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पुस्तक -चर्चा आँसू ल पी थे महतारी ; एकांत श्रीवास्तव का कविता -संग्रह ‘अँजोर

छत्तीसगढ़ी नई कविताओं के हिन्दी अनुवाद सहित एकांत श्रीवास्तव का नया संग्रह ‘अँजोर’ अपने शीर्षक के अनुरूप कविता की दुनिया में नई रौशनी लेकर आया है। संग्रह में 42 छत्तीसगढ़ी कविताओं के साथ -साथ उनके हिन्दी अनुवाद भी दिए गए हैं। यानी एक पृष्ठ पर छत्तीसगढ़ी तो दूसरे पृष्ठ पर उसका हिन्दी अनुवाद। देखा जाए तो यह उनका एक नया प्रयोग है।इन छत्तीसगढ़ी नई कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी स्वयं कवि एकांत श्रीवास्तव ने किया है।

हिन्दी की सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘वागर्थ ‘ के नौ साल तक सम्पादक रहे एकांत छत्तीसगढ़ में ही जन्मे और पले-बढ़े हैं। राजिम के पास ग्राम कोमा में उनका बचपन बीता। आगे चलकर वह भारत सरकार के राजभाषा विभाग में अधिकारी बने । फरवरी 2024 में सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अभी दिल्ली में रहते हैं। हिंदी जगत के प्रसिद्ध कवि होने के साथ -साथ वह कहानीकार और समीक्षक भी हैं।

प्रकाशन संस्थान ,नईदिल्ली द्वारा पिछले वर्ष 2023 में प्रकाशित उनका यह संग्रह ‘अँजोर’ 168 पृष्ठों का है, जिसे उन्होंने उन्हीं के शब्दों में कवि त्रिलोचन (शास्त्री ) की अवधी में रचित काव्य -कृति ‘अमोला’ को और छत्तीसगढ़ की मिट्टी ,जिसका नाम कन्हार है और इसके सीधे-सच्चे रहवासियों को और कोरोना काल में खो गए तमाम प्रियजनों और कवि -लेखक बंधुओं को याद करते हुए समर्पित किया है। चूंकि एकांत छत्तीसगढ़ में जन्मे और यहाँ के ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े हैं , इसलिए उनके इस संग्रह में छत्तीसगढ़ के गाँवों की और यहाँ के लोकजीवन की सोंधी महक महसूस की जा सकती है।

संग्रह में ‘मनुख के गीत गाओ ‘ शीर्षक से 21 पृष्ठों में भूमिका जयप्रकाश ने लिखी है, जिसमें उन्होंने एकांत की इन कविताओं के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला है। कवि एकांत ‘इन कविताओं के बारे में’शीर्षक अपने आत्मकथ्य में कहते हैं -“इनमें झाँक रहा गाँव एक भूला-बिसरा गाँव है ,जो अब आधा ही बचा है।कला या कविता उस आधे खो गये गाँव की खोज का ही रचनात्मक प्रयत्न है। उस गाँव और उस जीवन के साथ मूल्य भी पीछे छूट गये हैं,जो जीवन और सभ्यता के प्रत्येक समय आधार स्तंभ हैं।इस तरह परम्परा अधुनातन होती है । भारतीय संस्कृति के ‘अग्राह्य’ को त्यागकर ग्राह्य को स्वीकार करना ही कविता और समाज का धर्म है ।” कवि एकांत के शब्दों में -“हिंदी की बड़ी कविता बोली की कविता है । ”

एकांत की एक छत्तीसगढ़ी कविता ‘पियास ‘ (प्यास) का एक अंश देखिए –
“फूल के रस ल फुलचुहकी पीथे
आँसू ल पीथे महतारी ,
मइनसे के लहू ल टोनही चुहकथे ,
गौंटिया ह पी थे गरीब के पछीना ।
कोन पानी ल पियँव के
माढ़ जाए मोरो पियास ,
कोन रद्दा जाँव ,
तैं मोला बता दे ,
कोन गाँव ,कही दे संगवारी ।
कुँवार के घाम म देहे करियागे,
भुंजागे सब्बो बन -कांदी,
अंतस के दोना म मया के पानी
एक घुटका पी लेतेंव
त तर जातेंव ।

कवि ने वर्ष 2002 की अपनी इस कविता की इन पंक्तियों का हिंदी अनुवाद इस तरह किया है –
“फूल के रस को फूलचुहकी पीती है ,
आँसू को पीती है माँ ,
जादूगरनी पीती है मानुष का रक्त ,
साहूकार पीता है गरीब का पसीना ।
कौन -सा जल पियूँ
कि बुझ जाए मेरी भी प्यास ,
किस रास्ते जाऊँ
कौन -सा गाँव ?
मुझे तुम बता दो ओ संगी मेरे ।
कुँवार की धूप में
काली पड़ गयी काया,
जल गई घास और जंगल ,
तर जाता यदि एक घूँट पी लेता ,
हॄदय के दोने में प्रेम का जल ।”

कोई भी कवि स्वभाव से ही भावुक और संवेदनशील होता है।
एकांत श्रीवास्तव की इन कविताओं में भी अपनी माटी से जुड़ी भावुकता और संवेदनशीलता बहुत गहराई से रची -बसी है।

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