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छत्तीसगढ़ की प्राचीन शैव परंपरा और प्रमुख शिवालय

प्रो अश्विनी केशरवानी

प्राचीन छत्तीसगढ़ पर दृष्टिपात करें तो हमें इस क्षेत्र में वैष्णव मंदिर, देवी मंदिर बहुतायत में मिलते हैं, वहीं शैव मंदिर अपनी गौरव गाथा कहते नहीं थकते। छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से आज तक अनेक धार्मिक आयोजनों का समन्वय स्थल रहा है। नदी-नाले का किनारा हो या तालाब का तट, छोटे रूप में शिव मंदिर अवश्य देखने को मिलते हैं। प्राचीन काल से ही यहां शैव परंपरा अत्यंत समृद्ध थी। कलचुरि राजाओं ने विभिन्न स्थानों पर शिव मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें चंद्रचूड़ महादेव (शिवरीनारायण), बुद्धेश्वर महादेव (रतनपुर), पातालेश्वर महादेव (अमरकंटक), पलारी, पुजारीपाली, गंडई-पंडरिया के शिव मंदिर प्रमुख हैं। इसके समकालीन कुछ अन्य शिव मंदिर भी बने, जिनमें पीथमपुर का कालेश्वरनाथ और शिवरीनारायण में महेश्वरनाथ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

शिव मंदिरों का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

छत्तीसगढ़ के अधिकांश शिव मंदिर सृजन और कल्याण के प्रतीक के रूप में निर्मित हुए हैं। लिंग रहस्य और लिंगोपासना के बारे में स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार:

आकाशं लिंगमित्याहु पृथिवी तस्य पीठिका।
आलयः सर्व देवानां लयनाल्लिंग मुच्यते।।

अर्थात्, आकाश लिंग है और पृथ्वी उसकी पीठिका। सभी देवताओं का आलय में लय होता है, इसलिए इसे लिंग कहते हैं। हिन्दू धर्म में शिव का स्वरूप अत्यंत उदात्त रहा है। पल में रूष्ट और पल में प्रसन्न होने वाले, मनोवांछित वर देने वाले औघड़दानी महादेव ही हैं।

वंश परंपरा को जीवित रखने के लिए राजा हो या रंक, सभी को मनौती मानने, तीर्थयात्रा करने और पूजा-यज्ञादि करने पड़ते थे। तात्कालीन साहित्य में इसका उल्लेख मिलता है। देव संयोग से उनकी मनौतियाँ पूरी होती थीं और देवी-देवताओं के मंदिर इन्हीं मनौतियों की पूर्णता पर बनाए जाते थे, जो कालांतर में उनके कुलदेवता के रूप में पूजित हुए। छत्तीसगढ़ में औघड़दानी महादेव को वंशधर के रूप में पूजा जाता है। खरौद के लक्ष्मणेश्वर महादेव को वंशधर के रूप में पूजा जाता है, जहाँ लखेसर चढ़ाया जाता है। हसदो नदी के तट पर प्रतिष्ठित कालेश्वरनाथ महादेव वंशवृद्धि के लिए सुविख्यात हैं। इसी प्रकार, माखन साव के वंश को महेश्वर महादेव ने बढ़ाया। इन्हीं के पुण्य प्रताप से बिलाईगढ़-कटगी के जमींदार की वंशबेल बढ़ी। जमींदार श्री प्रानसिंह बहादुर ने माघ सुदी 01, संवत् 1894 में नवापारा गांव महेश्वर महादेव के भोग-रागादि के लिए चढ़ाकर पुण्य कार्य किया।

भगवान शिव का स्वरूप और लिंगोपासना

भगवान शिव अक्षर, अव्यक्त, असीम, अनंत और परात्पर ब्रह्म हैं। उनका देव स्वरूप सबके लिए वंदनीय है। शिवपुराण के अनुसार, सभी प्राणियों के कल्याण के लिए भगवान शंकर लिंग रूप में विभिन्न नगरों में निवास करते हैं। उपासकों की भावना के अनुसार भगवान शंकर विभिन्न रूपों में दर्शन देते हैं। वे कहीं ज्योतिर्लिंग रूप में, कहीं नंदीश्वर, कहीं नटराज, कहीं अर्द्धनारीश्वर, कहीं अष्टतत्वात्मक, कहीं गौरीशंकर, कहीं पंचमुखी महादेव, कहीं दक्षिणामूर्ति, तो कहीं पार्थिव रूप में प्रतिष्ठित होकर पूजित होते हैं। शिवपुराण में द्वादश ज्योतिर्लिंग के स्थान निर्देश के साथ-साथ कहा गया है कि जो इन 12 नामों का प्रातःकाल उच्चारण करेगा, उसके सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं।

लिंग रहस्य और लिंगोपासना के बारे में स्कंदपुराण में वर्णन है कि भगवान महेश्वरनाथ अलिंग हैं, प्रकृति ही प्रधान लिंग है। महेश्वर निर्गुण हैं, प्रकृति सगुण है। प्रकृति या लिंग के ही विकास और विस्तार से विश्व की सृष्टि होती है। अखिल ब्रह्मांड लिंग के अनुरूप बनता है। सारी सृष्टि लिंग के अंतर्गत है, लिंगमय है और अंत में लिंग में ही सारी सृष्टि का लय भी हो जाता है। ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात—ये पाँच शिव जी की विशिष्ट मूर्तियाँ हैं, जिन्हें इनका पंचमुखी स्वरूप कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार, शिव की प्रथम मूर्ति क्रीडा, दूसरी तपस्या, तीसरी लोकसंहार, चौथी अहंकार और पाँचवीं ज्ञान प्रधान होती है। छत्तीसगढ़ में शिव जी के प्रायः सभी रूपों के दर्शन होते हैं।

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प्रमुख शिव मंदिर

लक्ष्मणेश्वर महादेव

जांजगीर-चांपा जिले में जांजगीर से 60 किमी, बिलासपुर से 64 किमी, कोरबा से 110 किमी, रायगढ़ से 106 किमी और राजधानी रायपुर से 125 किमी की दूरी पर, बलौदाबाजार के रास्ते और छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक तीर्थ शिवरीनारायण से 2-2.5 किमी की दूरी पर खरौद स्थित है। शिवाकांक्षी होने के कारण इसे “छत्तीसगढ़ की काशी” कहा जाता है। यहाँ के प्रमुख आराध्य देव लक्ष्मणेश्वर महादेव हैं, जो उन्नत किस्म के “लक्ष्य लिंग” के पार्थिव रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित हैं। मंदिर के चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के भीतर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है, जिसके ऊपर 48 फीट ऊँचा और 30 फीट गोलाई वाला भव्य मंदिर स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में “लक्ष्यलिंग” स्थित है, जिसे “लखेश्वर महादेव” भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें एक लाख शिवलिंग हैं। बीच में एक पातालगामी अक्षय छिद्र है, जो मंदिर के बाहर स्थित कुंड से संबंधित है। शबरीनारायण माहात्म्य के अनुसार, इस महादेव की स्थापना श्रीराम ने लक्ष्मण की विनती पर लंका विजय के निमित्त की थी। इस नगर को “छत्तीसगढ़ की काशी” कहा जाता है। इनकी महिमा अवर्णनीय है। सावन और महाशिवरात्रि में यहाँ दर्शनार्थियों की अपार भीड़ होती है। कवि श्री बटुकसिंह चौहान इसकी महिमा गाते हैं:

जो जाये स्नान करि, महानदी गंग के तीर।
लखनेश्वर दर्शन करि, कंचन होत शरीर।।
सिंदूरगिरि के बीच में, लखनेश्वर भगवान।
दर्शन तिनको जो करे, पावे परम पद धाम।।

मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तंभ हैं। इनमें से एक स्तंभ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार, दूसरे स्तंभ में राम चरित्र से संबंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से संबंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरुष और दंडधारी पुरुष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्तियाँ स्थित हैं। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्तियाँ हैं। महामहोपाध्याय गोपीनाथ राव द्वारा लिखित “आइकनोग्राफी ऑफ इंडिया” तथा आर. आर. मजुमदार की “प्राचीन भारत” में इस दृश्य का चित्रण मिलता है। खरौद में छत्तीसगढ़ का अत्यंत प्राचीन शैव मठ है। इस मठ के महंत निहंग बैरागी लोग थे। इसी प्रकार, दूसरा शैव मठ पीथमपुर में था। छत्तीसगढ़ में अनेक राजा, महाराजा और मालगुजार बैरागी लोग हुए हैं।

कालेश्वर महादेव

जांजगीर-चांपा जिले में जांजगीर से 10 किमी, चांपा से 8 किमी और बिलासपुर से 80 किमी की दूरी पर हसदो नदी के तट पर पीथमपुर स्थित है। यह नगर यहाँ स्थित “कालेश्वर महादेव” के कारण सुविख्यात है। चांपा के पंडित छविनाथ द्विवेदी ने “कालेश्वरनाथ माहात्म्य स्तोत्रम” संवत् 1987 में लिखा था। उसके अनुसार, पीथमपुर के इस शिवलिंग का उद्भव चैत कृष्ण प्रतिपदा, संवत् 1940 को हुआ। मंदिर का निर्माण संवत् 1949 में आरंभ हुआ और 1953 में पूरा हुआ। खरियार के राजा वीर विक्रम सिंहदेव ने कालेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना कर वंशवृद्धि का लाभ प्राप्त किया था। खरियार के युवराज डॉ. जे. पी. सिंहदेव ने बताया, “मेरे दादा स्व. राजा वीर विक्रम सिंहदेव ने वास्तव में वंशवृद्धि के लिए पीथमपुर जाकर कालेश्वर महादेव की पूजा और मनौती की थी। उनके आशीर्वाद से दो पुत्र—क्रमशः आरतातनदेव, विजयभैरवदेव और दो पुत्रियाँ—कनक मंजरी देवी और शोभज्ञा मंजरी देवी हुईं और हमारा वंश बढ़ गया।” अनेक दृष्टांत वंशवृद्धि के इसकी पुष्टि करते हैं।

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चंद्रचूड़ महादेव

जांजगीर-चांपा जिले में जांजगीर से 67 किमी, बिलासपुर से 67 किमी की दूरी पर छत्तीसगढ़ की पुण्यतोया नदी महानदी के तट पर शिवरीनारायण स्थित है। जोंक, शिवनाथ और महानदी का त्रिवेणी संगम होने के कारण इसे “प्रयाग” की मान्यता है। यहाँ भगवान नारायण के मंदिर के सामने पश्चिमाभिमुख चंद्रचूड़ महादेव स्थित हैं। मंदिर के द्वार पर एक विशाल नंदी की मूर्ति है। बगल में एक जटाधारी किसी राजपुरुष की मूर्ति है। गर्भगृह में चंद्रचूड़ महादेव और हाथ जोड़े कलचुरि राजा-रानी की प्रतिमा है। मंदिर के बाहर संवत् 919 का एक शिलालेख है। इसके अनुसार, कुमारपाल नामक कवि ने इस मंदिर का निर्माण कराया और भोजनादि की व्यवस्था के लिए चिचोली नामक गाँव दान में दिया। इस शिलालेख में रतनपुर के कलचुरि राजाओं की वंशावली दी गई है। यहाँ का माहात्म्य बटुकसिंह चौहान के मुख से सुनिए:

महानदी गंग के संगम में, जो किन्हे पिंड कर दान।
सो जैहै बैकुंठ को, कही बटुकसिंह चौहान।।

महेश्वर महादेव

शिवरीनारायण में ही महानदी के तट पर छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध मालगुजार श्री माखन साव के कुलदेव महेश्वर महादेव और कुलदेवी शीतला माता का भव्य मंदिर, बरमबाबा की मूर्ति और सुंदर घाट है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित मालिकराम भोगहा द्वारा लिखित “श्रीशबरीनारायण माहात्म्य” के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण संवत् 1890 में माखन साव के पिता श्री मयाराम साव और चाचा श्री मनसाराम और सरधाराम साव ने कराया। माखन साव भी धार्मिक, सामाजिक और साधु व्यक्ति थे। महेश्वरनाथ के वरदान से ही माखन साव के वंश की वृद्धि हुई और आज विशाल वटवृक्ष की भाँति फैला हुआ है। महेश्वरनाथ के आशीर्वाद से बिलाईगढ़-कटगी के जमींदार के वंश की वृद्धि हुई, जिससे प्रसन्न होकर बिलाईगढ़ के जमींदार श्री प्रानसिंह ने माघ सुदी 01, संवत् 1894 में नवापारा गाँव इस मंदिर के व्यवस्था और भोग-राग आदि के लिए चढ़ाया था। शिवरीनारायण के अलावा हसुवा, टाटा और लखुर्री में महेश्वर महादेव और झुमका में बजरंगबली का भव्य मंदिर है। हसुवा के महेश्वर महादेव के मंदिर को माखन साव के भतीजे और गोपाल साव के पुत्र बैजनाथ साव, लखुर्री के महेश्वरनाथ मंदिर को सरधाराम साव के प्रपौत्र प्रयाग साव ने और झुमका के बजरंगबली के मंदिर को बहोरन साव ने बनवाया। इसी प्रकार, टाटा के घर में अंडोल साव ने शिवलिंग स्थापित कराया था। माखन वंश द्वारा निर्मित सभी मंदिरों के भोग-राग की व्यवस्था के लिए कृषि भूमि निकाली गई थी। इससे प्राप्त अनाज से मंदिरों में भोग-राग की व्यवस्था होती थी। आज भी ये सभी मंदिर बहुत अच्छी स्थिति में हैं और उनके वंशजों द्वारा सावन मास में श्रावणी पूजा और महाशिवरात्रि में अभिषेक किया जाता है।

पातालेश्वर महादेव

बिलासपुर जिला मुख्यालय से 32 किमी की दूरी पर बिलासपुर-शिवरीनारायण मार्ग में मस्तूरी से जोंधरा जाने वाली सड़क के पार्श्व में प्राचीन ललित कला केंद्र मल्हार स्थित है। यहाँ दूसरी सदी की विष्णु की प्रतिमा मिली है और ईसा पूर्व छठवीं से तेरहवीं शताब्दी तक का क्रमबद्ध इतिहास मिलता है। यहाँ का पातालेश्वर महादेव जग प्रसिद्ध है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, कलचुरि राजा जाज्वल्यदेव द्वितीय के शासनकाल में संवत् 1919 में पंडित गंगाधर के पुत्र सोमराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया। भूमिज शैली के इस मंदिर में पातालगामी छिद्र युक्त पातालेश्वर महादेव स्थित हैं। इस मंदिर की आधार पीठिका 108 कोणों वाली है और नौ सीढ़ियाँ उतरना पड़ता है। प्रवेश द्वार की पट्टिकाओं में दाहिनी ओर शिव-पार्वती, ब्रह्मा-ब्रह्माणी, गजासुर संहारक शिव, चैसर खेलते शिव-पार्वती, ललितासन में प्रेमासक्त विनायक और विनायिका और नटराज प्रदर्शित हैं।

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बुद्धेश्वर महादेव

बिलासपुर जिला मुख्यालय से 22 किमी की दूरी पर प्राचीन छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर स्थित है। यहाँ कलचुरि राजाओं का वर्षों तक एकछत्र शासन था। यहाँ उनके कुलदेव बुद्धेश्वर महादेव और कुलदेवी महामाया थीं। डॉ. प्यारेलाल गुप्त के अनुसार, तुम्माण के बंकेश्वर महादेव की कृपा से कलचुरि राजाओं को दक्षिण कोसल का राज्य मिला था। उनके वंशज राजा पृथ्वीदेव ने यहाँ बुद्धेश्वर महादेव की स्थापना की थी। इसकी महिमा अपार है। मंदिर के सामने एक विशाल कुंड है।

पाली का शिव मंदिर

बिलासपुर जिला मुख्यालय से अंबिकापुर रोड पर 50 किमी की दूरी पर पाली स्थित है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्राचीन रतनपुर का विस्तार दक्षिण-पूर्व में 12 मील दूर पाली तक था, जहाँ एक अष्टकोणीय शिल्पकला युक्त प्राचीन शिव मंदिर एक सरोवर के किनारे है। मंदिर का बाहरी भाग नीचे से ऊपर तक कलाकार की छेनी से अछूता नहीं बचा है। चारों ओर अनेक कलात्मक मूर्तियाँ इस चतुराई से अंकित हैं, मानो वे बोल रही हों—देखो, अब तक हमने कला की साधना की है, तुम पूजा के फूल चढ़ाओ। मध्य युगीन कला की शुरुआत इस क्षेत्र में इसी मंदिर से हुई प्रतीत होती है। खजुराहो, कोणार्क और भोरमदेव के मंदिरों की तरह यहाँ भी काम कला का चित्रण मिलता है।

रुद्रेश्वर महादेव

बिलासपुर से 27 किमी की दूरी पर रायपुर राजमार्ग पर भोजपुर ग्राम से 7 किमी और बिलासपुर-रायपुर रेल लाइन पर दगौरी स्टेशन से मात्र डेढ़ किमी दूर अमेरीकापा ग्राम के समीप मनियारी और शिवनाथ नदी के संगम के तट पर ताला स्थित है, जहाँ शिव जी की अद्भुत रुद्र शिव की 9 फीट ऊँची और पाँच टन वजनी विशाल ऊर्ध्वरेतस प्रतिमा है, जो अब तक ज्ञात समस्त प्रतिमाओं में उच्चकोटि की है। जीव-जंतुओं को बड़ी सूक्ष्मता से उकेरकर संभवतः उसके गुणों के सहधर्मी प्रतिमा का अंग बनाया गया है।

गंधेश्वर महादेव

रायपुर जिले में प्राचीन नगर सिरपुर महानदी के तट पर स्थित है। यह नगर प्राचीन ललित कला के पाँच केंद्रों में से एक है। यहाँ गंधेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है, जो आठवीं शताब्दी का है। माघ पूर्णिमा को यहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है।

कुलेश्वर महादेव

रायपुर जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्वी दिशा में 50 किमी की दूरी पर महानदी के तट पर राजिम स्थित है। यहाँ भगवान राजीव लोचन, साक्षी गोपाल, कुलेश्वर और पंचमेश्वर महादेव सोढुल, पैरी और महानदी के संगम के कारण पवित्र, पुण्यदायी और मोक्षदायी हैं। यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से 15 दिवसीय मेला लगता है। इस नगर को छत्तीसगढ़ शासन ने पर्यटन स्थल घोषित किया है।

अन्य शिव मंदिर

इसके अलावा पलारी, पुजारीपाली, गंडई-पंडरिया, बेलपान, सेमरसल, नवागढ़, देवबलौदा, महादेवघाट (रायपुर), चांटीडीह (बिलासपुर) और भोरमदेव आदि में भी शिव जी के मंदिर हैं, जो श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक हैं। इन मंदिरों में श्रावण मास और महाशिवरात्रि में पूजा-अर्चना होती है।

छत्तीसगढ़ की धरती शिवमय है— यहाँ के ग्राम-नगर, नदी-घाट, संस्कृति और जनमानस में भगवान शिव के विविध रूपों का स्थायी स्थान है। शैव परंपरा का यह जीवंत संरक्षण हमारे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की अमूल्य निधि है।

डागा कालोनी चांपा

जिला जांजगीर चांपा, छत्तीसगढ़