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क्या कभी आर्यों ने द्वविड़ों पर हमला किया था?

भारत में आर्य आक्रमणकारी थे! हड़प्पा सभ्यता का विध्वंस आर्यों द्वारा किया गया! ऐसे झूठ को भारत के लोगों के बीच वैमनस्य फैलाने की साज़िश की गई। इतिहास को तोड़-मरोड़ कर, निराधार तथ्यों को लेकर जिन इतिहासकारों ने यह सिद्ध करने की कोशिश की है, वे या तो सत्य से अनभिज्ञ रहे या किसी खास प्रयोजन के तहत उन्होंने यह झूठ स्थापित करने की चेष्टा की है। अब मानव के डीएनए को लेकर इसकी सत्यता वैज्ञानिक अनुसंधान से स्पष्ट हो गई है कि आर्य बाहर से नहीं आए।

आखिर आर्य कौन थे? ऋग्वेद में कहा गया है-
‘‘आर्यव्रता विसृजन्तो अधिक्षमी’’ (ऋग्वेद 10-65-11)
अर्थात भूमि पर सत्य, अहिंसा, पवित्रता, परोपकारादि व्रतों को धारण करने वाले ही आर्य हैं। ऋग्वेद में और भी कहा गया है, ‘‘कृण्वन्तो विश्मार्यम’’
अर्थात संपूर्ण विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाएं। संपूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाने का आह्वान ऋग्वेद का है। आर्य एक संबोधन है न कि जाति। हिंदू ग्रंथों के आख्यान के अनुसार स्वयंभू मनु के नेतृत्व में जो देव समूह हिमालय पर्वत से नीचे समतल पर उतरा, उसने मानव संस्कृति का प्रसार किया। इसकी जाति मानव कहलाई।

भारत में आदि मानव की उत्पत्ति के बारे में पौराणिक साहित्य में विशद चर्चा है। हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी के निर्माण, उसका विकासक्रम लंबे समय तक चला। पृथ्वी की आयु लगभग 470 करोड़ वर्ष मानी गई है। पृथ्वी पर मानव आज से 20 लाख वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। आज से 4 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर मैमलो में प्राइमेट का जन्म हुआ, जो मानव और एप के समान पूर्वज थे। 1 करोड़ 40 लाख साल वर्ष पूर्व भारत में शिवालिक की घाटियों में रामपिथिकस की उपस्थिति रही। रामपिथिकस आज के मानव का पूर्वज था। इसके बाद विश्व के अनेक देशों में मानव विकास के प्रमाण मिले हैं।

हिमालय का क्षेत्र विश्व का सबसे ऊंचा क्षेत्र माना गया है। हिमालय शिवालिक पहाडिय़ों में प्राचीनतम उपमानव ‘रामपिथिकस’ के अवशेष मिले हैं। यहीं पर स्तनपायी पशुओं के लंबे सिलसिलेवार जीवन की जानकारी मिली है। आधुनिक मानव के विकास की पहली सीढ़ी के रूप में ‘रामपिथिकस’ को ही स्वीकार किया गया है। इसका जीवाश्म 1910 में भारतीय वैज्ञानिक विनायक राव को शिवालिक की पहाड़ी में प्राप्त हुआ था। 1963 में अंग्रेज वैज्ञानिक साइमन ने जांच पड़ताल के बाद ‘रामपिथिकस’ को पंजीबीकस नाम दिया। हम कह सकते हैं कि सर्वप्रथम मानव सृष्टि हिमालय से आरंभ हुई। इसी संदर्भ को पुष्ट करते हुए अथर्ववेद में कहा गया है कि देव जातियां हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। (अथर्ववेद 11-5-19 एवं 4-11-6)

शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि देवता भी आम मानवों के समान थे। हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में देवी की संख्या में वृद्धि होती गई। तब एक देव समूह राजा इंद्र की अनुमति लेकर स्वायम्भुव मनु के नेतृत्व में पर्वत से नीचे उतरा। इन्होंने सरस्वती नदी के किनारे अपनी बस्ती बसाई। स्वायंभुव मनु प्रथम मनु थे।

अभी तक सात मनु हुए हैं। अंतिम मनु वैवस्वत मनु हुए, जिनके समय पृथ्वी पर जल प्रलय हुआ। समाज को नियमबद्ध और व्यवस्थित करने के लिए वैवस्वत मनु ने मनु संहिता की रचना की। मनु संहिता मानव जाति की आदि संहिता है। मनु के नाम से ही देव जाति के इस समूह को मानव कहा गया। स्वायंभुव मनु के नेतृत्व में जो देव समूह नीचे उतरा उसने मानव संस्कृति का प्रचार किया। इनकी जाति मानव कहलाई, जो एक-दूसरे को संबोधन में आर्य कहते थे। आर्य गुणवाचक शब्द है जातिवाचक नहीं। पौराणिक ग्रंथों में आर्य एक संबोधन है, ठीक उसी प्रकार जैसे हम श्रीमान, महाशय, महोदय आदि का संबोधन में प्रयोग करते हैं। ऐसा ही एक संबोधन आर्य था। रामायण काल, महाभारत काल में आर्य कह कर संबोधित किया जाता रहा है।

वैदिक साहित्य में आर्य शब्द बार-बार आया है। वेदों का अनुवाद करने वाले जर्मनी के मैक्समूलर ने पहले आर्य शब्द को जातिवाचक मान लिया था। बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ। अपनी गलती को स्वीकार करते हुए मैक्समूलर ने 1889 के अपने भाषण में कहा था, ‘‘आर्य से मेरा मतलब रक्त या अस्थि, बाल या मस्तिष्क रचना से नहीं है। मेरा मंतव्य केवल भाषा से है।’’ मैक्समूलर ने वेदों का अनुवाद अंग्रेजी में किया। अंग्रेजों ने मैक्समूलर को भारत में ईसाई धर्म प्रचार का आधार स्तंभ बना दिया। मैक्समूलर ने ईसाई बनने के लिए ब्रह्म समाज के एन.के. मजूमदार को एक पत्र लिखा था जिसमें स्पष्ट होता है,

‘‘मेरे दृष्टिकोण से भारतवर्ष का एक बहुत बड़ा भाग ईसाई धर्म में परिवर्तित हो चुका है। ईसा मसीह के अनुयायी बनने के लिए तुमको कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं है। अपने लिए, अपने मन में निश्चय करो। अपने समूह को एकत्रित रखने और विपथगामी होने से बचाने के लिए उनको मिलाए रखो। जो तुमसे पहले ईसाई बन चुके हैं, उन्होंने तुम्हारे लिए रास्ता साफ कर दिया है। दृढ़ता के साथ आगे बढ़ो, तुम्हारे पैरों के नीचे से जमीन नहीं खिसकेगी। दूसरी ओर तुम्हारा स्वागत करने के लिए तुमको अनेक मित्रगण मिलेंगे। उसमें से तुम्हारे प्राचीन मित्र और साथी कार्यकर्ता मैक्समूलर को सबसे बढ़ कर आनंद होगा।”

द्रविड़ कोई अलग जाति थी ही नहीं बल्कि आर्यों की एक शाखा थी, जो दक्षिण में जा बसी। यह समूह स्वायंभुव मनु के नेतृत्व में आया था, जिसके कुछ लोग दक्षिण की ओर चले गए। पश्चिमी इतिहासकारों ने उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच वैमनस्य उत्पन्न करने के उद्देश्य से बिना प्रमाण के यह बात लिख दी। वास्तव में ‘द्रविड़’ संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ धन है। व्यापार या किसी तरह से धन से संबंधित मानवों को द्रविल (द्रविण) कहा जाने लगा। नालंदा शब्दकोष के अनुसार,
‘‘द्रविड़ ब्राह्मणों का एक वर्ग होता है।’’

हड़प्पा सभ्यता का विध्वंस आर्यों ने किया है। यह इतिहासकारों ने बिना तथ्यों के आधार पर लिखा है। असलियत अब सामने आई कि सिंधु घाटी और हड़प्पा सभ्यता के नष्ट होने का कारण वैज्ञानिकों ने बताया। जहां के जलस्रोत सूख गए। दोनों स्थलों में उत्खनन के दौरान ऐसा कोई चिह्न प्राप्त नहीं हुआ कि ये सभ्यताएं युद्ध के कारण नष्ट हुई हैं।

आईआईटी खडग़पुर और भारतीय पुरातत्व विभाग ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन किया। वैज्ञानिकों के मुताबिक सिंधु घाटी सभ्यता 8000 साल पुरानी है, जो लगातार खराब मानसून के कारण उजड़ गई। सिंधु घाटी सभ्यता, संस्कृति आर्य से अलग नहीं थी। हड़प्पा एवं सिंधु घाटी के उत्खनन से जो मुद्राएं मिली हैं, उसमें अंकित नाम महाभारत काल के नामों से मिलते जुलते हैं। सिंधु, सौवीर और मद्र जनपदों की महाभारत में उल्लेखनीय भूमिका थी। सिंधु घाटी और वैदिक देवी देवताओं की मुख मुद्रा, आकृति और आभूषण एक जैसे हैं। डॉ. फतेह सिंह के अनुसार, ‘‘सिंधु लिपि में वैदिक देवताओं का उल्लेख यह सिद्ध करता है कि सिंधु संस्कृति आर्य सभ्यता का ही अंश थी, अलग नहीं।’’ डेविड फ्रावले ने अपने ग्रंथ ‘द मिथ ऑफ द आर्यन इनवेकान ऑन इंडिया’ में इसी बात का समर्थन किया है।

द्रविड़ और आर्यों में मतभेद कराने और इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने में अंग्रेजों की कूटनीति सफल रही। 19वीं सदी के मध्य में जर्मनी के मैक्समूलर द्वारा यह विचारधारा रखी गई। उन्हीं दिनों अंग्रेज भारत में अपनी जड़ें जमाने में लगे हुए थे। 1857 के महासंग्राम में अंग्रेजों के पैर उखड़ गए थे। हिंदुस्तान के लोग एकत्र न हों, इसलिए अंग्रेजों ने आर्यों को विदेशी बताया। अंग्रेज हिंदुस्तान के जनमानस में यह बात फैलाना चाहते थे कि आर्यों ने बाहर से आकर यहां अपनी सत्ता कायम की है! आर्यों ने यहां के मूल निवासियों पर अत्याचार किया है! तो अंग्रेज भी ऐसा कोई गलत कार्य नहीं कर रहे हैं।

आर्यों का आक्रमण या आर्यों का भारत आगमन जैसी घटना किसी कालखंड में घटित नहीं हुई है।

आर्य और द्रविड़ नामक दो पृथक मानव नस्लों का अस्तित्व कभी नहीं रहा। यह बात अब वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ सिद्ध हो गई है। जैव रासायनिक डी.एन.ए. गुणसूत्र आधारित अनुसंधान तारतू विश्वविद्यालय, फिनलैण्ड में हुआ। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के.बी. सील्ड के निर्देशन में एस्टोनियन बायो सेंटर के शोधार्थी ज्ञानेश्वर चौबे ने यह कार्य किया। शिक्षा के क्षेत्र में फिनलैण्ड विश्व में पहला है।
वैज्ञानिक अनुसंधान से यह सिद्ध हो गया कि सारे भारतवासी के जीन अर्थात गुणसूत्रों के आधार एक ही पूर्वजों की संतानें हैं। गुणसूत्रों के अनुसार आर्य और द्रविड़ में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं। इसी के साथ जो अनुवांशिक गुणसूत्र भारतवासियों में पाए गए हैं, वे डी.एन.ए. गुणसूत्र दुनिया के किसी देश में नहीं पाए गए।

अनुसंधान में अखंड भारत के देश भारत सहित पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में रहने वाली सभी जातियों,उपजातियों और जनजातियों के लगभग 13000 नमूनों के परीक्षण परिणामों का इस्तेमाल किया गया। नमूनों के परीक्षण से मिले परिणामों की तुलना मध्य एशिया, यूरोप, चीन, जापान आदि देशों में रहने वाले मानव नस्लों के गुणसूत्रों से की गई। तुलनात्मक अनुसंधान में पाया गया कि भारतीय चाहे किसी भी धर्म, जाति के हैं, 99 प्रतिशत समान पूर्वजों की संतानें हैं। भारतीयों के पूर्वजों का डी. एन. ए. गुणसूत्र यूरोप, मध्य एशिया,चीन, जापान आदि देशों के मानव नस्लों से भिन्न है।

“फूट डालो और राज करो’ इस कूटनीति में अंग्रेज सफल रहे। इस षडयंत्र की शुरुआत 9 अप्रैल 1866 में लंदन की एशियाटिक सोसायटी की बैठक में हुई। बैठक में एडवर्ड थॉमस ने षडयंत्रों का सूत्रपात किया। थॉमस के सुझाया गये ऐसे बेबुनियाद तथ्यों को तब के इतिहासकारों ने अपने स्वार्थ के लिए लिखा। थॉमस ने भारत के खिलाफ षडयंत्र का सूत्रपात करते हुए कहा था,

‘‘आक्सास नदी के किनारे से पशु चराने वाले आर्य आक्रमणकारियों की लहरें आरियाना प्रदेश से होती हुई हिंदूकुश के रास्ते पहले पंजाब में उतरीं। जहां से वेदों के गंवारी गीत गाते हुए आर्य सरस्वती नदी की ओर आगे बढ़े। यहां पर उन्होंने ब्राह्मणी संहिताओं की रचना की और तक्षशिला में संस्कृत का व्याकरण रचा। अपनी भाषा के लिए आर्यों के पास कोई लिपि नहीं थी अत: वे जिसके संपर्क में आए उसी की लिपि अपना ली।’’

थॉमस की साज़िश कामयाब रही। अंग्रेजों का साम्राज्यवाद फैलता गया और हिंदुस्तान में जातिगत वैमनस्य बढ़ता चला गया। भारत के चाटुकार इतिहासकारों ने अंग्रेजों के सुर में सुर मिलाया। अंग्रेज़ी सरकार के भय के कारण इतिहासकार दबे रहे, ऐसा माना जाने लगा।

भारत के आजाद होने के बाद देश के नागरिको को अंग्रेजों के षडयंत्र से मुक्त क्यों नहीं किया जा सका..? यह भी एक विडंबना है! बच्चे पाठ्य पुस्तक पढ़ कर यही जानते समझते हैं कि आर्य एक विदेशी आक्रणकारी हैं। इसी कारण देश में जातिगत मतभेद एवं अन्य भेद अभी भी कायम है। नये डीएनए अनुसंधान के परिणामों को पाठ्यपुस्तकों में स्थान देकर भारत नई पीढी को सत्य से अवगत कराना चाहिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं संस्कृति के जानकार हैं।

One thought on “क्या कभी आर्यों ने द्वविड़ों पर हमला किया था?

  • July 26, 2024 at 00:00
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    अच्छी तथ्यपरक जानकारी.

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