आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय: भारतीय परंपरा, दर्शन और संस्कृति के समर्पित शोध साधक
भारत की सांस्कृतिक परंपराएं और उसका आध्यात्मिक दर्शन विश्व को दिशा देने में सदैव अग्रणी रहे हैं। परंतु एक ओर जहां कुछ शक्तियाँ इस परंपरा को विकृत करने का प्रयास करती रहीं, वहीं दूसरी ओर ऐसी विभूतियाँ भी हुईं जिन्होंने सत्य की खोज और भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने हेतु जीवन समर्पित कर दिया। आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय ऐसी ही एक विलक्षण प्रतिभा और विचारशील मनीषी के रूप में भारतीय विद्वत्ता जगत में स्मरणीय हैं।
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय का जन्म 30 जुलाई 1923 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज क्षेत्र अंतर्गत काशीपुर में हुआ। उनके पूर्वज अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के निवासी थे, जो समय के साथ प्रयागराज आ बसे। पिता पीताम्बर दत्त पाण्डेय, भारत सरकार की लेखा सेवा में अधिकारी होने के साथ-साथ संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। माता प्रभावती देवी धार्मिक और परंपरागत मूल्यों में आस्था रखने वाली थीं। ऐसे वातावरण में बालक गोविन्द का बचपन आधुनिक शिक्षा और पारंपरिक भारतीय ज्ञान के अद्भुत संगम के साथ बीता।
शिक्षा और भाषाई दक्षता
गोविन्द चन्द्र पाण्डेय बचपन से ही अत्यंत मेधावी थे। काशीपुर स्थित विद्यालय से उन्होंने समस्त परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। साथ ही उन्होंने आचार्य रघुवीर दत्त शास्त्री एवं पं. रामशंकर द्विवेदी जैसे विद्वानों से संस्कृत, व्याकरण, साहित्य एवं शास्त्रों का अध्ययन भी किया। उच्च शिक्षा हेतु वे प्रयागराज आए, जहाँ से स्नातक और स्नातकोत्तर की सभी परीक्षाएँ सर्वोच्च अंकों से उत्तीर्ण कीं।
वर्ष 1947 में उन्होंने डी.फिल. (D.Phil.) की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने पालि, प्राकृत, फ्रेंच, जर्मन और चीनी भाषाओं का भी अध्ययन किया, जो उनके बहुभाषिक अध्ययनशील व्यक्तित्व को दर्शाता है।
लेखन व शोध कार्य
अपने जीवन में उन्होंने दर्शन, संस्कृति, साहित्य, इतिहास और वेदवाङ्मय को अपने लेखन और चिंतन का केंद्र बनाया। उनके शोध और लेखन ने भारतीय विद्या परंपरा को पुनर्परिभाषित किया।
प्रमुख कृतियाँ:
संस्कृत में प्रकाशित ग्रंथ:
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दर्शन विमर्श: (1996, वाराणसी)
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सौन्दर्य दर्शन विमर्श: (1996, वाराणसी)
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एकं सद्विप्राः बहुधा वदन्ति: (1997, वाराणसी)
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न्यायबिन्दु: (1975, सारनाथ, जयपुर)
दर्शन विषयक ग्रंथ:
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शंकराचार्य: विचार और सन्दर्भ सहित 8 ग्रंथ
संस्कृति एवं इतिहास पर आधारित:
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5 महत्वपूर्ण ग्रंथ
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वैदिक संस्कृति – वेदों की विवेचना पर आधारित प्रतिष्ठित कृति
हिन्दी साहित्य में योगदान:
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ऋग्वेद की ऋचाओं का काव्यात्मक हिन्दी अनुवाद
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ऋग्वेद का गम्भीर भाष्य एवं व्याख्या, जिसका पहला खंड 2008 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में लोकार्पित किया गया।
विशिष्टता और दृष्टिकोण
आचार्य पाण्डेय का लेखन न तो खंडन की प्रवृत्ति पर आधारित था और न ही तुलनात्मक वाद-विवाद पर। उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर भारतीय दर्शन और भाषा की सशक्त विशेषताओं को स्थापित किया। उनके विचारों की गहराई और लेखन की गंभीरता आज भी शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शक है।
सम्मान और अंतिम काल
आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय को उनके अतुलनीय योगदान के लिए वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ सम्मान से अलंकृत किया गया। 22 मई 2011 को यह महान मनीषी परम् ज्योति में विलीन हो गया, लेकिन उनका ज्ञान-संपदा आज भी भारतीय बौद्धिक परंपरा की अमूल्य धरोहर बनी हुई है।
आचार्य गोविन्द चन्द्र पाण्डेय का जीवन उन भारतीय विद्वानों के लिए आदर्श है जो अपने देश की संस्कृति, भाषा और ज्ञान को विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित करने का स्वप्न देखते हैं। वे भारतीय विद्वता, साधना और शोध की त्रिवेणी थे, जिनका लेखन और जीवन दोनों ही आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत रहेंगे।