अर्जुनी में बेतहाशा बिजली कटौती से ग्रामीण त्रस्त, हर आधे घंटे में गुल हो रही बिजली
अर्जुनी क्षेत्र इन दिनों भीषण बिजली संकट से जूझ रहा है। एक ओर बारिश की बेरुखी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है, वहीं दूसरी ओर लगातार हो रही बिजली कटौती ने आम जनता का जीना दूभर कर दिया है। भीषण उमस भरी गर्मी में बिजली की आंख-मिचौली से ग्रामीण बुरी तरह परेशान हैं।
क्षेत्रवासियों का कहना है कि दिन हो या रात, हर आधे घंटे में बिजली गायब हो जाती है। शासन एक ओर “सरप्लस बिजली” का दावा करता है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। बिजली विभाग के अधिकारी हर बार नए बहाने देकर बिजली कटौती को जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।
“ना दिन में सुकून, ना रात में चैन”
यह कथन आज अर्जुनी के हालात को पूरी तरह बयां करता है। उमस भरी गर्मी में लोग बिना बिजली के परेशान हैं। सुबह से ही बिजली की सप्लाई अनियमित हो जाती है, और रात को भी कुछ मिनट की राहत के बाद फिर कटौती शुरू हो जाती है।
सभी वर्ग प्रभावित – छात्र, किसान, व्यापारी और बुजुर्ग बेहाल
इस बिजली संकट से न केवल घरेलू उपभोक्ता परेशान हैं, बल्कि छात्र, व्यापारी, दुकानदार, किसान और बीमार बुजुर्ग भी भारी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। पढ़ाई ठप है, दुकानें खाली पड़ी हैं, और खेतों में काम करना भी चुनौती बन गया है।
दोपहर की चिलचिलाती गर्मी में पंखे बंद हो जाते हैं, पानी की मोटर नहीं चलती, और घरों में बैठना भी कठिन हो गया है। कई परिवारों ने तो इन हालात में जनरेटर या इनवर्टर का सहारा लेना शुरू कर दिया है, लेकिन हर कोई यह खर्च नहीं उठा सकता।
शिकायतों पर भी कोई असर नहीं, “लाइन फॉल्ट” बन गया बहाना
स्थानीय लोग कई बार विद्युत विभाग और प्रशासन से शिकायतें कर चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। विभागीय अधिकारियों से बात करने पर हर बार “लाइन फॉल्ट”, “मेंटेनेंस कार्य”, या “बंदर के कूदने” जैसे जवाब मिलते हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि महीने भर में मेंटेनेंस के नाम पर कई बार बिजली काटी जा चुकी है, लेकिन फिर भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। सवाल यह उठता है कि आखिर यह मेंटेनेंस कब पूरा होगा? और क्या हर बार बंदर ही बिजली व्यवस्था को ठप कर रहा है?
ग्रामीणों ने की प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग
लगातार हो रही इस लापरवाही से नाराज ग्रामीणों ने प्रशासन से जल्द ठोस कदम उठाने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे आंदोलन करने पर मजबूर होंगे।


