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भारत का सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव बैसाखी

आचार्य ललित मुनि

ढांड दी ला के चादर, फुल्लां नू जद खिड़ खिड़ हंसी आन्दी है, उस वेल्ले ही बस बैसाखी आन्दी है। इस  लोकगीत में कहा गया है कि फ़सलों की चादर लहराए और जब फ़ूलों को हंसी आए, समझ लो उस समय बैसाखी आ गई है।  बैसाखी भारत के सबसे जीवंत और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो विशेष रूप से उत्तरी राज्य पंजाब में उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। यह हर साल 13 या 14 अप्रैल को हिंदू सौर पंचांग के अनुसार वैशाख मास की संक्रांति पर पड़ता है।  यह त्योहार कई भारतीय समुदायों के लिए पारंपरिक सौर नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और साथ ही एक फसल त्योहार के रूप में भी महत्वपूर्ण है, जो सर्दियों की फसलों, विशेष रूप से गेहूँ और सरसों, के पकने और कटाई का संकेत देता है। सिख समुदाय के लिए बैसाखी का धार्मिक महत्व और भी गहरा है, क्योंकि यह 1699 में दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना की स्मृति को ताजा करता है। इस त्योहार की विशेषता आनंदमय उत्सव, रंगारंग जुलूस, लोक नृत्य, संगीत और सामुदायिक भोज हैं, जो पंजाब और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं।

प्राचीन कृषि त्यौहार
बैसाखी की जड़ें प्राचीन भारत में गहरी हैं, जब यह मुख्य रूप से पंजाब और उत्तरी भारत के किसानों द्वारा एक फसल त्योहार के रूप में मनाया जाता था। यह वह समय था जब सर्दियों की फसलें, विशेष रूप से गेहूँ, तैयार होकर खेतों में सुनहरी चमक बिखेरती थीं। किसान इस अवसर पर प्रकृति और ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते थे। प्राचीन काल में, यह त्योहार हिंदू समुदाय द्वारा सौर नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता था, जो नए मौसम और नई शुरुआत का प्रतीक था। इस समय लोग पवित्र नदियों में स्नान करते थे और दान-पुण्य जैसे शुभ कार्यों में भाग लेते थे।

सिख धर्म में बैसाखी का महत्व
बैसाखी का धार्मिक महत्व सिख समुदाय के लिए 1699 में उस ऐतिहासिक घटना से जुड़ा है, जब गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की। यह घटना आनंदपुर साहिब में हुई, जहां गुरु ने अपने अनुयायियों को एकजुट करके एक ऐसे समुदाय की नींव रखी, जो समानता, साहस और बलिदान के सिद्धांतों पर आधारित था। इस दिन, गुरु गोबिंद सिंह ने पंच प्यारे (पांच प्रिय) को अमृत (पवित्र जल) के साथ बपतिस्मा देकर खालसा की शुरुआत की। पंच प्यारे—भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह—सिख धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और बलिदान की भावना के प्रतीक बने। गुरु ने इस अवसर पर सिखों को पांच ककार—केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा—अपनाने का आदेश दिया, जो उनकी पहचान और अनुशासन का हिस्सा बने।

इसके अलावा, बैसाखी सिख इतिहास में अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं से भी जुड़ी है। 1801 में, महाराजा रणजीत सिंह को बैसाखी के दिन सिख साम्राज्य का महाराजा घोषित किया गया था। वहीं, 1919 में बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ, जब ब्रिटिश सैनिकों ने अमृतसर में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।

हिंदू परंपराओं में बैसाखी
हिंदू समुदाय के लिए, बैसाखी सौर नववर्ष की शुरुआत है, जो वैशाख मास के पहले दिन को चिह्नित करता है। इस दिन, विशेष रूप से हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर की पौड़ी पर पवित्र स्नान का विशेष महत्व है। लोग सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। यह समय दान, पुण्य और नए संकल्पों के लिए भी शुभ माना जाता है।

सांस्कृतिक महत्व

बैसाखी पंजाब की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक है। इस दिन, गांवों और शहरों में मेले लगते हैं, जहां लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सजकर इकट्ठा होते हैं। भांगड़ा और गिद्धा जैसे लोक नृत्य इस उत्सव का मुख्य आकर्षण हैं। भांगड़ा, जो पुरुषों का पारंपरिक नृत्य है, ढोल की थाप पर किया जाता है और जीवन की ऊर्जा को दर्शाता है। वहीं, गिद्धा महिलाओं का नृत्य है, जिसमें वे गीतों के साथ तालियां बजाकर उत्साह व्यक्त करती हैं। ये नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक गौरव को भी प्रदर्शित करते हैं।

इसके अलावा, बैसाखी के मेले में पारंपरिक खेल, जैसे कुश्ती और कबड्डी, भी आयोजित होते हैं। मेले में तरह-तरह की दुकानें सजती हैं, जहां हस्तशिल्प, खिलौने और मिठाइयां बिकती हैं। बच्चे और युवा इन मेलों का विशेष आनंद लेते हैं।

बैसाखी का उत्सव भोजन के बिना अधूरा है। इस अवसर पर पंजाबी घरों में विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं, जैसे सरसों दा साग, मक्की दी रोटी, और विभिन्न प्रकार के पराठे। मिठाइयों में खीर, हलवा और जलेबी लोकप्रिय हैं। गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन होता है, जहां सभी समुदायों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। कड़ाहा प्रसाद, जो गेहूं, घी और चीनी से बनाया जाता है, गुरुद्वारों में वितरित किया जाता है और यह सिख परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बैसाखी का कृषि महत्व पंजाब जैसे कृषि-प्रधान राज्य में विशेष रूप से उजागर होता है। यह वह समय है जब किसान अपनी मेहनत का फल देखते हैं। गेहूँ की सुनहरी फसलें खेतों में लहलहाती हैं, और किसान इस अवसर पर नई शुरुआत की उम्मीद करते हैं। कई गांवों में, किसान अपनी फसलों को मंदिरों या गुरुद्वारों में अर्पित करते हैं और अच्छे मानसून के लिए प्रार्थना करते हैं। यह त्योहार प्रकृति के साथ मानव के गहरे रिश्ते को दर्शाता है।

 बैसाखी की व्यापकता

बैसाखी का उत्सव केवल पंजाब तक सीमित नहीं है। भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जो देश की सांस्कृतिक विविधता को रेखांकित करता है।

  1. तमिलनाडु: तमिलनाडु में सौर नववर्ष को पुत्तांडु के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को कोलम (रंगोली) से सजाते हैं और मंदिरों में विशेष पूजा करते हैं। पारंपरिक व्यंजन, जैसे मांगई पचड़ी (कच्चे आम का व्यंजन), तैयार किए जाते हैं, जो जीवन के विभिन्न स्वादों—खट्टा, मीठा, नमकीन—का प्रतीक है।
  2. केरल: केरल में बैसाखी के दिन विशु मनाया जाता है। इस अवसर पर सुबह-सुबह विशुक्कणी देखने की परंपरा है, जिसमें लोग भगवान विष्णु की मूर्ति, फूल, फल, अनाज और दर्पण से सजा हुआ एक विशेष प्रदर्शन देखते हैं। यह समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है। इस दिन सद्या भोजन, जिसमें कई प्रकार के व्यंजन शामिल होते हैं, तैयार किया जाता है।
  3. पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल में सौर नववर्ष को पोइला बैसाख या नबो बर्षो के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और मां काली या गणेश-लक्ष्मी की पूजा करते हैं। व्यापारी नए खाता बही शुरू करते हैं, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। बंगाली मिठाइयां, जैसे रसगुल्ला और संदेश, इस उत्सव का हिस्सा हैं।
  4. असम: असम में बैसाखी को रोंगाली बिहू या बोहाग बिहू के रूप में मनाया जाता है, जो सात दिनों तक चलने वाला उत्सव है। इस दौरान लोग बिहू नृत्य करते हैं, पारंपरिक गीत गाते हैं और गायों की पूजा करते हैं। पिठा (चावल से बनी मिठाई) और लारू जैसे व्यंजन इस उत्सव का आनंद बढ़ाते हैं।
  5. ओडिशा: ओडिशा में इस दिन को पना संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। लोग भगवान जगन्नाथ की पूजा करते हैं और बेला पना (बेल का पेय) तैयार करते हैं। यह दिन गर्मी के मौसम में ठंडक और ताजगी का प्रतीक है।

आधुनिक उत्सव और वैश्विक प्रभाव

आज बैसाखी केवल भारत तक सीमित नहीं है। विश्व भर में फैले सिख और पंजाबी समुदाय इस त्योहार को उत्साह के साथ मनाते हैं। अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख समुदाय नगर कीर्तन (धार्मिक जुलूस), सांस्कृतिक कार्यक्रम और लंगर का आयोजन करते हैं। ये उत्सव विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों को एक साथ लाते हैं और सिख धर्म के मूल्यों—सेवा, समानता और एकता—को बढ़ावा देते हैं।

आधुनिक समय में, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने बैसाखी के उत्सव को और व्यापक बनाया है। लोग इस अवसर पर शुभकामनाएं साझा करते हैं, और सांस्कृतिक संगठन ऑनलाइन कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इसके अलावा, बैसाखी के मेले और जुलूसों का प्रसारण विश्व भर में किया जाता है, जिससे यह त्योहार एक वैश्विक सांस्कृतिक घटना बन चुका है।

बैसाखी एक ऐसा त्योहार है जो भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और कृषि विरासत को एक साथ जोड़ता है। यह न केवल पंजाब का प्रमुख उत्सव है, बल्कि पूरे भारत में विभिन्न रूपों और नामों के साथ मनाया जाता है। सिख धर्म में खालसा पंथ की स्थापना और हिंदू परंपराओं में सौर नववर्ष के रूप में इसका महत्व इसे एक अनूठा स्थान प्रदान करता है। भांगड़ा और गिद्धा जैसे नृत्य, लंगर और करहा प्रसाद जैसे भोजन, और नगर कीर्तन जैसे धार्मिक आयोजन इस त्योहार को जीवंत और अविस्मरणीय बनाते हैं।

क्षेत्रीय विविधता के साथ-साथ बैसाखी का वैश्विक प्रभाव इसकी व्यापक स्वीकार्यता को दर्शाता है। यह त्योहार न केवल उत्सव का अवसर है, बल्कि समुदायों को एकजुट करने, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देने का माध्यम भी है। बैसाखी हमें याद दिलाती है कि चाहे हम किसी भी धर्म या क्षेत्र से हों, खुशी और एकता के मूल्य सार्वभौमिक हैं।

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