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बंगलादेश में हिन्दुओं का निरंतर उत्पीड़न और वैश्विक चुप्पी

बंगलादेश में हिन्दुओं का उत्पीड़न रुक नहीं रहा । हिन्दुओं के घरों पर हमले और हिन्दु स्त्रियों के हरण के समाचार प्रतिदिन आ रहे हैं। लेकिन पूरी दुनियाँ में सन्नाटा है। जिन संगठनों को आतंकवादियों में भी मानवीय अधिकार दिख जाते हैं। वे भी बंगलादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न पर चुप्पी साधे हुये है।

बंगलादेश में हिन्दुओं के विरुद्ध हो रही हिंसा को सात माह से भी अधिक समय हो गया है। लेकिन हिन्दुओं पर हमले बंद नहीं हो रहे। जिस आँदोलन के साथ बंगलादेश में हिन्दुओं पर हमले होना आरंभ हुये, वह आँदोलन तो सत्ता परिवर्तन केलिये था। आँदोलन के कारण ही बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भागना पड़ा। वे 24 अगस्त 2024 में भारत आ गईं थीं। उनके भारत आने के बाद आँदोलन कारियों ने शेख हसीना की सरकार से जुड़े लोगों को निशाने पर नहीं लिया। प्रशासनिक अमले पर हमले की कुछ घटनाएँ तो हुईं, पर वे सभी नाममात्र की। आँदोलन कारियों की हिंसक भीड़ ने निशाना हिन्दुओं और बौद्धों को बनाया।

इसके पीछे पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी संगठन “जमात-ए- इस्लामी” का हाथ माना जा रहा है। हिंसा में कुछ ईसाई अल्पसंख्यक परिवार भी प्रभावित हुये हैं। ये वे परिवार थे जो हिन्दु घरों के आसपास रहते थे। मुस्लिम बस्तियों के समीप जो ईसाई परिवार रहते हैं वे सुरक्षित रहे। इससे स्पष्ट है बंगलादेश के कट्टरपंथी हमलावरों के निशाने पर हिन्दु और बौद्ध ही रहे। बंगलादेश में कोई ऐसा हिन्दु घर नहीं जिस पर हमला न हुआ हो। घरों में तोड़ फोड़ हुई, संपत्ति की लूट हुई, स्त्रियों का अपहरण और बलात्कार हुये।

सात माह की अवधि में ऐसी लगभग दो हजार से अधिक घटनाएँ घट चुकीं हैं। ये आँकड़े बंगलादेश हिन्दु बौद्ध संगठन ने जारी किये हैं। बंगलादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न की ओर भारत सरकार और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र का भी ध्यान आकर्षित कराया था और बंगलादेश सरकार से भी बात की थी। भारत सरकार की पहल पर संयुक्तराष्ट्र का एक जांच दल भी बंगलादेश गया । इसकी रिपोर्ट जनवरी माह में आई थी । इसमें भी बंगलादेश की स्थिति पर चिंता प्रकट की गई। अब हाल ही नागपुर में संपन्न राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा ने भी बंगलादेश की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विश्व की सभी शांतिप्रिय शक्तियों से बंगलादेश के पीड़ित हिन्दु परिवारों के समर्थन में सामने आने का आव्हान किया है।

किसी भी सरकार का दायित्व अपने देश के सभी नागरिकों को पूर्ण सुरक्षा देना होता है किन्तु बंगलादेश सरकार हिन्दुओं को सुरक्षा देने की बजाय हमले के समाचारों को अतिरंजित बता रही है। बंगलादेश में ऐसा कोई स्थान नहीं जहाँ हिन्दुओं का उत्पीड़न न हुआ हो। ठाकुरगांव, दिनाजपुर लालमोनिरहाट, सिलहट, खुलना रंगपुर आदि क्षेत्रों में भीषण हिंसा हुई । इन क्षेत्रों में एक भी मंदिर सुरक्षित नहीं बचा। अधिकांश गाँवों से हिन्दुओं का पलायन हो गया।

भारत में अनेक सामाजिक और राजनैतिक संगठन ऐसे हैं जो दुनियाँ में निर्दोष लोगों के उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। उन्हें हमास के आतंकवादियों के मानवीय अधिकारों की भी चिंता हो जाती है। लेकिन ये सभी संगठन बंगलादेश में हिन्दुओं के उत्पीड़न पर चुप्प है। हिन्दुओं के उत्पीड़न पर यह चुप्पी पहली बार नहीं है।यदि हिन्दुओं के उत्पीड़न का लंबा इतिहास है तो उसपर चुप्पी साधने का भी लंबा इतिहास है।

यह केवल बंगलादेश के मामले में नहीं है, पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में यही मानसिकता है। हिन्दुओं के उत्पीड़न पर वैसी आवाज नहीं उठाई जाती जैसी संसार में अन्य किसी पीड़ित केलिये उठाई जाती है। कुछ संगठन तो आतंकवादियों के मानवाधिकारों की चिंता करते हैं। लेकिन हिन्दुओं के अधिकारों की नहीं। दुनियाँ अब चाँद के भी पार जा रही है लेकिन भारतीय उप-महाद्वीप में हिन्दुओं को उत्पीड़ित करने की विशिष्ट कट्टरपंथी मानसिकता वही है जो सल्तनतकाल में थी।

सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी कोई अंतर नहीं आया है। हिन्दुओं पर हमला करना, उनकी संपत्ति छीनना और स्त्रियों को उत्पीड़ित करने करने का कुचक्र आज भी सल्तनतकाल जैसा ही है। सल्तनतकाल हिन्दुओं केलिये गहन अंधकार का समय था। भारत का कोई ऐसा कोना नहीं जहाँ हिन्दुओं का क्रूरतम उत्पीड़न न हुआ हो। लेकिन अब सल्तनतों और सुल्तानों की विदाई के बाद भी भारतीय उप-महाद्वीप में हिन्दुओं पर हमले और उनके उत्पीड़न पर सामूहिक चुप्पी की मानसिकता में कोई अंतर नहीं आया।

आशा की जा रही थी कि सल्तनतकाल की समाप्ति के बाद पूरा संसार हिन्दुओं के प्रति सहानुभूति उठ खड़ा होगा। भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान भी इस सत्य को समझेगे कि भारत के सभी निवासियों का डीएनए एक ही है। वे कट्टरपंथ के अंधकार से बाहर आकर हिन्दुओं के साथ भाईचारा निभायेगे। पूरे उपमहाद्वीप के अधिकांश मुसलमानों के पूर्वज तो हिन्दु ही रहे हैं। इसलिये भाई चारा होना अस्वाभाविक नहीं है लेकिन कोई अदृश्य “नेटवर्क” है जो मुसलमानों को कट्टरपंथी और आक्रामक मानसिकता से उभरने नहीं दे रहा। यह आक्रामकता भी केवल हिन्दुओं के विरुद्ध। ये कट्टरपंथी मानसिकता ठीक वैसी ही हिंसक टोली तैयार कर रही है जैसी सल्तनतकाल में थी। उसी प्रकार आक्रामक है और उसी प्रकार हमले करती है ।

हिन्दुओं के दमन पर चुप्पी और कट्टरपंथियों की रणनीति

भारती उप-महाद्वीप में हिन्दुओं के उत्पीड़न और उस पर सामाजिक चुप्पी साधने का इतिहास बहुत पुराना है। यह केवल सल्तनतकाल में ही नहीं हुआ। हर काल-खंड में अनवरत रहा और आज भी है। यदि स्थानीय स्तर पर घटने वाली घटनाओं को छोड़कर केवल ऐसी बड़ी घटनाओं की बात करें जिसमें हजारों हिन्दुओं की सामूहिक हत्याएँ हुई। सैकड़ों हिन्दु स्त्रियों का अपहरण हुआ। ऐसी घटनाओं में भी सन्नाटा बना रहा।

इन बड़े हत्याकांडों में 1921 में मालाबार का सामूहिक नरसंहार, 1946 में मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन, 1947 का भारत विभाजन और स्वतंत्रता के बाद कश्मीर में पंडितों के उत्पीड़न से समझा जा सकता है। हिन्दुओं की हत्याएँ होतीं रहीं। वे प्राण बचाने केलिये भागते रहे लेकिन मानवता वादी और कुछ राजनैतिक दलों को इसमें गंभीरता ही नहीं लगी। वे चुप रहे और यदि कुछ बोले भी तो गोल मोल शब्दों के साथ। यही इतिहास बंगलादेश में दोहराया जा रहा है।

हिन्दुओं के उत्पीड़न की इन सभी घटनाओं में कुछ समानताएँ रहीं हैं। एक तो उनकी तेयारी बहुत पहले से होती है। यह दोनों प्रकार की होती है। एक तो भीड़ को संगठित करके आक्रामक बनाना और दूसरे हमले के लिये हथियारों का प्रबंध। हमलावरों के पास ईंट पत्थर, आग लगाने केलिये पैट्रोल, सुतली बम, तलवार, बंदूक सब होते हैं। इतनी सामग्री अचानक एकत्र नहीं हो सकती। इसमें समय लगता है।

स्पष्ट है कि हमलावर अचानक सड़क पर नहीं आते पूरी तैयारी करके आते हैं। दूसरा भीड़ एकत्र करने का घोषित कारण कुछ और होता है लेकिन उनका गुप्त ऐजेंडा हिन्दुओं पर हमला करना होता है। मालाबार में हिन्दुओं की सामूहिक हत्याएँ, संपत्ति की लूट और हिन्दु स्त्रियों के अपहरण का बड़ा काँड 1921 में हुआ था । कहने केलिये वह भीड़ अंग्रेजों के शोषण का विरोध करने केलिये एकत्र हुई थी। लेकिन एक भी अंग्रेज नहीं मारा गया। सारी हिंसा हिन्दुओं के विरुद्ध हुई। गांव के गांव हिन्दुओं से खाली हो गये थे।

हमलावरों ने हिन्दुओं के घरों पर अधिकार कर लिया गया था। जो कभी नहीं छोड़ा। महिलाओं के अपहरण और उनके साथ हुये बलात्कार का दर्द सुनने वाला भी कोई नहीं बचा था। कयी दिनों तक लाशें पड़ी सड़तीं रहीं थीं, उन्हें उठाने वाले भी नहीं बचे थे। लेकिन फिर भी पूरे भारत में चुप्पी छाई रही। हिंसा को अंग्रेजों के विरुद्ध प्रचारित किया गया। बात यहीं तक समाप्त नहीं हुई। हिन्दुओं के इस सामूहिक नरसंहार को योजना पूर्वक स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने का प्रयास हुआ।

हिन्दुओं का दूसरा बड़ा सामूहिक नरसंहार अगस्त 1946 में मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन के समय हुआ। मुस्लिम लीग ने यह आव्हान पाकिस्तान की मांग केलिये किया था। पाकिस्तान बनाने का अधिकार हिन्दुओं के हाथ में नहीं था। यह निर्णय अंग्रेजों को लेना था, जो टाल रहे थे। लेकिन पाकिस्तान की माँग केलिये एकत्र इस हिंसक भीड़ ने अंग्रेजों पर कोई हमला नहीं किया।

उनके निशाने पर केवल हिन्दु, उनकी संपत्ति और स्त्री बच्चे रहे। इतनी बड़ी हिंसा अंग्रेजी तंत्र के किसी व्यक्ति का बाल बांका नहीं हुआ। हिन्दुओं के उत्पीड़न, हत्या और बलात्कार के चीत्कार से आसमान गूँज गया। पंजाब और बंगाल के साथ, उत्तर प्रदेश और बिहार और केरल में भी असंख्य घटनाएँ घटीं थीं। पीड़ितों की सेवा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता तो सामने आये लेकिन अधिकांश राजनैतिक गलियारों में चुप्पी बनी रही।

मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन के ठीक एक वर्ष बाद भारत का विभाजन हुआ। लोग हँसी खुशी अपनी अपनी पसंद के भूभाग में रहने जा सकते थे। यह एक आदर्श स्थिति होती लेकिन विभाजन के नाम पर भी लाखों-लाख हिन्दुओं को मारा गया था, हजारों हिन्दु स्त्रियों के अपहरण हुये थे। स्वतंत्रता के बाद कश्मीर घाटी में हिंसा का दौर आरंभ हुआ। घाटी से हिन्दुओं और कश्मीरी पंडितों को मारा जाने लगा। उन्हें मतान्तरण केलिये विवश किया जाने लगा।

इस अत्याचार के पीछे भी वही मनोभाव है जो मालाबार हिंसा में, मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन में और भारत विभाजन के समय रहा था। यही मन मानस बंगलादेश की ताजा हिंसा में दिखाई दे रहा है। आँदोलन भले बंगलादेश में सत्ता परिवर्तन के लिये घोषित किया गया था। लेकिन निशाने पर हिन्दुओं को लिया गया। बंगलादेश में एक भी हिन्दु का घर और मंदिर ऐसा नहीं जिसपर हमला न हुआ हो।

हिन्दुओं की सहिष्णुता
लगातार उत्पीड़न,हिंसा और धोखे खाकर भी हिन्दु समाज अपनी सहिष्णुता पर अडिग है। हिन्दु समाज संसार में सबसे अधिक सहिष्णु और संवेदनशील होता है। पूरे संसार को अपना कुटुम्ब मानता केवल हिन्दु सिद्धांत में है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी प्राणियों और दूव से लेकर पीपल तक सभी वनस्पतियाँ को अपने परिवार का अंग मानता हैं। हिन्दु समाज ने तो हमलावरों और उत्पीड़कों को भी सब भूलकर अपनाया है। ऐसा उदाहरण संसार में कहीं नहीं मिलता।

हिन्दुओं की सहिष्णुता और भाईचारा बनाने केलिये स्वयं होकर हाथ बढ़ाने की घटनाओं से इतिहास भरा है। मालाबार से लेकर भारत विभाजन तक की त्रासदी सहकर भी शेष भारत के हिन्दुओं ने मुसलमानों को गले लगाया। भाई चारा बनाया। स्नेह और समन्वय का हाथ बढ़ाया। भारत के मुसलमानों की प्रगति में आधारभूत भूमिका हिन्दुओं के सहयोग और सद्भाव की ही है। यहाँ न केवल सभी पुरानी मस्जिदें सुरक्षित हैं अपितु नित नई मस्जिदें और बन रहीं हैं। बंगलादेश और पाकिस्तान के कट्टरपंथी इस बात से नहीं सीखते। उल्टे वे भारत में रहने वाले मुसलमानों को भड़काते हैं।

पाकिस्तान और बंगलादेश ही नहीं भारत की भी कट्टरपंथी शक्तियों चीन का गठजोड़ है । जो बंगलादेश की ताजा घटनाओं में छिपा भी नहीं है। इनके अपने अपने उद्देश्य हैं। चीन का उद्देश्य भरत में अशान्ति उत्पन्न करके भारत की प्रगति को अवरूद्ध करना और कट्टरपंथियों का उद्देश्य भारत का मतान्तरण करना है। बंगलादेश के ताजा घटनाक्रम से सबक लेकर भारत के सभी सकारात्मक और राष्ट्रीय शक्तियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।

One thought on “बंगलादेश में हिन्दुओं का निरंतर उत्पीड़न और वैश्विक चुप्पी

  • March 31, 2025 at 20:03
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    सटीक आलेख

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