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भारतीय राजनीति के युगपुरुष : अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन एक प्रेरणादायक गाथा है, जो उनके नेतृत्व, नैतिकता, और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को उजागर करता है। उनका जीवन और कार्य हमें सिखाते हैं कि कैसे एक सच्चा नेता अपनी प्रतिबद्धता और सेवा के माध्यम से समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। आज अटल बिहारी बाजपेयी जी की पुण्यतिथि है, भारतीय राजनीति में उनके योगदान को सदैव याद रखा जाएगा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक स्कूल शिक्षक और हिन्दी तथा ब्रजभाषा के सिद्धहस्त कवि थे, जिससे अटल जी के जीवन पर गहरी सांस्कृतिक और साहित्यिक छाप पड़ी।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर से प्राप्त की और ग्वालियर के गोरखी विद्यालय में अटल जी ने 1935 से 1938 तक छठवीं से आठवीं तक की शिक्षा ग्रहण की, वर्ष 1938 तक गोरखी विद्यालय कक्षा 8 तक ही हुआ करता था। 8वीं पास कर उन्होंने तत्काल हरीदर्शन विद्यालय में 9वीं कक्षा में प्रवेश लिया। 1939 में अटलजी ने हरीदर्शन विद्यालय से कक्षा 9वीं पास की।

बाद में विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) में स्नातक किया। इसके बाद, उन्होंने कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर किया। बचपन से ही अटल जी का रुझान साहित्य और राजनीति की ओर था, और वे आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के सक्रिय सदस्य बने। संघ के सिद्धांतों ने उनके जीवन और राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी।

राजनीतिक यात्रा की शुरुआत

अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक यात्रा 1940 के दशक में शुरू हुई जब वे भारतीय जनसंघ के साथ जुड़े। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया, जिससे उनके राजनीतिक जीवन की नींव पड़ी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, अटल जी ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और अपने देश के लिए समर्पण का परिचय दिया। उनके नेतृत्व के गुण और भाषण देने की क्षमता ने उन्हें जल्द ही एक महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्तित्व बना दिया।

भारतीय जनसंघ में भूमिका

1951 में, भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय वाजपेयी जी ने सक्रिय भूमिका निभाई। जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर, उन्होंने एक मजबूत और संगठित राजनीतिक दल का निर्माण किया। वाजपेयी जी की विचारशीलता, संयम, और संवाद करने की क्षमता ने उन्हें जनसंघ के प्रमुख नेताओं में शामिल कर दिया। 1957 के आम चुनावों में वे पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और उनकी प्रतिभा का लोहा संसद में भी माना गया।

आपातकाल के दौरान विरोध

1975 में, इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान वाजपेयी जी ने खुलकर विरोध किया। वे लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने सरकार के दमनकारी कदमों के खिलाफ आवाज उठाई। इस विरोध के परिणामस्वरूप, वाजपेयी जी को जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। आपातकाल के समाप्ति के बाद, 1977 में हुए आम चुनावों में जनता पार्टी ने भारी जीत दर्ज की और वाजपेयी जी को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य

1980 में, भारतीय जनसंघ के नेताओं ने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना की। वाजपेयी जी भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और उन्होंने पार्टी को एक राष्ट्रव्यापी संगठन में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका उदारवादी दृष्टिकोण और राष्ट्रवादी विचारधारा भाजपा के राजनीतिक दर्शन का हिस्सा बने। 1984 के आम चुनावों में भाजपा को मात्र दो सीटें मिलीं, लेकिन वाजपेयी जी के नेतृत्व में पार्टी ने कभी हार नहीं मानी और निरंतर संघर्ष किया।

विदेश मंत्री के रूप में कार्यकाल

जनता पार्टी की सरकार में वाजपेयी जी को 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री के रूप में सेवा करने का अवसर मिला। इस अवधि में उन्होंने भारत की विदेश नीति को नया आयाम दिया। उनके कार्यकाल में भारत ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया, जिसने भारतीय संस्कृति और भाषा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मान्यता दिलाई। उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों की रक्षा की।

प्रधानमंत्री के रूप में तीन कार्यकाल

वाजपेयी जी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने—पहली बार 1996 में, दूसरी बार 1998 में, और तीसरी बार 1999 में। 1996 में उनका कार्यकाल केवल 13 दिनों का था, क्योंकि उनकी सरकार बहुमत साबित नहीं कर सकी। लेकिन 1998 में उन्होंने फिर से प्रधानमंत्री पद संभाला और इस बार उनकी सरकार 13 महीने चली। 13 अक्टुबर 1999 में उन्होंने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। यह सरकार 2004 तक चली और अपना कार्यकाल पूर्ण की, परन्तु इस बार के चुनाव में इन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।

प्रमुख नीतिगत निर्णय और उपलब्धियाँ

वाजपेयी जी के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिए गए और देश को कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल हुईं। 1998 में, उन्होंने भारत के परमाणु शक्ति बनने की दिशा में साहसिक कदम उठाते हुए पोखरण में परमाणु परीक्षण किए, जिससे भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बना। इसके अलावा, उन्होंने प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, और सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाओं की शुरुआत की, जिनसे देश के ग्रामीण और शहरी विकास को गति मिली।

उनकी सरकार ने आर्थिक सुधारों को बढ़ावा दिया और निजीकरण, उदारीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों को आगे बढ़ाया। वाजपेयी जी ने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए ‘लाहौर बस यात्रा’ का भी आयोजन किया, जिससे भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया मोड़ आया। बाजपेयी जी ने बस यात्रा द्वारा पाकिस्तान से संबंध सुधारने की कोशिश की परन्तु इसका परिणाम कारगिल युद्ध के रुप में सामने आया।

कवि और वक्ता के रूप में प्रतिभा

वाजपेयी जी केवल एक राजनेता ही नहीं, बल्कि एक उच्च कोटि के कवि और वक्ता भी थे। उनके काव्य संग्रह, जैसे “मेरी इक्यावन कविताएँ”, उनकी संवेदनशीलता और राष्ट्र के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाते हैं। उनकी कविताएँ केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं थीं, बल्कि वे राष्ट्रीयता, मानवीयता, और जीवन के उच्च मूल्यों का संदेश देती थीं। वाजपेयी जी के भाषणों में भाषा का सौंदर्य, तर्क की गहराई, और विचारों की स्पष्टता दिखाई देती थी, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती थी।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मान्यताएँ

वाजपेयी जी के नेतृत्व और सेवाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक मान्यता मिली। उन्हें भारत रत्न, पद्म विभूषण, और कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उन्होंने भारत का गौरव बढ़ाया और विश्व के नेताओं के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके प्रयासों से भारत को संयुक्त राष्ट्र में, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद में, एक महत्वपूर्ण स्थान मिला।

विरासत और प्रभाव

अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत भारतीय राजनीति में अमूल्य है। उनके नेतृत्व, नैतिकता, और विचारधारा ने भारतीय राजनीति को एक नया दृष्टिकोण दिया। उन्होंने भाजपा को एक मजबूत और संगठित राजनीतिक दल के रूप में स्थापित किया और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वाजपेयी जी का व्यक्तित्व और उनकी विचारशीलता उन्हें भारतीय राजनीति के महानतम नेताओं में से एक बनाते हैं। उनकी विरासत आज भी जीवित है और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

जीवन के अंतिम दिन

वाजपेयी जी ने अपने जीवन के आखिरी वर्षों में राजनीति से दूरी बना ली थी। 2009 में उन्हें एक गंभीर स्ट्रोक हुआ, जिसके बाद उनकी सेहत में निरंतर गिरावट आई। इस स्ट्रोक के कारण वे बोलने की क्षमता काफी हद तक खो चुके थे और उन्हें लगातार चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता थी। वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों में दिल्ली के कृष्ण मेनन मार्ग स्थित अपने आवास पर रहे, जहां उनकी देखभाल की जाती रही।

उनकी सेहत में आई इस गिरावट के चलते वे सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह से दूर हो गए थे। हालांकि, देश की जनता और उनके अनुयायी उनसे जुड़ी खबरों को लेकर चिंतित रहते थे और उनके स्वास्थ्य के प्रति सहानुभूति प्रकट करते थे।

मृत्यु

अटल बिहारी वाजपेयी जी का निधन 16 अगस्त 2018 को नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में हुआ। वाजपेयी जी को किडनी ट्रैक्ट संक्रमण, छाती में जकड़न और यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण के चलते जून 2018 में AIIMS में भर्ती कराया गया था। उनकी स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ती गई और 16 अगस्त 2018 को शाम 5:05 बजे, उन्होंने अंतिम सांस ली।

उनकी मृत्यु के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। वाजपेयी जी की अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए और उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ विदा किया गया।

अंतिम संस्कार

17 अगस्त 2018 को वाजपेयी जी का अंतिम संस्कार दिल्ली के स्मृति स्थल ‘राष्ट्रीय स्मृति स्थल’ पर किया गया। उनकी पुत्री नमिता भट्टाचार्य ने उन्हें मुखाग्नि दी। वाजपेयी जी के अंतिम संस्कार में देश-विदेश के कई प्रमुख नेताओं ने भाग लिया। उनके अंतिम संस्कार के समय पूरे देश में राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया, और विभिन्न राज्यों में उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु ने भारतीय राजनीति और समाज में एक युग का अंत कर दिया। वे केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि एक विचारधारा थे, जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र को मजबूती दी। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी, और उनका जीवन सदैव याद किया जाएगा। उनके व्यक्तित्व और कार्यों की छाप भारतीय राजनीति और समाज पर हमेशा बनी रहेगी।

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