भारत का अनोखा किला जहां कुत्ता चलाता था तोप
भारत किलों और महलों का देश है। यहां यूरोप जैसे फुलवारी वाले मैदान और अमेरिका जैसे विशाल समुद्र तट भले न हों, लेकिन यहां के किले और महल दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। हर किले का अपना अलग इतिहास और कहानियां हैं। ऐसे ही एक अद्भुत किले की कहानी है, जहां एक प्रशिक्षित कुत्ता तोप चलाता था। यह किला राजस्थान के अलवर जिले में स्थित बाला किला है।
बाला किले का इतिहास
बाला किला, जिसे अलवर किला भी कहा जाता है, राजस्थान के अलवर जिले में स्थित एक ऐतिहासिक दुर्ग है। यह किला समुद्र तल से 1960 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और 8 किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है।बाला के दुर्ग के निर्माताओं के बारे इतिहासकार एकमत नही है। कुछ इसे शिल्प जाति द्वारा तो कुछ इसे निकुम्भ द्वारा, कुछ इस हसन खान मेवाती द्वारा निर्मित मानते हैं। यह किला 1545 ईस्वी तक 1755 ईस्वी मुगलो के अधीन रहा था। इसके बाद भरतपुर के जाट राजाओ ने इस पर अधिकार कर लिया था। महाराजा सूरजमल ने दुर्ग में सूरज कुण्ड ,सूरज पोल और दो महलों का निर्माण करवाया था। सन 1775 ईस्वी में भरतपुर की शरण मे आये नरुका प्रताप सिंह ने नवीन वंश की स्थापना की थी।
किले से करीब 200 मीटर पहले एक खंडहरनुमा इमारत है, जिसे तोप का कारखाना कहा जाता है। इस कारखाने में राजाओं के शासनकाल के दौरान तोपों का निर्माण और परीक्षण किया जाता था। इन परीक्षणों के दौरान तोपों के फटने और उनके प्रभाव से होने वाले भारी नुकसान को देखते हुए एक कुत्ते को प्रशिक्षित किया गया था, जिसे विक्टर नाम दिया गया।
विक्टर: तोप चलाने वाला कुत्ता
राजस्थान के ऐतिहासिक दस्तावेजों में विक्टर नामक कुत्ते का उल्लेख मिलता है, जिसे तोप दागने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। तोप परीक्षण के दौरान सैनिकों को बचाने के लिए विक्टर को खास प्रशिक्षण दिया गया। जब भी तोप दागी जाती, विक्टर तुरंत पास के पानी के कुंड में कूदकर खुद को बचा लेता था।
विक्टर की वीरगति
एक बार तोप के कारखाने में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी तोप बनाई गई, जिसका परीक्षण विक्टर द्वारा किया जाना था। जैसे ही विक्टर तोप दागने की तैयारी कर रहा था, अचानक तोप फट गई और इस हादसे में विक्टर की मृत्यु हो गई। उसकी याद में तोपखाना परिसर में उसकी समाधि बनाई गई। आज भी यह समाधि इस अद्भुत इतिहास की गवाही देती है।
अलवर के आधुनिक स्वरूप के प्रणेता माने जाने वाले महाराजा जयसिंह का जन्म 14 जून 1882 को विनय विलास में हुआ। 23 मई 1892 को वे अलवर की राजगद्दी पर विराजमान हुए। अल्पवयस्क होने के कारण राज्य प्रबंध के लिए बनाई गई कौंसिल ने 1903 तक शासन प्रबंध को संचालित किया। 10 दिसंबर 1903 को वाइसराय लॉर्ड कर्जन से उन्हें शासन के पूर्ण अधिकार प्राप्त हुए।
महाराजा जयसिंह कुशल प्रशासक, न्यायप्रिय और देशभक्त थे। मई 1933 में उन्हें देश निकाला दे दिया गया। निर्वासन की अवधि में 19 मई 1937 को फ्रांस की राजधानी पेरिस में उनका निधन हो गया। आज उनकी 138 वीं जयंती है। महाराजा जयसिंह ने उलवर को अलवर नाम देकर नई पहचान दी। राजपूताने की 19 रियासतों में से अलवर जैसी छोटी रियासत के राजा होते हुए भी वे नरेंद्र मंडल के 8 महीनों तक चांसलर रहे। विक्टर तोप चलाने में इतना एक्सपर्ट था कि जैसे ही वो गोला दागदा, तुरंत पास के पानी के कुंड में कूदकर खुद को बचा लेता था। उसके नाम के पीछे भी एक खास कहानी है। महाराज जयसिंह अंग्रेजों को पसंद नहीं करते थे इसलिए अपने श्वान का नाम ही अंग्रेज के नाम पर रख दिया। फिर विक्टर को तोप चलाने की ट्रेनिंग दी गई। हालांकि तोप चलाने में एक्सपर्ट कुत्ते विक्टर की मौत भी तोप फटने की वजह से ही हुई थी। एक बार एशिया की दूसरी सबसे बड़ी तोप के परीक्षण में विक्टर मारा गया, और उसकी याद में समाधि बनाई गई।
बाला किले की विशेषताएँ
- अजेय किला: इस किले पर कई शासकों ने शासन किया, जिनमें मुगल, मराठा और जाट शामिल थे, लेकिन यह किला कभी भी युद्ध में पराजित नहीं हुआ, इसलिए इसे ‘कुंवारा किला’ भी कहा जाता है।
- दुश्मनों पर सटीक वार: किले में 446 छेद बनाए गए थे, जिससे तोपों और गोलियों का निशाना लगाया जाता था।
- अलवर शहर का विहंगम दृश्य: बाला किले से अलवर शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
- धार्मिक स्थल: किले के आसपास करणी माता मंदिर, तोप वाले हनुमान जी, चक्रधारी हनुमान मंदिर, सीताराम मंदिर, जय आश्रम, सलीम सागर और सलीम बारादरी जैसे धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल स्थित हैं।
कैसे पहुंचे?
बाला किला अलवर शहर से 6 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। किले तक पहुंचने के लिए जयपोल, लक्ष्मण पोल, सूरजपोल, चांदपोल, अंधेरी द्वार और कृष्णा द्वार जैसे द्वार बनाए गए हैं। यह किला पर्यटकों के लिए सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है, और इसका प्रवेश निःशुल्क है।
बाला किला भारत की गौरवशाली सैन्य शक्ति और अनोखे ऐतिहासिक किस्सों का प्रतीक है। विक्टर नामक कुत्ते की यह अनूठी कहानी इसे और भी रहस्यमय और रोचक बना देती है। यह किला न केवल अपनी मजबूत बनावट बल्कि अपनी अनोखी विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। यदि आप राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना चाहते हैं, तो बाला किला अवश्य जाएं।
बहुत ही सुंदर जानकारी
हार्दिक आभार