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राम मंदिर संघर्ष, आस्था और ऐतिहासिक विजय की यात्रा : हिन्दू शौर्य दिवस विशेष

आचार्य ललित मुनि

अयोध्या के सरयू तट से खड़े होकर, जब हम उस भव्य राम मंदिर को निहारते हैं, तो मन में एक लंबी यात्रा की स्मृतियां उमड़ आती हैं। एक यात्रा जो आस्था, संघर्ष और अंततः न्याय की है। 6 दिसंबर 1992 का वह दिन, जिसे हिन्दू ‘शौर्य दिवस’ कहते हैं, भारत के इतिहास में एक ऐसा मोड़ है जो हिंदू गौरव की भावना को जगाता है। यह एक ऐसा कालखंड था जब अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए भारत के हर हिन्दू का तन, मन और धन से योगदान रहा है। इस संघर्ष में सैकड़ों कार सेवकों ने प्राणों की आहूति दी है।

मुझे याद आता है कि जब 6 दिसम्बर को बाबरी विध्वंस का समाचार मेरे नगर में आया तो मेरे घर के सामने एक सब इंस्पेक्टर, हवलदार और दो सिपाहियों को ड्यूटी लग गई थी। ऐसा लग रहा था कि मुझे अघोषित रुप से नजरबंद कर दिया गया है। पूछने पर उन्होंने बताया कि सावधानी के तौर पर थाने से डयूटी लगी है। ऐसा ही हाल पूरे भारत में रहा होगा। बहुत कठिन दिन थे वे। जिसका सामना हम लोगों ने किया। तब कहीं जाकर सभी के समवेत संघर्षों के परिणाम स्वरुप आज भव्य राम मंदिर अयोध्या में सुशोभित हो रहा है।

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इतिहास पर दृष्टिपात करे तो अयोध्या वह पावन नगरी, वह स्थान जहां हवाओं में राम के नाम की गूंजता है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार, यह भगवान राम का जन्मस्थल है। त्रेता युग की वह भूमि जहां माता कौशल्या ने विष्णु अवतार को जन्म दिया। लेकिन इतिहास के पन्नों में यह भूमि सदियों से विवादों की भेंट चढ़ती रही। 1528 ईस्वी में, मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने यहां बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। यह एक अन्याय था।

प्राचीन राम मंदिर को ध्वस्त कर उसकी जगह अपने प्रभुत्व को स्थापित करने के लिए मस्जिद खड़ी की गई। पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (ASI) की 2003 की रिपोर्ट ने इस दावे को मजबूती दी, जिसमें मस्जिद के नीचे 12वीं शताब्दी के हिंदू मंदिर के अवशेष मिले। मूर्तियां, स्तंभ और मंदिरीय संरचनाएं। यह खोज हिंदू समुदाय के लिए गौरव का क्षण था, जो साबित करती थी कि उनकी आस्था केवल कल्पना नहीं, बल्कि ठोस इतिहास पर टिकी है।

19वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल में तनाव सतह पर आया। 1853 में हिंदू भक्तों ने मस्जिद के बाहर चबूतरा बनाकर पूजा शुरू की, जिससे झड़पें हुईं। ब्रिटिश अधिकारियों ने 1859 में एक रेलिंग खड़ी की। स्वतंत्रता के बाद, 1949 की रात में राम प्रतिमाएं मस्जिद के गर्भगृह में प्रगट हो गईं, जिसके बाद स्थल विवादित घोषित हो गया और ताला लग गया। दशकों तक यह जगह बंद रही, लेकिन हिंदू आस्था कभी नहीं डगमगाई।

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1986 में फैजाबाद कोर्ट के आदेश से ताला खुला, और हिंदुओं को पूजा का अधिकार मिला। यह हिंदू गौरव का पहला बड़ा कदम था, जो दिखाता था कि धैर्य और कानूनी संघर्ष से न्याय संभव है। 6 दिसंबर को भारतीय हिन्दू ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाते हैं। यह वह दिन जो कारसेवकों की वीरता को नमन करता है। 1992 में 1.5 लाख से अधिक करसेवक अयोध्या पहुंचे, जहां भीड़ ने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। हिंदू दृष्टिकोण से, यह ‘राष्ट्रीय कलंक’ का अंत था। एक ढांचा जो राम जन्मभूमि पर खड़ा था।

हिंदू पक्ष का संघर्ष अदालतों में लड़ा गया। 1950 से मुकदमे चले, लेकिन 1986 का ताला खुलना टर्निंग पॉइंट था। 1990 की रथ यात्रा ने राजनीतिक समर्थन दिया, लेकिन आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद हिंसा हुई। लिब्रहान आयोग (1992) ने 68 लोगों को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन 2020 में सभी बरी हो गए। सुप्रीम कोर्ट का 2019 फैसला ऐतिहासिक था। विवादित भूमि राम लला को, और मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, “यह आस्था का मामला है, लेकिन कानून सर्वोपरि।” हिंदू गौरव के लिए यह विजय थी ASI प्रमाणों पर आधारित।

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2024 की प्राण प्रतिष्ठा से अयोध्या चमक उठी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “यह 500 वर्षों का इंतजार समाप्त हुआ।” नवंबर 2025 में 161 फुट ऊंचा ध्वज फहराया गया, जो “भारतीय पुनरुत्थान का प्रतीक” है। यह न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक विजय है बल्कि रामायण आधारित पर्यटन, आर्थिक उन्नति का मार्ग भी है।

अयोध्या हमें एकजुट होने का संदेश देती है। हिंदू गौरव की भावना प्रेरणादायक है, सरयू के किनारे बैठकर, हम कह सकते हैं, राम सबके हैं, भारत सबका है। यह कथा कई शताब्दियों के संघर्षों, बलिदाओं और विजय की है, जो हमें बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है। राम मंदिर हिन्दू धर्म पालन करने वाले सभी जनमानस को जोड़ती है और यह दिन भारतीय अस्मिता के गौरव का दिन है, आओ इस दिन घरों दिये जलाएं और बलिदानियों को पुष्पाजंलि अर्पित करते हुए नमन करें एवं शौर्य दिवस मनाएं।