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अद्वितीय मराठा हिन्दू योद्धा और कुशल रणनीतिकार : बाजी राव पेशवा

बाजीराव पेशवा को एक महान हिंदू योद्धा के रूप में याद किया जाता है, और उनके जीवन और कार्यों ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान दिलाया है। उन्हें हिंदू धर्म, मराठा साम्राज्य, और भारतीय संस्कृति के संरक्षक के रूप में देखा जाता है। बाजी राव पेशवा मराठा साम्राज्य के दूसरे पेशवा (प्रधान मंत्री) थे, जिन्हें उनके अद्वितीय सैन्य कौशल और अजेय विजय अभियान के लिए जाना जाता है। उनका जीवन और कार्य भारतीय इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों में गिने जाते हैं।

हिन्दू योद्ध के रुप में बाजीराव 

बाजीराव ने अपने जीवन को हिंदू धर्म की रक्षा और मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिए समर्पित किया। मुगल साम्राज्य की शक्ति उस समय कमजोर हो रही थी, और बाजीराव ने इसे हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना का एक अवसर माना। उन्होंने मराठा साम्राज्य का विस्तार उत्तर भारत तक किया और मुगल सत्ता को चुनौती दी। उन्हें हिंदू मंदिरों और तीर्थ स्थलों की सुरक्षा के लिए भी जाना जाता है।बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को एक शक्तिशाली हिंदू राज्य में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मालवा, गुजरात, और राजस्थान के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की और मराठा साम्राज्य को उत्तरी और मध्य भारत में फैला दिया। उनका उद्देश्य मराठा साम्राज्य को एक अखिल भारतीय शक्ति बनाना था, जो हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा कर सके।

बाजीराव की सैन्य नीतियां और युद्ध कौशल उन्हें एक अद्वितीय हिंदू योद्धा के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं। उन्होंने कई युद्धों में हिंदू योद्धाओं का नेतृत्व किया और कभी भी हार का सामना नहीं किया। उनका ‘लाइट कैवेलरी’ का उपयोग और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति ने उन्हें अजेय बना दिया। बाजीराव के नेतृत्व में मराठा सेना ने कई मुस्लिम शासकों को पराजित किया और हिंदू शक्ति को प्रबल किया। बाजीराव का नाम आज भी एक महान हिंदू योद्धा के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनकी विजय अभियानों, उनके धर्म और संस्कृति की रक्षा के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें हिंदू योद्धा के प्रतीक के रूप में स्थापित किया है। मराठा साम्राज्य के वीर योद्धाओं में बाजीराव का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है, और उनकी विरासत आज भी हिंदू समुदाय में प्रेरणा का स्रोत है। हम उनके जीवन, महत्वपूर्ण युद्धों, सैन्य रणनीतियों और उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

बाजी राव का प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि बाजी राव का जन्म 18 अगस्त 1700 को सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता, बालाजी विश्वनाथ, मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा थे। बालाजी विश्वनाथ ने मराठा साम्राज्य की नींव को मजबूत किया और इसे एक शक्तिशाली राज्य में परिवर्तित किया। बाजी राव को उनके पिता से नेतृत्व और सैन्य कौशल की शिक्षा मिली। उनका बचपन युद्धकला और रणनीतिक प्रशिक्षण में बीता, जिसने उन्हें एक कुशल योद्धा और नेतृत्वकर्ता बनाया।

मराठा साम्राज्य के सैन्य प्रमुख के रूप में उदय बाजी राव पेशवा के रूप में 1720 में नियुक्त हुए, जब वे मात्र 20 वर्ष के थे। इतने कम उम्र में उन्हें पेशवा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन बाजी राव ने अपनी क्षमता से सिद्ध कर दिया कि यह निर्णय बिल्कुल सही था। उन्होंने मराठा साम्राज्य के सैन्य प्रमुख के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए उत्तर भारत में मराठा साम्राज्य का विस्तार किया और दिल्ली के मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ कई सफल युद्ध अभियान चलाए।

महत्त्वपूर्ण युद्ध और विजय अभियान

बाजी राव का सैन्य जीवन कई महत्त्वपूर्ण युद्धों और विजय अभियानों से भरा हुआ था। उन्होंने लगभग 41 युद्ध लड़े, जिनमें से कोई भी युद्ध नहीं हारे। उनके प्रमुख युद्ध अभियानों में निम्नलिखित शामिल हैं:

पालखी का युद्ध (1728): बाजी राव के नेतृत्व में मराठा सेना ने निजाम-उल-मुल्क के नेतृत्व वाली मुग़ल सेना को हराया। इस विजय ने मराठा साम्राज्य को दक्षिण भारत में एक सशक्त शक्ति के रूप में स्थापित किया।

मालवा पर विजय (1729-1731): मालवा क्षेत्र पर मुग़ल सत्ता का अंत करके बाजी राव ने मराठा साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया। इस विजय ने उन्हें उत्तर भारत में मराठा सत्ता का अग्रणी योद्धा बना दिया।

दिल्ली अभियान (1737): बाजी राव ने मुग़ल राजधानी दिल्ली पर हमला किया और वहां की सत्ता को हिला दिया। इस अभियान ने मराठा शक्ति को दिल्ली के समीप तक पहुंचा दिया और मुग़ल साम्राज्य की कमजोरी को उजागर किया।

भोपाल का युद्ध (1737): बाजी राव ने भोपाल में मुग़ल सेना को करारी हार दी और उन्हें संधि के लिए मजबूर किया। इस युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य मध्य भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हुआ।

रणनीतिक कौशल और सैन्य नीति

बाजी राव का सैन्य कौशल केवल युद्ध जीतने तक सीमित नहीं था; वह एक कुशल रणनीतिकार भी थे। उन्होंने कई अद्वितीय सैन्य नीतियों को अपनाया, जिनसे मराठा सेना को युद्ध में महत्वपूर्ण लाभ मिला। उनकी प्रमुख सैन्य नीतियों में शामिल हैं:

लाइट कैवेलरी का उपयोग: बाजी राव ने लाइट कैवेलरी (घुड़सवार सेना) का कुशलता से उपयोग किया। उनकी सेना तेज गति से चलने वाली थी, जो दुश्मन को हैरान कर देती थी। उन्होंने इस नीति के माध्यम से दुश्मन को पहले ही चरण में मात दी।

गुरिल्ला युद्ध: बाजी राव ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति को भी अपनाया। वह दुश्मन की सेना को छोटी-छोटी टुकड़ियों में विभाजित कर उन्हें हराते थे। यह रणनीति मुग़ल सेना के खिलाफ विशेष रूप से प्रभावी रही।

सीधे आक्रमण का परहेज: बाजी राव ने सीधे आक्रमण करने के बजाय दुश्मन को उसकी कमजोरियों पर हमला कर पराजित करने की रणनीति अपनाई। उन्होंने विरोधी को कमजोर कर उसे मात देने में विश्वास किया।

प्रशासनिक योगदान और साम्राज्य विस्तार

बाजी राव का योगदान केवल युद्ध में ही नहीं था, बल्कि उन्होंने मराठा साम्राज्य के प्रशासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया:

कर संग्रहण नीति का सुधार: बाजी राव ने कर संग्रहण की प्रणाली में सुधार किया और इसे अधिक प्रभावी और न्यायसंगत बनाया। इससे मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और राज्य की आमदनी में वृद्धि हुई।

साम्राज्य विस्तार: बाजी राव ने मराठा साम्राज्य को दक्षिण और उत्तर भारत में विस्तार दिया। उनकी सैन्य नीतियों और विजय अभियानों के कारण मराठा साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया।

दूरदर्शी प्रशासनिक नीतियाँ: उन्होंने प्रशासन में ऐसी नीतियाँ अपनाई जिससे स्थानीय शासकों और जागीरदारों के साथ सामंजस्य बना रहा। इससे मराठा साम्राज्य की स्थिरता और शक्ति में वृद्धि हुई।

व्यक्तिगत जीवन और प्रभाव

बाजी राव का व्यक्तिगत जीवन भी अद्वितीय था। उनकी पहली पत्नी का नाम काशीबाई था, जिनसे उन्हें दो पुत्र हुए। उनकी दूसरी पत्नी, मस्तानी, एक मुस्लिम-हिंदू मिश्रित परिवार से थीं। मस्तानी के साथ उनके संबंधों ने उस समय के समाज में काफी विवाद पैदा किया, लेकिन बाजी राव ने अपने प्रेम और संबंधों में सामाजिक बंधनों को दरकिनार कर दिया।

बाजी राव की मृत्यु और उनकी समाधि

बाजीराव पेशवा की मृत्यु 28 अप्रैल 1740 को हुई थी। उनकी मृत्यु मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के रावेरखेड़ी नामक स्थान पर हुई थी। यह स्थान वर्तमान में निमाड़ क्षेत्र में स्थित है। बाजीराव की समाधि भी रावेरखेड़ी में ही स्थित है, जहां उनकी स्मृति में एक समाधि स्थल बनाया गया है। यह स्थान बाजीराव की सैन्य और राजनीतिक उपलब्धियों के साथ-साथ उनकी अद्वितीय रणनीतिक कौशल को भी याद करता है  उनकी मृत्यु के बाद, उनके पुत्र बालाजी बाजी राव ने पेशवा की गद्दी संभाली और बाजी राव की नीतियों और विजयों को आगे बढ़ाया।

बाजी राव पेशवा का नाम भारतीय इतिहास में उनके साहस, रणनीतिक कौशल और राष्ट्र निर्माण के लिए किए गए कार्यों के लिए सदा अमर रहेगा। उन्होंने मराठा साम्राज्य को एक ऐसे स्तर पर पहुंचाया, जिसे इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। उनकी अद्वितीय सैन्य नीतियों और प्रशासनिक कुशलता ने उन्हें भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं में से एक बना दिया।  उन्होंने अपने जीवन को हिंदू धर्म और मराठा साम्राज्य की रक्षा और विस्तार के लिए समर्पित किया। उनके सैन्य कौशल, रणनीतिक दृष्टिकोण, धार्मिक सहिष्णुता, और सांस्कृतिक योगदान ने उन्हें भारतीय इतिहास के महानतम योद्धाओं में से एक बना दिया। उनकी विरासत आज भी हिंदू समुदाय और भारतीय समाज में जीवित है, और उन्हें एक अनुकरणीय हिंदू योद्धा के रूप में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

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