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बांग्लादेश का उदय और पाकिस्तान की हार की गाथा

पाकिस्तान, भारत का ही हिस्सा है, उसका जन्म भारत की भूमि पर हुआ। वहां रहने वाले लोग भी भारतीय पूर्वजों के वंशज हैं। फिर भी वे लोग दिन रात भारत के विरुद्ध विष वमन और भारत को मिटाने का दंभ भरते हैं। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो अपने जन्म के पहले दिन से नहीं बल्कि अपने गर्भ काल से अपने जन्मदाता भारत की धरती पर रक्तपात का षडयंत्र कर रहा है।

पाकिस्तान के इन षडयंत्रों में सबसे भीषण षडयंत्र था 1971 का युद्ध। जो उसने भारत पर थोपा था लेकिन बुरी तरह मुँह की खाई। भारत के प्रति उत्तर से वह मात्र तेरह दिन में टूट गया। यह टूटन उसके मनोबल पर भी आई और उसके भूभाग पर भी। पर ढीढ इतना कि अपनी कुचालें बंद नहीं करता। आज भी प्रतिदिन कुछ न कुछ षडयंत्र करता ही रहता है। 1971 का यह युद्ध कुल तेरह दिन तक चला था।

दुनियाँ के इतिहास में यह सबसे छोटा निर्णायक युद्ध माना जाता है। इस युद्ध समापन के साथ एक नये देश का उदय हुआ जो अब बंगलादेश के नाम से जाना जाता है। बंगलादेश के अस्तित्व की भूमिका 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही ही पड़ गयी थी। तब यह प्रक्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बनकर पूर्वी पाकिस्तान कहलाया था। पर भाषा को लेकर मतभेद पहले दिन से था।

सल्तनत काल में चले बलपूर्वक धर्मांतरण अभियान में यहाँ के निवासियों की पूजा उपासना पद्धति तो बदल गई थी पर भाषा के प्रति लगाव कम न हुआ था। बंगाली लोग अपनी राष्ट्रीयता बदलकर पाकिस्तानी के रूप पहचाने जाने लगे लेकिन उन्होंने अपनी मातृभाषा से लगाव न छोड़ा था। वे चाहते थे कि उनकी भाषा बंगाली ही रहे। जबकि पाकिस्तानी शासक उनकी यह बंगाली पहचान बदलना चाहते थे। वे बल पूर्वक उर्दू और अरबी का दबाव बना रहे थे। संघर्ष यहीं से शुरू हुआ।

इसको लेकर 1948 से ही आंदोलन आरंभ हो गये थे। जिसका दमन पाकिस्तान की सरकार और सेना करती रही थी। 1950 में बंगाली भाषा के लिये एक बड़ा आंदोलन और उसके सैन्य दमन ने पूर्वी पाकिस्तान में निवासरत बंगालियों के मन में विभाजन की एक धारा खींच दी थी। यह अंतर्धारा और इसका दमन 1968 के बाद तेज हुआ।

पूर्वी पाकिस्तान में बाकायदा मुक्ति वाहिनी अस्तित्व में आ गयी और इसके नेता के रूप में शेख मुजीबुर्रहमान को जाना गया। 1970 आते आते सैनिकों के जुर्म और बंगालियों का दमन और पलायन दोनों बढ़ गया। पाकिस्तानी सैनिक सामूहिक जुर्म ढाने लगे। बड़ी संख्या में बंगाली लोग भारत आकर शरण लेने लगे।

25 मार्च 1971 को बंगला अभियान के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसका भारत ने विरोध किया और मुक्ति वाहनी को नैतिक समर्थन देने की घोषणा भी कर दी। भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने आंदोलन को खुला समर्थन दिया और जो लोग भारत आ रहे थे उन्हे भी पर्याप्त संरक्षण दिया।

पाकिस्तान ने अपनी समस्या का ठीकरा भारत के सिर फोड़ना शुरू किया और दुनियाँ में यह प्रचार शुरू किया कि भारत अशांति फैला रहा है। इसको लेकर पाकिस्तान में भारत के खिलाफ जुलूस निकलने लगे पाकिस्तान में भारत के खिलाफ नारे लगते “क्रश इंडिया” ऐसे जुलूसों को सत्तारूढ़ दल के नेता संबोधित करते और भारत को मिटाने का दंभ भरते।

इन तमाम कारणों से आरंभ हुये युद्ध की तिथि भले तीन दिसम्बर 1971 मानी जाती हो पर पाकिस्तान ने अपनी ओर से यह युद्ध 25 नवम्बर 1971 को ही आरंभ कर दिया था जब लाहौर में ऐसी ही “क्रश इंडिया” रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भुट्टो ने बाकायदा युद्ध की घोषणा की थी और उसकी तीनों सेनाओं ने मोर्चाबंदी शुरु कर दी थी।

पाकिस्तान ने जहाँ करांची बंदरगाह पर नौ सेना बेड़े तैनात किये वहीं सीमा पर फौज बढ़ा कर घुसपैठ शुरू करदी थी। यह वही तकनीकी थी जो पाकिस्तान ने 1948 और 1965 के युद्ध के पूर्व अपनाई थी। लेकिन इस बार भारत सतर्क था भारत युद्ध तो नहीं चाहता था पर युद्ध से निबटने के लिये पूरी तरह तैयार था।

भारत ने लगभग दस दिनों तक पाकिस्तान की घुसपैठ पर नजर रखी और स्वयं को मजबूत किया। लेकिन दूसरी तरफ पाकिस्तान को लगा कि उसकी घुसपैठ सफल हो रही है। इससे उत्साहित होकर उसने दो और तीन दिसम्बर 1971 की रात भारत पर हवाई हमला बोल दिया।

पाकिस्तान की वायुसेना ने एक साथ एक रात में भारत के कुल 11 स्थानों पर बम गिराये। यह बम उसने केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि भारत की सीमा में चार सौ अस्सी किलोमीटर तक निशाना साधा। पाकिस्तान ने इस अभियान का नाम “आपरेशन चंगेज” दिया था और इसमें उसके 41 युद्धक विमानों ने हिस्सा लिया था।

इस बमबारी से पूरा भारत सकते में आ गया। तीन दिसम्बर को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया और सेना को आदेश दिया कि वह पाकिस्तान को मुँह तोड़ जबाब दे। भारतीय सेना ने तब तीनों प्रकार की रणनीति अपनाई। जल, थल और हवाई युद्ध की।

भारतीय थल सेना जहाँ पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से में घुसी और वहां संघर्षरत बंगलादेश मुक्ति वाहिनी की खुली मदद करने लगी वहीं नौ सेना की पनडुब्बी ने बंगाल की खाड़ी में तैनात पाकिस्तान के उस एयर बेस को उड़ा दिया जिससे पाकिस्तान के युद्धक विमान उड़ान भर रहे थे। तीसरे वायुसेना ने पाकिस्तान के उन मिलिट्री कैंपो पर धावा बोला जो उसकी थल सेना के आश्रय स्थल थे। यह सब काम केवलआरंभिक चार दिनों में हो गया।

नौ दिसम्बर से पाकिस्तान की फौज डिफेन्स में आई। दस दिसम्बर को भारत ने उसका सैन्य संचार तंत्र बिखेर दिया। हालत यह हुई कि पाकिस्तान के किस कैंप में कितनी सेना है, उसकी हालत क्या है, वह जीवित भी है या नहीं यह सब सूचनाएं बंद हो गयीं। पाकिस्तान की सेना का सारा ताना बाना बिखर गया।

भारतीय फौज ने 14 दिसम्बर को ढाका पर कब्जा कर लिया और 15 दिसम्बर को पूर्वी पाकिस्तान में तैनात पाकिस्तानी सैनिक या तो वर्मा भाग गये या सिरेन्डर करके जान की भीख मांगने लगे। 15 दिसम्बर को भारत ने ढाका पर आधिपत्य होने की अधिकृत घोषणा की। इसी के साथ वहां तैनात पाकिस्तान कमांडर ने फौज के आत्म समर्पण का प्रस्ताव दिया जिसे 16 दिसम्बर को माना गया और भारत ने अपनी ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

युद्ध की मुख्य बातें
*युद्ध में पाकिस्तान के कुल 97368 युद्ध बंदी बनाये गये इसमें 91 हजार वर्दीधारी सैनिक, दो हजार अर्धसैनिक और चार हजार अन्य सहयोगी थे
* युद्ध में 3843 भारतीय सैनिक शहीद हुये जबकि पाकिस्तान के नो हजार सैनिक मारे गये
* युद्ध में भारतीय वायु सेना ने कुल 5878 उड़ाने भरी इसमें 4000 लगभग पश्चिमी मोर्चों पर बाकी पूर्वी मोर्चा पर
* शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को हुआ जिसमें भारत ने युद्ध बंदी लौटाये और जीती हुई जमीन भी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।

One thought on “बांग्लादेश का उदय और पाकिस्तान की हार की गाथा

  • December 16, 2024 at 11:00
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    जय हिंद🙏🙏

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