चुनाव परिणामों में राष्ट्रवादी मुद्दों की जीत और राजनीति के भविष्य के संकेत
महाराष्ट्र और झारखण्ड विधान सभा एवं 13 अन्य प्रदेशों की रिक्त 36 विधानसभा सीटों केलिये संपन्न उपचुनाव परिणामों ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत की राजनीति मुस्लिम तुष्टीकरण और कट्टरपंथ की आक्रामकता से संचालित नहीं होगी । लेकिन यह संकेत भी दिया है कि आने वाला समय भारतीय सामाज जीवन केलिये सामान्य नहीं होगा और कट्टरपंथी शक्तियाँ कुछ नया प्रपंच भी कर सकतीं हैं।
हाल ही संपन्न चुनाव महाराष्ट्र और झारखंड में सरकार बनाने के लिये, लोकसभा के दो एवं तेरह प्राँतों में विधानसभा की 36 सीटों केलिये उपचुनाव हुये । प्रथम दृष्टया इनके परिणाम उतने असामान्य नहीं लगते जितना चुनाव प्रचार अभियान में असामान्य बनाने का प्रयास हुआ था।
महाराष्ट्र और झारखंड दोनो प्राँतों के सत्तारूढ़ गठबंधनों ने अपेक्षाकृत अधिक बहुमत से सत्ता में वापसी की। जबकि अन्य सभी प्राँतों की 46 रिक्त विधानसभा सीटों पर भी उन प्राँतों के सत्तारूढ दलों को सफलता मिली । इनमें भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 26 एवं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 20 सीटें मिलीं। इन परिणामों की तुलना यदि पिछले परिणाम से करें तो भाजपा गठबंधन को नौ सीटों का लाभ हुआ और विपक्ष को सात सीटों का नुकसान।
लेकिन ये परिणाम वैसे साधारण नहीं हैं जैसे प्रथम दृष्टि में दिखाई दे रहे हैं। विशेषकर महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा एवं उत्तर प्रदेश विधानसभा की रिक्त नौ सीटों केलिये हुये उपचुनाव परिणाम ने भारत की भावी राजनीति के एक संदेश दिया है । इन परिणामों ने उस धुँध को छाँट दिया है जो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनैति करने वाले राजनैतिक दलों ने फैलाने का प्रयास किया था । उनके साथ कुछ मुस्लिम धर्मगुरु, कट्टरपंथी सामाजिक संगठन और एक विचार विशेष केलिये काम करने वाले कुछ पत्रकार भी साथ थेचुनाव परिणामों में राष्ट्रवादी मुद्दों की जीत और राजनीति के भविष्य के संकेत चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मुस्लिम तुष्टीकरण की मानों कोई स्पर्धा चल रही थी। यह मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा ही तो है कि मतदान के दिन कोई राजनैतिक दल यह मांग करे कि मुस्लिम महिला मतदाता की पहचान बुरका उठाकर न की जाय । इन सबने प्रचार अभियान में ऐसा वातावरण बना दिया था मानों हार जीत का फैसला केवल मुस्लिम मतदाता ही करने वाले हैं।
इसका लाभ दो प्रकार की शक्तियों ने उठाया । एक वे कट्टरपंथी शक्तियाँ जो मुसलमानों को सदैव राष्ट्र की मूलधारा से अलग रखकर कट्टर और आक्रामक बनाये रखने के बहाने खोजतीं हैं, और दूसरी भारत विरोधी वे अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ जो भारत के सामाजिक जीवन में अशान्ति उत्पन्न करके विकास की गति अवरुद्ध करना चाहतीं हैं । इन दिनों आर्थिक, सामरिक, तकनीकि और अंतरिक्ष अनुसंधान में भी भारत की गति तीब्र हुई है । इस विकास गति को रोकने केलिये सामाजिक अशांति उत्पन्न करने केलिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर षड्यंत्र किये जा रहे हैं। इन दोनों प्रकार की शक्तियों ने इस चुनाव अभियान पूरी तरह साम्प्रदायिक मोड़ देने का प्रयत्न किया। कहीं “बटेंगे तो कटेंगे” नारे को मुद्दा बनाकर मुसलमानों में भ्रमित करने का प्रयास किया, कहीं “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे” नारे पर भ्रम फैलाकर मुसलमानों से भाजपा के विरुद्ध वोट करने का आव्हान किया । लेकिन परिणामों ने सबके कुचक्र को उलटकर रख दिया और भाजपा गठबंधन को पहले से अधिक शक्ति प्रदान की । कुछ क्षेत्रों में साम्प्रदायिक मानसिकता का प्रभाव अवश्य देखा गया उसकी झलक उन क्षेत्रों के मतदान पर देखी गई । लेकिन अधिकांश मतदाताओं ने तुष्टीकरण, मुस्लिम कट्टरपंथ एवं छ्द्म सेकुलरों के कुचक्र को नकार कर राष्ट्र के विकास और सकारात्मक मुद्दों को प्राथमिकता देकर भाजपा गठबंधन को प्राथमिकता दी।
महाराष्ट्र चुनाव परिणाम : एक दृष्टि
महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं। इसमें भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में महायुति गठबंधन को 235 और काँग्रेस के नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी गठबंधन को 47 सीटों पर जीत मिली। समाजवादी पार्टी को दो और औबेसुद्दीन ओबैसी की एआईएमआईएम को एक सीट मिली । तीन सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीतीं। परिणाम के बाद इन तीनों निर्दलीयों ने भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन देने की घोषणा कर दी । इस प्रकार अब महाराष्ट्र विधान सभा में महायुति गठबंधन कुल 238 विधायकों की शक्ति के साथ सरकार में आई है । (इसके अंतर्गत भारतीय जनता पार्टी को 132, शिवसेना को 57, अजित पवार की एनसीपी को 41 और तीन निर्दलीय हैं)। जबकि दूसरी ओर महाविकास आघाड़ी गठबंधन में उद्धव ठाकरे की शिवसेना 20, कांग्रेस को 16 और शरद पवार की एनसीपी को 10 सीटें और समाजवादी पार्टी को दो सीटें मिली हैं। वोट प्रतिशत और सीट दोनों दृष्टि से भाजपा ने इस बार महाराष्ट्र में सर्वाधिक आंकड़ा छुआ है ।
यह तब हुआ जब विपक्ष सहित भारत की विकास गति अवरुद्ध करने वाली शक्तियाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम जोड़कर केवल भाजपा को हराने के लक्ष्य पर काम कर रहीं थीं । विपक्षी प्रचार केवल चुनाव सभाओं और अपीलों तक सीमित नहीं था । इसमें उलेमा बोर्ड का समर्थन पत्र, 180 मुस्लिम सामाजिक संगठनों की सक्रियता और सेकुलरिज्म का बाना पहने एक विशिष्ठ मानसिकता पर काम करने वाले मुम्बई कुछ पत्रकार भी सक्रिय रहे । उनके अभियान को मीडिया, सोशल मीडिया एवं ट्यूटर पर उनकी टिप्पणियों से समझा जा सकता है । ये सब भ्रामक मुद्दे उछाल कर मुस्लिम मतदाताओं से प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध मतदान करने का खुली अपील कर रहे थे। यह प्रयत्न भी हुआ कि मुस्लिम मतदाता भाजपा के साथ उसके सहयोगी दल के उम्मीदवार के विरुद्ध भी एकजुट मतदान करें। कथित सामाजिक संगठनों ने मुस्लिम समाज के घर घर जाकर विकल्प भी समझाये थे ताकि मुस्लिम मतों का विभाजन न हो।
उलेमा बोर्ड द्वारा प्रांतीय स्तर एक समर्थन पत्र जारी करने के साथ अनेक क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर मुस्लिम धर्म गुरुओं ने फतवे भी जारी किये । कहीं कहीं तो “वोट जिहाद” शब्द भी सुना गया । बावजूद इसके भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन को पूरे महाराष्ट्र प्रदेश में समर्थन मिला । भाजपा गठबंधन को उन सीटों पर भी विजय मिली जहाँ मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं । महाराष्ट्र प्रदेश में ऐसी 38 सीटें हैं, जहाँ मुस्लिम मतदाताओं की भागीदारी 20 प्रतिशत से अधिक है कुछ पर तो पचास प्रतिशत से भी अधिक है । यदि महाराष्ट्र का चुनावी इतिहास देखे तो इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं के मतदान का प्रतिशत अधिक होता है और वे एकजुट होकर मतदान करते हैं। इस बार इन 38 में से भाजपा गठबंधन ने 22 सीटें जीती । इसमें भाजपा की 14 और उसके सहयोगी दलों को आठ सीटें मिलीं । जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी महाविकास अघाड़ी गठबंधन को मुस्लिम बाहुल्य इन क्षेत्रों में 13 सीटें ही मिल सकीं। शेष तीन सीटों में समाजवादी पार्टी को दो और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को एक सीट मिली है । 2019 के विधानसभा चुनावों में इन क्षेत्रों से कांग्रेस ने 11 सीटें जीती थीं । लेकिन इस बार वह केवल पाँच सीटें ही जीत सकी । काँग्रेस की सीटें ही कम नहीं हुई उसका मत प्रतिशत भी घटा है । नवाब मलिक और जीशान सिद्दीकी जैसे कांग्रेस के कद्दावर नेता अपनी-अपनी सीटों से चुनाव हार गए । भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने अपनी इस जीत का श्रेय सरकार की कल्याणकारी योजनाओ को दिया है ।
उत्तर प्रदेश में नौ सीटों का परिणाम
चुनाव को साम्प्रदायिक रःग देने का जो अभियान महाराष्ट्र में चला उससे कहीं आगे उत्तर प्रदेश में चलाया गया । उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीटों केलिये उपचुनाव हुये थे । इसमें भाजपा गठबंधन को सात और समाजवादी पार्टी को केवल दो सीट मिलीं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन के सदस्यों ने कैसे केवल मुस्लिम कट्टरपंथ को प्रोत्साहित किया इसके समाचारों से मीडिया भरा रहा । तुष्टीकरणवादी इन राजनैतिक दलों को समर्थन करने केलिये अनेक मुस्लिम धर्मगुरु, बीस से अधिक सामाजिक संगठन और गाजियाबाद के कुछ पत्रकारों की एक पूरी टोली सक्रिय थी । इनमें से कुछ तो राष्ट्रीय मीडिया से भी संबद्ध थे शेष अन्य स्थानीय और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे । चुनाव प्रचार की कुछ घटनाओं को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया । फिर भी भाजपा गठबंधन का विजय रथ रुक न पाया । मुस्लिम तुष्टीकरण के लिये रात दिन एक करने वाली समाजवादी पार्टी को केवल दो सीट ही मिल सकी।
उत्तर प्रदेश की जिन नौ विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हुये उनमें मीरापुर, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर, करहल, सीसामऊ, फूलपुर, कटेहरी और मझवां हैं। ये सभी मुस्लिम मतदाता के प्रभाववाली सीटें हैं । इनमें मुरादाबाद जिले के अंतर्गत कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र ऐसा है जहाँ मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत साठ से अधिक है फिर भी इस सीट पर भाजपा के रामवीर सिंह ने ऐतिहासिक विजय प्राप्त की । इस सीट पर समाज वादी पार्टी सहित सभी 11 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। जबकि भाजपा के रामवीर सिंह ने यहां 1.44 लाख वोटों के बड़े अंतर से सीट जीती। यह इस चुनाव की सबसे बड़ी जीत है। भाजपा को यह सीट 31 साल मिली । यहाँ लगभग पचास प्रतिशत मतदान हुआ । यह भाजपा की एकतरफा जीत मानी जा रही है । इस सीट पर वे अकेले हिन्दु उम्मीदवार थे ।
अन्य उपचुनावों के परिणाम
झारखंड, महाराष्ट्र विधानसभा तथा उत्तर प्रदेश की इन सात सीटों के अतिरिक्त राजस्थान में 7, पश्चिम बंगाल में 6, असम में 5, पंजाब और बिहार में 4-4, मध्यप्रदेश में दो, छत्तीसगढ में एक, कर्नाटक और केरल में 3-3 और उत्तराखंड की एक सीट पर उपचुनाव हुये। लोकसभा केलिये उपचुनाव की दोनों सीटें कांग्रेस ने जीतीं। इनमें महाराष्ट्र की नांदेड़ और केरल की वायनाड सीट है । दोनों सीट जीतने के बाद भी कांग्रेस की लोकसभा में सीटों की संख्या 99 ही रहेगी । चूँकि ये दोनों सीटें काँग्रेस ने ही जीतीं थीं।
अन्य राज्यों के विधानसभा उपचुनावों में असम विधानसभा के लिये पाँच सीटों पर उपचुनाव हुये । ये सभी पांचों सीट भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल असम गण परिषद ने जीती । केरल में तीन सीट पर चुनाव हुये तीनों सीट सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) गठबंधन एलडीएफ ने जीतीं। पंजाब में चार विधानसभा सीटों के लिये हुये उपचुनाव में आम आदमी पार्टी ने तीन और एक सीट कांग्रेस ने जीती ।
बिहार में सत्ताधारी एनडीए गठबंधन ने चारों विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में जीते । इसमें सत्तारूढ एनडीए गठबंधन को तीन सीटों का फायदा हुआ । बंगाल की 6 सीटों पर उपचुनाव हुये । ये सभी टीएमसी ने जीतीं। यहाँ एक सीट भाजपा के हाथ से चली गई। सिक्किम में दो सीटों पर सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा उम्मीदवार ने निर्विरोध जीते । कर्नाटक में तीन सीट पर उपचुनाव हुये तीन सीट कांग्रेस ने जीतीं । इस चुनाव में भाजपा और जनता दल (एस) को एक एक सीट का नुकसान हुआ । मध्यप्रदेश में दो सीटों पर चुनाव हुये । एक पर कांग्रेस और एक सीट भारतीय जनता पार्टी ने जीती। छत्तीसगढ की एक सीट पर हुये चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विजयी रही ।
भविष्य की राजनीति के लिये संकेत
इन चुनाव परिणाम से भारत के राजनैतिक स्वरूप पर कोई विशेष अंतर नहीं पड़ेगा। सभी राज्य सरकारों और केन्द्र सरकार की स्थिरता में भी कोई अंतर नहीं होगा लेकिन इन चुनाव परिणामों भविष्य के लिये एक बड़ा संकेत दिया है । इस चुनाव में मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन, धर्मगुरु और छद्म सेकुलरों ने पूरी योजना से काम किया । पहले लोकसभा चुनाव प्रचार में जातीय जनगणना का शोर किया गया ।गाजियाबाद के छद्म सेकुलर पत्रकार अभी खुलकर सक्रिय थे वे लोकसभा चुनाव प्रचार में जातीय समीकरणों को तूल दे रहे थे । तब न केवल उम्मीदवार की जाति से मतदाताओं के जाति आधारित आँकड़े देकर सामाजिक रेखाएँ खींची जा रहीं थीं अपितु व्यक्तिगत अपराध की घटनाओं को भी जाति से जोड़कर सनसनीखेज बनाने का प्रयास हुआ था जो अभी भी देखा जा रहा है ।
लोकसभा चुनाव परिणाम में इस जाति आधारित धुँध का प्रभाव देखा गया । सनातन समाज को जाति आधारित गणना में उलझाकर अब मुस्लिम समुदाय को संगठित और आक्रामक बनाने का प्रयास हुआ । यह ठीक वैसा ही है जैसे 1921 के बाद भारतीय समाज जीवन में देखा गया । इतिहास गवाह है कि मालाबार हिन्साके बाद जातीय गणित, मुस्लिम कट्टरता बढ़ी थी । वहीं कांग्रेस ने तुष्टीकरण की राह पकड़ी थी जो अभी भी यथावत है । लोकसभा चुनाव के बाद से ही मुस्लिम समुदाय को आक्रामक बनाने का प्रयोग किया जाने लगा था । इसे हम कांवड़ यात्राओं पर पथराव, गणेशोत्सव और दुर्गा उत्सव पर हुये हमलों से समझा जा सकता है ।
विधानसभा के इन चुनाव परिणामों में दोनों प्रकार की झलक है । एक तो सनातन समाज में जागरूकता देखी जा रही है और दूसरे कम प्रतिशत ही सही लेकिन मुस्लिम समाज में भी जागरुकता बढ़ी है । मुस्लिम समाज का प्रबुद्ध वर्ग कट्टरवाद की राजनीति का मर्म समझने लगा है इसीलिये आक्रामक प्रचार के बाद भी भाजपा गठबंधन उम्मीदवारों को मुस्लिम वोट मिले । उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की कुछ सीटों पर यह जागरुकता स्पस्ट देखने को मिल रही है ।
इन चुनाव परिणाम में हिन्दू और मुसलमान दोनों प्रकार के मतदाताओं में जागरूकता का संदेश है तो यह संकेत भी है कि भारत की विकास गति को अवरुद्ध करने वाली शक्तियाँ अथवा केवल तुष्टीकरण और हिन्दु मुस्लिम की राजनीति करके अपना स्वार्थ पूरा करने वाले तत्त्व भी चुप नहीं बैठेंगे। वे कोई नया कुचक्र करेंगे । इस चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार मुस्लिम धर्म गुरुओं और उलेमाओं ने जिस प्रकार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को और उड़ीसा के मुख्यमंत्री श्री नायडू को तोड़ने का प्रयास किया, ऐसे प्रयास और बढ़ सकते हैं। इसलिए समाज और सरकार दोनों के अतिरिक्त राजनैतिक दलों को भी चुनाव में तुष्टीकरण का खेल करने की बजाय राष्ट्र विकास के विन्दु सामने रखकर चुनाव तैयारी करनी होगी । तभी 2047 तक भारत के सर्वोन्नत राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित होने का लक्ष्य पूरा होगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।