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विवेकानंद शिला स्मारक और माननीय एकनाथ रानाडे जी

अनन्य राय

स्वामी विवेकानंद के विचार आज हमारे बीच जीवंत रूप में विद्यमान हैं तो उसका एकमात्र श्रेय जाता है माननीय एकनाथ रानाडे जी को जिन्होंने अपनी बुद्धि कौशल के बल पर विवेकानंद शिला स्मारक की स्थापना की एवं देश को उसकी एकजुटता का एक अडिग अटल चिह्न प्रदान किया।

वह पावन स्थल जहाँ स्वामी विवेकानंद ने बैठकर भारत के भूत, वर्तमान एवं भविष्य पर चिंतन किया एवं आगे चलकर, भारत के आत्मविश्वास, आत्मसम्मान एवं आत्मगौरव के पुनरुत्थान का कार्य किया। वह स्थान जिसने कलकत्ता के एक साधारण बालक को स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्वप्रख्यात बनाया। नरेन्द्रनाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने तक के सफ़र का एक अतुल्य दर्शन है विवेकानंद शिला स्मारक।

माननीय एकनाथ रानाडे जी का व्यक्तित्व अविस्मरणीय है। स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की प्रासंगिकता वर्तमान समय में भी बरकरार रखने में एकनाथ जी का बड़ा योगदान रहा है। साहित्य से लेकर स्मारक तक, स्मारक से संगठन तक की स्थापना करने में एकनाथ जी ने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया।

कहते हैं इस धरती पर हर कृत्य नियति द्वारा पूर्व नियोजित होता है व हर कृत्य या संयोग का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। इस बात का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण देखने को मिलता है जब हम देखते हैं कि किस प्रकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक के महासचिव को इस महान कार्य हेतु नियति द्वारा निमित्त चुना जाता है।

एकनाथ रानाडे महत्वपूर्ण, ओजस्वी, मानव – निर्माण, राष्ट्र – निर्माण व विश्व एकीकरण संदेश के प्रसार हेतु चुने गए साधन थे। एकनाथ जी के व्यक्तित्व को हिंदी शब्दकोष के सभी प्रेरणादाई व सकारात्मक शब्द समर्पित करना भी कम होगा। “त्याग व सेवा” की मूरत को मानो ईश्वर ने जीवन दे दिया हो या बुद्धि कौशल का एक सजीव उदाहरण बनने हेतु ही उनका जन्म हुआ।

स्वामी जी को भारत माँ का कार्य मिला था और एकनाथ जी को स्वामी विवेकानंद का, दोनों समान ही हैं, फर्क बस उतना ही है जितना श्री राम और श्री कृष्ण का। उन्होंने केवल स्वामी जी के कार्य को पढ़ा एवं समझा ही नहीं बल्कि उसे प्रत्यक्ष तौर पर प्रस्तुत भी किया, यहां स्मारक की ही नहीं बल्कि उसकी स्थापना से हुए भारत के कार्य की ओर इशारा किया है “भारत की एकता । ”

विवेकानंद शिला स्मारक विवेकानंद जी के आदर्शों का ही नहीं बल्कि भारत की एकता का भी प्रतीक साबित होता है। संपूर्ण देश की कला के प्रदर्शन का एक खूबसूरत दर्शन इस स्मारक में करने को मिलता है। संपूर्ण राष्ट्र ने इस स्मारक की स्थापना में अपना योगदान दिया है। हर जाति, हर तपके का व्यक्ति इस कार्य से किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ था।

सामाजिक तौर पर तो एकता दिखलाया ही है यहां तक कि राजनैतिक तौर पर भी एकता प्रदर्शित करता है। 323 सांसदों ने राजनैतिक, क्षेत्रीय व पंथ की सीमाओं को पार करते हुए इसके निर्माण हेतु मदद की। इसका निर्माण कुल 1.35 करोड़ के बजट में हुआ जिसमें से 85 लाख रुपए साधारण जनता से एक, दो दो रुपए करके एकत्रित किया और तो और राज्य सरकारों एवं उद्योगपतियों ने भी बढ़ चढ़कर इस कार्य हेतु आर्थिक योगदान दिया एवं इस कार्य को कुशलतापूर्वक पूर्ण करने में एक अहम भूमिका निभाई। इस प्रकार से पूरा देश एक हुआ व इस स्मारक के निर्माण हेतु कार्य किया। साधारण जन के इस असाधारण कार्य का यह एक विशाल प्रेरणादाई स्रोत बनकर अडिग खड़ा है। इसके निर्माण की पूरी कहानी जानने के पश्चात पाठकों को पता चलेगा कि “यह कार्य कितना असंभव था व एकनाथ जी के नेतृत्व में किस प्रकार से यह कार्य पूर्ण हुआ ?”

इस कार्य को नियति ने नियोजित कर रखा था जिसमें अनगिनत लोगों ने अपने अपने स्तर पर सेवा की। इस महायज्ञ में हर आहुति कीमती थी। एक से लेकर एक लाख रुपए तक का महत्व अपने आप में विशाल था। जिसके पश्चात “भारतीय चट्टान के आखिरी पत्थर जिसे श्रीपद पराई नाम से भी जाना जाता है, जहां स्वामी विवेकानंद जी को अपने अस्तित्व का ज्ञान हुआ, वहां माननीय एकनाथ जी की मेहनत से 2 सितंबर, 1970 को विवेकानंद शिला स्मारक बनकर तैयार हुआ जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति बी. बी. गिरी जी के हाथों हुआ।

विवेकानंद शिला स्मारक और एकनाथ जी, दोनों ही एक दूसरे के निमित्त थे। यह कार्य न होता तो शायद आज हम एकनाथ जी को याद न कर रहे होते और एकनाथ जी न होते तो शायद यह कार्य अधूरा रह जाता। पर कहते हैं न “होइहि सोइ जो राम रचि राखा”, तो यह कार्य जो नियति या उस परमशक्ति द्वारा नियोजित था एवं जिसके निमित्त थे श्री एकनाथ जी, जिस कारण सेआज हम उन्हें याद कर पा रहे हैं और विवेकानंद शिला स्मारक आज करोड़ों लोगों के लिए विवेकानंद जी के आदर्शों का प्रतीक बनकर खड़ा है। इसी का दूसरा चरण विवेकानंद केंद्र – एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठन माननीय एकनाथ जी की दूरदर्शिता का परिणाम है। इसका निर्माण उन्होंने देश भर के लोगों तक वह आदर्श एवं विचार पहुंचने हेतु किया था। यह स्मारक व संगठन अनंतकाल तक अपना कार्य करते रहेंगे।

 

लेखिका विवेकानंद केंद्र उत्तर प्रांत युवा टोली सदस्य। स्नातक में दौलत राम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा एवं अपने कॉलेज की अध्यक्षिका भी रही। केंद्र से जुलाई 2022 में युवा भारत खुद को जानो प्रोग्राम के अंतर्गत केंद्र से जुड़ना हुआ (अभी इस प्रोग्राम के को – कॉर्डिनेटर का दायित्व है)।

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