futuredइतिहास

अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस : संवाद और सभ्यता का सेतु

संध्या शर्मा (फ़ीचर एडिटर)

हर साल 30 सितंबर को पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन अनुवादकों और भाषा विशेषज्ञों को समर्पित है, जो भाषाओं की दीवारों को तोड़कर लोगों और संस्कृतियों को जोड़ते हैं। अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस की शुरुआत 1953 में अंतरराष्ट्रीय अनुवादक संघ (FIT) ने की थी और 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे आधिकारिक मान्यता दी। इससे यह दिवस और भी व्यापक और वैश्विक हो गया। यह दिन संत जेरोम की स्मृति में चुना गया, जिन्होंने बाइबल का लैटिन में अनुवाद किया था। उन्हें अनुवादकों का संरक्षक संत माना जाता है।

मानव सभ्यता के विकास में अनुवाद का योगदान बहुत गहरा है। प्राचीन काल में ही गिलगमेश महाकाव्य का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ, जिसने सभ्यताओं के बीच संवाद की नींव रखी। हिब्रू बाइबल का ग्रीक में अनुवाद धार्मिक और दार्शनिक विचारों के प्रसार का माध्यम बना। मध्ययुग में जब यूरोप में ग्रीक दार्शनिकों को भुला दिया गया था, तब अरबी विद्वानों ने उनके ग्रंथों का अनुवाद कर उन्हें जीवित रखा। यही कार्य बाद में यूरोप के पुनर्जागरण की आधारशिला बने। रोज़ेटा स्टोन की खोज और उसके अनुवाद ने मिस्र की प्राचीन सभ्यता के रहस्यों को खोल दिया।

See also  2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खांसी की सिरप देना पूर्णतः प्रतिबंधित

भारत में भी अनुवाद की परंपरा उतनी ही पुरानी और समृद्ध है। मुगल काल में संस्कृत ग्रंथों जैसे महाभारत और रामायण का फारसी में अनुवाद हुआ, जिससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला। चार्ल्स विल्किंस ने 1784 में भगवद्गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया, जिसने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन से परिचित कराया। बाद में वेदों और उपनिषदों के अंग्रेजी अनुवादों ने भी भारत की आध्यात्मिक धरोहर को वैश्विक पहचान दिलाई। रवींद्रनाथ टैगोर और प्रेमचंद जैसे लेखकों के कार्य जब अन्य भाषाओं में पहुँचे, तो भारत का साहित्य और अधिक समृद्ध और प्रभावशाली बन गया।

अनुवाद के लाभ अनगिनत हैं। यह संस्कृतियों को जोड़ता है, प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं को संरक्षित करता है और शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान को सुलभ बनाता है। आर्थिक दृष्टि से भी अनुवाद की भूमिका अहम है, क्योंकि यह देशों के बीच व्यापार और संवाद को सहज बनाता है। शांति और समझ की दिशा में भी इसका महत्व कम नहीं है, संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों में बहुभाषी वार्ताओं को संभव बनाने में अनुवादकों की भूमिका मूलभूत है।

See also  शरद पूर्णिमा पर काव्य-गोष्ठी आयोजित

हालाँकि कभी-कभी गलत अनुवाद बड़ी समस्याएँ भी खड़ी कर देते हैं। इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं, जब एक शब्द की गलत व्याख्या ने तनाव और संघर्ष को जन्म दिया। फिर भी, इन चुनौतियों के बावजूद, अनुवाद ने मानवता को अधिक लाभ ही दिए हैं।

आज के वैश्वीकरण के युग में अनुवाद की भूमिका और व्यापक हो गई है। यह सिर्फ तकनीकी कौशल नहीं, बल्कि एक कला है, जिसमें संवेदनशीलता और रचनात्मकता दोनों की जरूरत होती है। डिजिटल अनुवाद उपकरणों के बावजूद मानवीय अनुवाद की महत्ता कम नहीं हुई है, क्योंकि मनुष्य ही भावनाओं और सांस्कृतिक गहराई को सही ढंग से व्यक्त कर सकता है।

हर साल अंतरराष्ट्रीय अनुवादक संघ इस दिवस के लिए एक थीम तय करता है। ये थीमें हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि अनुवाद केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर, कला और मानवीय समझ का सेतु है। इसी क्रम में विभिन्न देशों में वेबिनार, प्रतियोगिताएँ और चर्चाएँ होती हैं, जिनमें अनुवाद की चुनौतियों और संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया जाता है।

See also  लिमतरा: जहाँ चार पीढ़ियों ने निभाई भगवान श्रीराम की भूमिका, आज भी जीवंत है रामलीला की परंपरा

अंततः, अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस हमें यह याद दिलाता है कि अनुवाद ही वह धागा है जो मानव सभ्यता की विविधता को एकजुट करता है। यह अतीत से भविष्य तक विचारों और संस्कृतियों को जोड़ता है। अनुवाद के कारण ही हम एक-दूसरे को बेहतर समझ पाते हैं और दुनिया एक वैश्विक परिवार की ओर अग्रसर होती है।