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क्या 13 दिसम्बर याद है आपको ?

भारत ने स्वाधीनता संघर्ष में असंख्य बलिदान दिये हैं। लेकिन स्वाधीनता के बाद बलिदानों पर विराम न लगा। पहले अंग्रेजों की गोलियों से देशभक्तों के बलिदान हुये अब आतंकवादियों के निशाने पर सुरक्षाबल और सामान्य जन हैं। बाईस वर्ष पहले आतंकवादियों का एक भीषण हमला संसद भवन पर हुआ था। जिसमें में नौ सिपाही बलिदान हुये और सत्रह अन्य घायल लेकिन हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु को फाँसी देने में सवा ग्यारह वर्ष लगे थे।

वह 13 दिसम्बर 2001 की तिथि थी। संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों की बैठक चल रही थी। किसी विषय पर हंगामा हुआ और दोनों सदनों की कार्यवाही चालीस मिनिट के लिये स्थगित हुई थी। प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेई और नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी सहित कुछ सांसद तो अपने निवास की ओर रवाना हो गये थे पर गृह मंत्री लालकृष्ण आडवानी, प्रमोद महाजन सहित कुछ वरिष्ठ मंत्री, कुछ वरिष्ठ पत्रकार तथा दो सौ से अधिक सांसद संसद भवन में मौजूद थे।

उपराष्ट्रपति कृष्णकांत संसद से निकलने वाले थे। उनके लिये द्वार पर गाड़ियाँ लग गईं थीं। तभी अचानक यह घातक आतंकवादी हमला हुआ। संसद पर हमला करने आये आतंकवादियों की कुल संख्या पांच थी। वे एक कार में आरडीएक्स और आधुनिक बंदूकें लेकर संसद भवन में घुसे थे। कार पर लालबत्ती लगी थी, गृह मंत्रालय का स्टीकर और कुछ वीआईपी जैसी पर्चियां भी चिपकी थीं। इसलिये संसद के आरंभिक द्वारों पर कोई रोक टोक न हुई।

यह कार प्रातः 10-45 पर संसद भवन में घुसी थी और आसानी से आगे बढ़ रही थी। वह बहुत सरलता से गेट नम्बर 11 तक पहुंच गये थे। यहाँ से वे सीधे उस गेट ओर जा रहे थे जहाँ उपराष्ट्रपति को निकलने के लिये गाड़ियाँ लगीं थीं। लेकिन जैसे ही संसद भवन के द्वार क्रमांक नम्बर ग्यारह पर यह कार पहुँची। वहाँ तैनात महिला एएसआई मिथलेस कुमारी ने रुकने के लिये हाथ दिया। पर कार न रुकी और आगे बढ़ी। इसपर संदेह हुआ, सीटी बजाई गई । सुरक्षाबल सक्रिय हुये, सिपाही जीतनराम ने आगे तैनात सुरक्षा टोली को आवाज दी । सुरक्षाबल की सीटियाँ बजने लगीं वायरलैस की आवाज गूंजने लगी । सिपाही जगदीश यादव दौड़ा।

आतंकवादियों ने गाड़ी की गति बढ़ाई वे तेजी से वे संसद के भीतर घुसना चाहते थे। उनका उद्देश्य सांसदों को बंधक बनाने का था। पर सुरक्षा बलों की सतर्कता और घेरने के प्रयास से उनकी गाड़ी का चालक विचलित हुआ और आतंकवादियों की कार संसद भवन के भीतरी द्वार पर उपराष्ट्रपति की रवानगी के लिये खड़ी कारों की कतार में एक कार से टकरा गई।

तब आतंकवादियों ने यह प्रयास किया कि वे गोलियाँ चलाते हुए संसद के भीतर घुस जाँए। उन्होंने गोलियाँ चलाना आरंभ कर दीं। उनकी गोलियों की बौछार उसी सुरक्षा बल टोली की ओर थी जो उन्हे घेरने का प्रयास कर रही थी । यह वही टोली थी जिसे इस कार पर संदेह हुआ था और रोकने की कोशिश की थी । जब कार न रुकी तो ये सभी जवान दौड़कर पीछा कर रहे थे। आतंकवादियों की गोली के जबाव में सुरक्षाबलों ने भी गोली चालन आरंभ किया। पूरा संसद भवन से गोलियों की आवाज से गूँज गया।

आतंकवादियों की कुल संख्या पांच थी। इन सभी के हाथों में एक के 47 रायफल और गोले भी थे। एक आतंकवादी युवक ने गोलियाँ चलाते हुये गेट नंबर-1 से सदन में घुसने की कोशिश की। लेकिन सफल न हुआ। सुरक्षाबलों ने वहीं ढेर कर दिया। उसके शरीर पर बम बंधा था। उसके गिरते ही शरीर पर लगा बम भी ब्लास्ट हो गया। अन्य चार आतंकियों ने गेट नंबर-4 से सदन में घुसने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाबलों की फायरिंग से तीन द्वार पर पहुँचने से पहले ही ढेर हो गये।

अंतिम बचे पाँचवे आतंकी ने गेट नंबर पाँच की ओर दौड़ लगाई, लेकिन सुरक्षाबल सतर्क था। वह आतंकी भी ढेर हो गया। आतंकवादी जिस कार में आये थे उसमें तीस किलो आरडीएक्स रखा था। यह तो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि यदि वे इस आरडीएक्स में विस्फोट करने में सफल हो जाते तब क्या दृश्य उपस्थित हो जाता। जो अंतिम आतंकी बचा था उसने कार में विस्फोट करने का प्रयास किया था। हथगोला फेकने का प्रयास कर ही रहा था कि सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया। हथगोला उसके हाथ में ही फटा।

ये सभी आतंकवादी आतंकवादी संगठन जैस-ए-मोहम्मद से संबंधित थे। इसका मुख्यालय पाकिस्तान में है। उसका अपना नेटवर्क भारत में भी है। इस घटना के दो दिन बाद 15 दिसम्बर 2001 को इस हमले के योजनाकार के रुप चार लोग बंदी बनाये गये। इनमें अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन थे। अफजल गुरु को मास्टर माइंड माना गया। उसका संपर्क जैस-ए- मोहम्मद से था। अफजल गुरु पाकिस्तान जाकर प्रशिक्षण लेकर भी आया था। पहले चारों को दोषी मानकर अलग अलग सजाएँ दीं गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया।

अफजल गुरु की फांसी की यथावत रही। शौकत हुसैन को फाँसी की सजा घटा कर 10 साल कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की तमाम औपचारिकताओं के बाद 20 अक्टूबर 2006 को अफजल को फांसी पर लटका देने का आदेश था। लेकिन फाँसी न दी जा सकी। 3 अक्टूबर 2006 को अफजल की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की। राष्ट्रपति जी को गृह मंत्रालय तथा अन्य विशेषज्ञों से सलाह लेने में वर्षों लगे और अंत में 13 फरवरी 2013 को अफजल गुरु फाँसी पर लटकाया जा सका।

संसद भवन पर हुये इस हमले की प्रतिक्रिया दुनियाँ भर में हुई। आतंकवादी दोनों तैयारी से आये थे। भारतीय सांसदों को बंधक बनाकर अपनी कुछ शर्तें मनवाने और कार में आरडीएक्स में विस्फोट करके पूरे संसद को उड़ाने की योजना थी। लेकिन सुरक्षाबलों की सतर्कता और चुस्ती से मुकाबला करने की रणनीति से वे सफल न हो सके थे। इस हमले में सुरक्षाबलों के जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर संसद की सुरक्षा की और कोई बड़ा नुकसान होने से पहले ही पांचों आतंकवादियों को ढेर कर दिया।

इस आतंकी हमले में कुल 9 भारतीय जवानों का बलिदान हुआ संसदीय सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी,  दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेन्द्र सिंह और घनश्याम के साथ ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी और सीपीडब्ल्यूडी के एक कर्मचारी देशराज शामिल थे। इनके अतिरिक्त 16 अन्य जवान घायल हुए।

संसद हमले के इन बलिदानियों में जगदीश प्रसाद यादव, कमलेश कुमारी और मातबर सिंह नेगी को अशोक चक्र  और नानक चंद, ओमप्रकाश, घनश्याम, रामपाल एवं बिजेन्द्र सिंह को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। साथ ही अतुलनीय साहस का परिचय देने के लिए संतोष कुमार, वाई बी थापा, श्यामबीर सिंह और सुखवेंदर सिंह को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।

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