बिहार को मिल रहा है, खासकर रेडीमेड गारमेंट्स के क्षेत्र में।”

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उन्होंने कहा कि राज्य का प्रशिक्षित और किफायती श्रमिक वर्ग — खासकर लौटे हुए प्रवासी मजदूर — बिहार को प्रतिस्पर्धा में बढ़त दिलाते हैं। मुजफ्फरपुर, पटना, बेगूसराय और मधुबनी जैसे जिलों में उद्योगों की नई इकाइयां खुल रही हैं या पहले से मौजूद इकाइयों का विस्तार हो रहा है।

फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र में भी सरकार ने बदलाव की योजना बनाई है। सिंह के मुताबिक, “शाहाबाद जैसे कृषि-समृद्ध क्षेत्रों में भी कच्चा माल उत्तर प्रदेश में प्रोसेस होता है, जिसे बदलना ज़रूरी है।” उन्होंने कहा कि बिहार में मक्का उत्पादन अधिक और कीमतें कम हैं, जिससे पशु आहार निर्माण की संभावना काफी बढ़ जाती है।

मखाना प्रोसेसिंग और एथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में भी राज्य निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। सिंह ने बताया कि दक्षिण भारत और महाराष्ट्र की चीनी मिलें पानी की कमी से जूझ रही हैं, जबकि बिहार के पास पर्याप्त जल संसाधन हैं। हालांकि उन्होंने एथेनॉल उत्पादन के लिए केंद्र से कोटा बढ़ाने की मांग की है।

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इसके अलावा, सामान्य मैन्युफैक्चरिंग में भी राज्य ने हाल ही में नई प्रगति की है। “एक हालिया बायर-सेलर मीट में 20 देशों से 85 खरीदार पटना आए थे। पहली बार लुलु ग्रुप को 15 टन लीची का निर्यात किया गया,” उन्होंने बताया।

नीतीश कुमार की मुफ्त बिजली योजना और नई अक्षय ऊर्जा नीति बिहार को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाने के साथ-साथ राज्य के औद्योगिक और आर्थिक विकास को भी मजबूत आधार देने की कोशिश है।