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नेताजी सुभाषचंद्र बोस एवं वामपंथी विचारधारा : जयंती विशेष

डॉ ब्रजकिशोर प्रसाद सिंह

फ्रांस की क्रांति से पहले और बाद में वामपंथी विचारधारा साम्यवादी और समाजवादी वैचारिकी एवं सत्ता परिवर्तन की राजनीति में व्यक्त होती रही है। वामपंथी विचारधारा की लहरें यूरोपीय देशों की राजनीति में आती रही परंतु 1917 की रूसी क्रांति के बाद निश्चयात्मक तौर पर बलिष्ठ आकार प्राप्त हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने अनुसार वैश्विक स्तर पर परिवर्तन एवं क्रांति का विस्तार करने के लिए लेलिन द्वारा 1919 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की स्थापना कीl संक्षेप में इसे कमिंटर्न भी कहा जाता हैl कमिंटर्न उपनिवेशों के राष्ट्रवादी आंदोलन को अपनी छाया में लाना चाहता थाl सीधे तौर पर कहें तो अपने संरक्षण में लेकर निर्देशित करना चाहता थाl ऐसा रूस ने चीन में सफलतापूर्वक तब तक किया था जब तक वहां की कम्युनिस्ट पार्टी में माओ का शक्तिशाली नेतृत्व एवं वर्चस्व नहीं स्थापित हुआ

1921 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस 16 जुलाई को आईसीएस की गौरवशाली नौकरशाही से इस्तीफा देकर मुंबई आएl इंग्लैंड से वापस आते हुए इस जहाज पर विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर भी थेl टैगोर असहयोग आंदोलन से असहमत थेl नेताजी टैगोर के प्रभाव से अपने आप को बचाए रख सके तथा मुंबई में गांधी जी से बातचीत के बाद कोलकाता लौटेl देशबंधु चितरंजन दास से नेताजी का संपर्क छात्र जीवन से ही थाl इंग्लैंड से भी उन्होंने पत्र लिखा थाl गांधी जी ने कहा कि कोलकाता जाकर चितरंजन दास से अवश्य मिलेl नेताजी मिले भीl दोनों के बीच खुली बातचीत हुईl राष्ट्रवाद समेत अन्य मुद्दों पर भीl इस निकटता को इस आधार पर समझा जा सकता है कि सुभाष चंद्र बोस आईसीएस से इस्तीफा देकर आए थेl कोलकाता के छात्र जीवन के चर्चित व्यक्तित्व थेl पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी थीl लेकिन सबसे ऊपर आने वाली बात यह थी कि चितरंजन दास स्वयं भी आईसीएस की परीक्षा में बैठे थे और सफल नहीं हो पाए थेl तो उनके सामने एक ऐसा युवक बैठा था जो आईसीएस में सेलेक्ट होने के बाद उस शक्तिशाली सेवा से इस्तीफा देकर आया थाl सुभाष चंद्र बोस देशबंधु चितरंजन दास के सर्वप्रिय कार्यकर्ता बनेl कांग्रेस में स्थान मिलाl कांग्रेस स्वराज पार्टी के सचिव बनाए गएl कोलकाता में बड़ा और उभरता हुआ व्यक्तित्व था सुभाष चंद्र बोस काl आईसीएस से इस्तीफा देने वाला एकमात्र युवा और विचारशील नेता जिसने देश के लिए अपने व्यक्तिगत हित को छोड़ दिया थाl यह निश्चित था कि आने वाले समय में सुभाष चंद्र बोस भारत की राजनीति में बड़ा स्थान प्राप्त करेंगेl

1920 के वर्ष  ताशकंद शहर में एम एन राय ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कीl उनके साथ सात युवा नेता थेl वे लेनिन के घनिष्ठ सहयोगी और विश्वास पात्र के रूप में जाने जाते थेl 1921 के वर्ष कमिंटर्न का तीसरा अधिवेशन मास्को में आयोजित हुआ थाl इस सम्मेलन में 29 देश से 61 प्रतिनिधि आए थेl अगले वर्ष 1922 में पेट्रोग्राड एवं मास्को में चौथा अधिवेशन आयोजित किया गयाl 58 देश के 408 प्रतिनिधि इस अधिवेशन में उपस्थित थेl इस अधिवेशन हेतु देशबंधु चितरंजन दास के पुत्र चीर रंजन दास तथा सुभाष चंद्र बोस को आमंत्रित किया था गया थाl कमिंटर्न ने भी महसूस कर लिया कि सुभाष चंद्र बोस के माध्यम से भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का विकास किया जा सकता हैl इस अधिवेशन में इन दोनों का जाना संभव नहीं हो पाया क्योंकि पुलिस की तरफ से इस पत्र को रोका गया थाl इस दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विदेश से आए दो साम्यवादी युवा नेताओं अवनी मुखर्जी तथा नलिनी गुप्ता को सहारा एवं संरक्षण दिया थाl

दिसंबर 1925 में वामपंथी समूह का एकीकरण हुआ जब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की गईl शुरुआती दौर के कम्युनिस्ट के राजनीतिक कार्य का मुख्य आधार था मजदूरों और किसानों के दलों को संगठित करनाl इसके प्रमुख नेता थे मुजफ्फर अहमद, नज़रुल इस्लाम और सुभाष चंद्र बोस के बाल सखा हेमंत कुमार सरकार l इसी तरह पंजाब में कीर्ति किसान पार्टी की स्थापना की गईl

इस दौरान सुभाष चंद्र बोस ब्रिटिश शासन द्वारा क्रांतिकारी गतिविधियों में संलिप्तता के आधार पर मांडले जेल में रखे गए थेl जेल से छूट और  स्वास्थ्य लाभ कर राजनीति में सक्रिय हुएl 1928 में का कमिंटर्न का छठा अधिवेशन आयोजित किया गया जिसमें लेनिन द्वारा अपनाई गई संयुक्त मोर्चा की नीति को छोड़ दिया गयाl नई नीति का प्रस्तुतीकरण बुखारिन द्वारा किया गयाl इस नीति के अनुसार कम्युनिस्ट आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन से अलग हो जाना थाl अब आरोप लगाए जाने लगे की सुभाष, जवाहरलाल और गांधी श्रमिक वर्गों के खिलाफ हैं और पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधि हैl सुभाष चंद्र बोस ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे लेकिन वामपंथी गुट रणदीवे और देशपांडे के नेतृत्व में अलग हो गयाl इन्होंने अलग ट्रेड यूनियन बना लीl

1933 में इंडियन पॉलिटिकल कॉन्फ्रेंस में कमिंटर्न की अंतरराष्ट्रीय प्रेस सर्विस  ने सुभाष के भाषण की कड़ी आलोचना की l समाचार पत्र के अनुसार गांधी के साथ सुभाष के मतभेद केवल कुछ डिग्री का मामला है l दोनों ही एक समान क्रांतिकारी हिंसा को हतोत्साहित करते हैंl

त्रिपुरी अधिवेशन के बाद जब सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस की अध्यक्षता से इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा तो उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन कियाl फॉरवर्ड ब्लॉक से  कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया दिसंबर 1939 में अलग हो गईl इस समय हीरेंद्र नाथ मुखर्जी ने कहा कि सच्चे क्रांतिकारी समाजवाद के अभाव में सुभाष का कार्यक्रम असफल होना थाl इसी तरह पीसी जोशी ने 1940 के एक लेख में आलोचना करते कहा कि सुभाष स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू नहीं कर रहे हैंl

सुभाष चंद्र बोस के आकलन में विश्व युद्ध आने ही वाला था और इस दौरान वे सोवियत रूस से सहयोग प्राप्त कर आजाद हिंद फौज प्रकार का संघर्ष करना चाहते थेl इस सहायता के लिए उन्होंने एक पत्र अपने भतीजे अमिय नाथ बोस के माध्यम से इंग्लैंड में रूसी दूतावास को हाथों-हाथ भेजा थाl लेकिन इसका कोई उत्तर नहीं आयाl

इसके बाद सुभाष चंद्र बोस अपनी गोपनीय यात्रा पर निकल पड़ेl इस यात्रा में कीर्ति किसान पार्टी के समर्थक भगत राम तलवार ने उनकी सहायता की थीlकाबुल होते मास्को होते जर्मनी पहुंचेl मास्को के हवाई अड्डे से उन्होंने रूस के सत्ता धारी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिलीl फिर वह जर्मनी पहुंचेl जब जर्मनी ने सोवियत रूस पर हमला कर दिया तो स्टालिन ने 1943 में कमिंटर्न को भंग कर दिया तथा अपने हित के लिए अंग्रेजों एवं मित्र राष्ट्रों से हाथ मिला लियाl भारतवर्ष में कम्युनिस्ट पार्टी पर लगाया गया बैन उठा लिया गया तथा वे सरकार के पक्ष में काम करने लगेl

वर्ल्ड वॉर को पीपुल्स वार बना दिया गयाl इसी दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ने सुभाष चंद्र बोस के लिए ‘साम्राज्यवादी ताकतों का कुत्ता’ संबोधन दिया थाl जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि अगर सुभाष बोस जापानियों के साथ भारत आएंगे तो उनका विरोध गोली बारूद से किया जाएगाl सोवियत रूस और वामपंथी विचारधारा द्वारा सुभाष चंद्र बोस के विरोध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण मेरे जैसे लोगों की समझ में यह है कि सुभाष चंद्र बोस पूरी गहराई से धार्मिक थेl धर्म और पूजा में उनकी श्रद्धा थीl वह नास्तिकवादी वामपंथी विचारधारा से सहमत नहीं हो सकते थेl अपनी पुस्तक इंडियन स्ट्रगल में उन्होंने भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की संभावित असफलता के लिए उनकी नास्तिकता को सबसे बड़ा आधार माना हैl

कार्ल मार्क्स से लेकर आज के समय तक के बड़े साम्यवादी विचारक जुर्गेन हैबर मास समझते थे कि औद्योगिक समाज में धर्म समाप्त हो जाएगाl सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी जैसे मिट्टी से जुड़े नेता जानते थे कि धर्म कभी समाप्त नहीं हो सकता और इस कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस की वामपंथी विचारधारा से मित्रता संभव नहीं हो सकीl

लेखक महाविद्यालय मैनपुर में प्रभारी प्राचार्य है और सुभाषचंद्र बोस पर इनकी पीएचडी है।

3 thoughts on “नेताजी सुभाषचंद्र बोस एवं वामपंथी विचारधारा : जयंती विशेष

  • January 23, 2025 at 08:48
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    मार्क्स विचार धारा समाज क़े लिए सही नहीं है
    हमारे महापुरुष नास्तिक नहीं धार्मिक थे धर्म क़े अंदर सुधार चाहते थे
    गाँधी भी धार्मिक थे, अम्बेडकर भी थे
    अम्बेडकर तो यहाँ तक कह दिया था
    समाज क़े लिए मार्क्स किसी भी तरह से हित नहीं है budhism में जितन दिखता है

    मुझे तो हिन्दू एक जीवन जीने की व्यवस्था दिखता है इसमें तमाम पंथ विविधता है किसी एक का भी मार्ग अपना कर जीवन को साकार किया जा सकता है

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  • January 23, 2025 at 09:24
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    नेता जी सुभाषचंद्र बोस को बांमपंथी कथन थोपा हुआ है। बस्तुतः आप प्रगतिशील स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित विचारधारा के अमर शहीद सेनानी हैं।
    हृदय की अतल गहराईयों से पुण्यास्मरण करते हुए विनम्र अनंत अशेष श्रद्धांजलि।

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