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बलोच पत्रकार अब्दुल लतीफ बलोच की पाकिस्तान समर्थित मिलिशिया द्वारा परिवार के सामने गोली मारकर हत्या

नई दिल्ली/ बलूचिस्तान में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के बीच एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। वरिष्ठ बलोच पत्रकार अब्दुल लतीफ बलोच की अज्ञात हमलावरों ने उनके परिवार के सामने गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना केच जिले के तुर्बत इलाके में हुई, जहां अब्दुल लतीफ को उनके घर के बाहर निशाना बनाया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावर मोटरसाइकिल पर सवार थे और हमले के तुरंत बाद मौके से फरार हो गए।

स्थानीय सूत्रों और स्वतंत्र पत्रकार संगठनों का दावा है कि इस जघन्य हत्या के पीछे पाकिस्तान समर्थित एक सशस्त्र मिलिशिया समूह का हाथ है। अब्दुल लतीफ बलोच लंबे समय से बलूच मानवाधिकार उल्लंघनों, जबरन गुमशुदगी और पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग कर रहे थे। उनकी रिपोर्टिंग को बलूच आंदोलन और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच विशेष सम्मान प्राप्त था।

पत्रकारिता पर हमला, मानवाधिकारों का दमन
यह घटना न केवल पत्रकारिता पर एक सीधा हमला है, बल्कि बलूच आवाजों को दबाने की एक संगठित साजिश का भी हिस्सा मानी जा रही है। अब्दुल लतीफ की हत्या ने पूरे बलूचिस्तान में आक्रोश और शोक की लहर दौड़ा दी है। प्रेस स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस हत्या की निंदा की है और पाकिस्तान सरकार से दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।

परिवार भयभीत, प्रशासन मौन
हत्याकांड के वक्त अब्दुल लतीफ के साथ उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चे मौजूद थे। परिवार पर इस हमले का गहरा मानसिक आघात पड़ा है। स्थानीय प्रशासन ने घटना की जांच शुरू करने की बात कही है, लेकिन अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इससे पहले भी बलूचिस्तान में कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है, लेकिन ज्यादातर मामलों में न्याय नहीं मिल पाया है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने अब्दुल लतीफ की हत्या को “घिनौना अपराध” बताया है और अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की है। उनका कहना है कि पाकिस्तान में विशेषकर बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में पत्रकार लगातार खतरों का सामना कर रहे हैं और यह प्रेस की आज़ादी के लिए खतरे की घंटी है।

निष्कर्ष
अब्दुल लतीफ बलोच की हत्या एक बार फिर से इस बात को उजागर करती है कि बलूचिस्तान में सच बोलने की कीमत जान से चुकानी पड़ती है। जब तक इन हत्याओं के पीछे के ताकतवर गुटों पर लगाम नहीं लगती, तब तक बलूच आवाजें दबाई जाती रहेंगी और लोकतंत्र का एक स्तंभ लगातार कमजोर होता रहेगा।