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बन वसंत बरनत मन फूल्यौ : बसंत पंचमी विशेष

बसंत ऋतु शीतकाल के बाद और ग्रीष्म ऋतु के पहले आने वाली ऋतु है, जिसे ‘ऋतुराज’ कहा जाता है। यह आमतौर पर फरवरी से अप्रैल के बीच होती है और इसे नवजीवन, उल्लास और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। बसंत में प्रकृति खिल उठती है, पेड़-पौधों में नई कोंपलें आ जाती हैं, खेतों में सरसों के पीले फूल लहलहाते हैं और कोयल की कूक गूंजती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ और फाल्गुन मास में बसंत ऋतु होती है।

वसंत पंचमी इस ऋतु का प्रमुख पर्व है, जो देवी सरस्वती की आराधना का दिन होता है। माता सरस्वती विद्या, ज्ञान, संगीत, कला और बुद्धि की देवी हैं। संस्कृत, हिंदी, और अन्य भारतीय भाषाओं के कवियों एवं साहित्यकारों ने माता सरस्वती की वंदना अपनी रचनाओं में अनेक प्रकार से की है। वे कवि एवं लेखक देवी सरस्वती से ज्ञान, वाणी और काव्य-शक्ति की प्रार्थना करते हैं।

बसंत पंचमी भारत सहित कई देशों में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और विशेष रूप से माँ सरस्वती की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने, विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा करने, पतंग उड़ाने और अन्य सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है।

माँ सरस्वती की उत्पत्तिपौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभिक काल में जब भगवान ब्रह्मा ने मानव जाति की रचना की, तब पृथ्वी पर सब कुछ स्थिर एवं नीरस था। तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार भुजाओं वाली देवी सरस्वती प्रकट हुईं। उन्होंने पृथ्वी पर ज्ञान, संगीत और कला का संचार किया। इसी कारण बसंत पंचमी को सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है। कामदेव और रति की कथापौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव की गहन तपस्या को भंग करने के लिए देवताओं ने कामदेव को भेजा था। बसंत पंचमी के दिन कामदेव ने पुष्पबाण से भगवान शिव को प्रभावित करने का प्रयास किया। यह दिन प्रेम और आकर्षण का भी प्रतीक माना जाता है।

भारत में बसंत पंचमी विशेष रूप से उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में मनाई जाती है। नेपाल में इसे ‘श्रीपंचमी’ कहा जाता है और यह ज्ञान एवं विद्या की देवी सरस्वती की पूजा के रूप में मनाई जाती है। बांग्लादेश में बसंत पंचमी को ‘सरस्वती पूजा’ के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। ढाका और अन्य शहरों में बड़ी श्रद्धा से हिन्दू समुदाय द्वारा माँ सरस्वती की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में यह दिन विशेष रूप से पतंगबाजी और सांस्कृतिक उत्सवों के रूप में मनाया जाता है। इंडोनेशिया, थाईलैंड और मलेशिया में हिंदू संस्कृति के प्रभाव के कारण बसंत पंचमी का उत्सव सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है। मॉरीशस और फिजी में बसे भारतीय समुदाय के लोग इस दिन माँ सरस्वती की आराधना करते हैं।

भारतीय साहित्य में माता सरस्वती की आराधना एक महत्वपूर्ण परंपरा रही है। प्राचीन वेदों से लेकर आधुनिक हिंदी साहित्य तक, कवियों और लेखकों ने उनकी वंदना करते हुए विद्या, बुद्धि, वाणी और काव्य-शक्ति की प्रार्थना की है। सरस्वती को केवल एक देवी नहीं, बल्कि ज्ञान और कला का मूर्तिमान स्वरूप माना गया है। साहित्यकारों को सरस्वती पुत्र माना जाता है, वे अपनी वाणी एवं लेखन से सरस्वती की आराधना करते आए हैं।

ऋग्वेद में माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा गया है

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥

अर्थात: जो कुंद फूल और चंद्रमा के समान उज्ज्वल हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा और पुस्तक है, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा पूजित हैं, वे देवी सरस्वती मेरी जड़ता को दूर करें।)

कालिदास ने अपनी रचनाओं के प्रारंभ में माता सरस्वती की स्तुति की है

वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ॥

अर्थात: वाणी और अर्थ की तरह संलग्न शिव-पार्वती को प्रणाम करता हूँ, जो समस्त संसार के माता-पिता हैं।)

मधौ मधुरमासे च मधुरा मादनोदया:।
वनानि कुसुमोद्यानि जातसंचारगूढिनी:॥
अर्थात: मधुमास (बसंत) में प्रेम की लहर उठती है, वन उपवन फूलों से भर जाते हैं और वातावरण मधुरता से भर जाता है।

द्रुमा सपुष्पा: सलिलं सपदम, स्त्रीय सकामा: पवन: सुगंधी:।

सुखा: प्रदोषा: दिवसाश्च रम्या:, सर्व प्रिये चारुतरं वसंते।।

“वसंत ऋतु में वृक्ष पुष्पों से युक्त होते हैं, जल स्वच्छ और निर्मल होता है, स्त्रियाँ प्रेमभाव से पूर्ण होती हैं, और पवन सुगंधित होता है। संध्याकाल सुखदायी होता है, दिन भी मनोहर लगते हैं, और संपूर्ण प्रिय वस्तुएँ वसंत में और भी अधिक सुंदर प्रतीत होती हैं।

 

बसंत ॠतु पर कबीर दास  जी कहते हैं

रितु बसंत याचक भया, हरखि दिया द्रुम पात,

ताते नव पल्लव भया,दिया दूर नहिं जात।

कबीर जी कहते हैं कि बसंतु ऋतु जब याचना करता है तब वृक्ष अपने पत्ते खुशी से देता है और फिर उसमें शीघ्र ही नये और ताजे हरे पत्ते आ जाते हैं। अतः यह सत्य बात है कि कभी किसी को कुछ दिया हुआ निष्फल नहीं जाता।

 

इस संदर्भ में गोस्वामी तुलसीदास ने नारद मोह प्रसंग में इस ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है-

तेहि आस्रमहिं मदन जब गयऊ। निज माया वसंत निरमऊ।

कुसुमित विविध विटप बहुरंगा। कुजहिं कोकिल गुंजहिं भ्रंगा॥

 

 ‘मिथिला कोकिल’ उपनाम से विख्यात मैथिली कवि विद्यापति ने वसंत ऋतु का मनोहर चित्रण प्रस्तुत करते हुए लिखा है-

“नव बृंदवन नव-नव तरुगण,

नव-नव विकसित फूल।

नवल वसंत नवल मलयानिल,

मातल नव अलिकूल॥

बिहराई नवल किशोर।”

 

बसंत का बड़ा सुंदर वर्णन करते हुए पद्माकर ने कहा है-

कूलन में कोलि में कछारन में कुंजन में

क्यारिन में कलित कलीन किलकंत है

कहैं पद्माकर परागन में पौनहू में

पातन में पिक में पलासन पंगत है।

 

रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारी ने वसंत को जीवन आशा की उम्मीद से इसका वर्णन करते हुए कहा है-

इही आस अटक्यौ रहत अलि गुलाब के मूल

है है फिर वसंत ऋतु इन डारन में फूल

 

इसी वसंत का रीतिमुक्त काव्य के प्रमुख कवि घनानंद ने बड़े ही सुन्दर ढंग से लिखा है-

घुमड़ि पराग लता तस भोये, मधुरित सौरभ सौज संभोये।

बन वसंत बरनत मन फूल्यौ। लता-लता झूलनि संग झल्यौ।

 

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ प्रगतिवादी-जनवादी कविता के अग्रदूत माने जाते हैं।  उन्होंने अपनी कविता ‘जूही की कली’ में विरही बसंत का वर्णन करते हुए लिखा है।

वासंती निशा थी;

विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़

किसी दूर देश में था पवन

जिसे कहते हैं मलयानिल।

 

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में बासंती स्वर कुछ युं फूटते दिखते हैं-

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात

कोयल की कुहुक रात

प्राची में अरुणिम की रेख देख पता हूँ

गीत नया गाता हूँ।

 

बसंत ऋतु कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। कालिदास से लेकर आधुनिक हिंदी कवियों तक, सभी ने अपने काव्य में इस ऋतु की छटा बिखेरी है। बसंत को प्रेम, सौंदर्य, उल्लास और नवजीवन का प्रतीक माना जाता है, जो काव्य और साहित्य को मधुरता प्रदान करता है। बसंत पंचमी केवल ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। इसका संबंध ज्ञान, प्रेम, सौंदर्य और उल्लास से है। यह पर्व पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है।

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