futuredछत्तीसगढ

ग्राम तुरमा में ईशर गवरा महोत्सव आयोजन सम्पन्न

भाटापारा अंचल के ग्राम तुरमा में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी देवउठनी के उपलक्ष्य में ईशर गवरा महोत्सव बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। श्री बैशाखू छेदैहा से चर्चा करने पर बताया कि लगभग 22-23 वर्ष से ग्राम तुरमा में देवउठनी (जेठौनी) एकादशी के पावन पर्व में ईशर गवरा कार्यक्रम करने की शुरुआत हुई इससे पूर्व पड़ोस के गांव मिर्गी में ईशर गौरा का कार्यक्रम होता था जिनको देखने और कार्यक्रम का आनंद लेने के लिए गांव के लोग जाते थे, उन्हीं लोगों से प्रेरणा लेकर तुरमा गांव में भी एकादशी के दिन ईशर गवरा की स्थापना प्रारंभ किये।

अपने समाज को सामाजिक दिशा देते हुए धर्म संस्कृति रीति नीति के प्रति अवगत कराते हुए श्री पूनाराम मंडावी जी ने पीला चावल अर्पण करने के संदर्भ में बताया कि धान जो की धरती के ऊपर उगता है वह आकाश तत्व की भूमिका निभाता है तथा हल्दी जो की जमीन के नीचे उगता है वह पृथ्वी तत्व की भूमिका निभाता है इस प्रकार धरती और आकाश में माता-पिता का भाव होने के कारण चावल को पीला करके अपने देव पूजा में अर्पण करना आदिवासी समाज में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा महुआ का फूल यह ऐसा फूल है जो हमेशा ताजा रहते हैं जल में डूबा देने से उनकी महत्व हमेशा बरकरार रहता है। मंडावी जी ने गोवर्धन पूजा के दिन जो पशुओं को खिचड़ी खिलाते हैं उसके बारे में बताया कि कोचई, जिमीकंद, कुम्भड़ा इन सभी सब्जियों को मिला करके पशुओं को खिलाने के पीछे पंच महाभुत की शक्ति के दर्शन को बताया जिनमे कुम्भड़ा पृथ्वी के ऊपर उगता है जो कि आकाश तत्व की भूमिका निभाता है, कोचई और जिमीकंद पृथ्वी के नीचे उगता है जो की पृथ्वी तत्व की भूमिका निभाता है इस प्रकार आकाश और धरती दोनों के संयोजन से सृजन होता है, माता-पिता का स्वरूप मानकर उनकी पूजा होती है इसी भाव को गोवर्धन पूजा के दिन पशुओं को खिचड़ी खिलाने में किया जाता है।

See also  India on the Verge of Becoming the "Golden Bird" Again, Massive Oil Discovery in Andaman & Nicobar and Revival of Gold Mining in Kolar

प्रकृति दर्शन को प्रत्येक तीज त्योहार के नाम में बताने का प्रयास किया जो की अनवरत काल से आदिवासी परंपरा में चलती आ रहा है। ग्राम तुरमा के आदिवासी ध्रुव गोंड समाज के ग्राम प्रमुख (रायपंच) श्री बंशीलाल मरकाम जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार ईशर गवरा महोत्सव वास्तव में आदिवासी समाज परंपरा के मान्यतानुसार गोंडवाना भू-भाग के राजगुरु एवं धर्मगुरू शंभू- गवरा (ईशर-गवरा) के प्रथम विवाह के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक समाज में घर के दूल्हादेव-दुल्हीमाई के रूप में जिनकी पूजा हम करते हैं वह यही ईशर गवरा ही है जिनकी प्रथम दूल्हा दुल्हन के रूप में विवाह करके पूजा होती है। यह परंपरा आदिवासी समाज में अनंत काल से चली आ रही है जो आज भी अक्षुण्य है।
ईशर गवरा की मिट्टी के रूप में प्रतिमा निर्माण प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष के दशमी तिथि के रात्रि में किया जाता है। इसके एक सप्ताह पूर्व गोंड समाज के द्वारा फूल कुचलना अर्थात प्रकृति के सात फूल (पुष्प) और देशी मुर्गी के अंडे को रखकर एक साथ शामिल करके उनकी उपासना की जाती है। अंडे को रखने का भाव यह है जिस प्रकार अंडे से जीव की उत्पत्ति होती है ठीक उसी प्रकार सृजनकर्ता आदि देव की उत्पत्ति प्रकृति के पुष्पों के बीच से हो रही है इस भाव को उत्त्पति सम्बन्धित गीतों का गायन महिलाओं के द्वारा उनकी पूजा करके किया जाता है।

See also  कच्चा तेल और स्वर्ण भंडार: भारत पुनः 'सोने की चिड़िया' बनने की राह पर

जिस प्रकार युवावस्था होने पर एक युवक और युवती की विवाह किया जाता है ठीक उसी प्रकार शादी (विवाह) महत्व का दर्शन कराते हुए सभी नेंग के साथ में ईशर गवरा का विवाह संपन्न किया जाता है। इस कार्यक्रम में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के एवं पारंपरिक वेशभूषा के साथ समाज की कन्याओं के द्वारा सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया गया।।

इस कार्यक्रम के विशेष अतिथि शोधार्थी श्री तीजराम पाल ने सभी के लिए संदेश देते हुए कहा कि अपने संस्कृति एवं अपने समाज के प्रति सभी लोगों को गर्व महसूस करना चाहिए। साथ ही साथ अपने परंपरा को हमेशा अक्षुण्य बनाए रखने के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। अपनी बोली,अपनी संस्कृति के प्रति सामाजिक लोगों को जागरूक करने का प्रयास करते हुए ग्राम तुरमा के इतिहास एवं आसपास के इतिहास से संबंधित जानकारी देते हुए बताया कि ग्राम तुरमा बंजारी नाला (छोटी नदी) के किनारे बसा हैं जहां पर प्राचीन बसाहट के साक्ष्य, मिट्टी के बर्तन, मिट्टी से आग में पकाकर बनाए मिट्टी के मनके, पत्थर से निर्मित खंडित प्रतिमाएं, पुराने मकान के पत्थर से निर्मित नीव एवं मानव के द्वारा उपयोग किए गए सील लोढा है कूटने पीसने का खर मुसल इत्यादि गांव के डीह जो लगभग 10 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है वहा से प्राप्त हो रहे है।

ग्राम तुरमा के समीपस्थ गांव गुर्रा जोगिद्वीप, जहां पर बंजारी नाला एवं जमुनिया नदी का संगम हो रहा है उस स्थान पर प्राचीन खंडित प्रतिमाएं है उन प्रतिमाओं के अध्ययन एवं प्रतिमाओं के निर्माण कला शैली के आधार पर पांडुवंशी प्रतीत होता। इस प्रकार आसपास के अन्य गांव से भी इस प्रकार की प्रतिमा प्राप्त हो रही है, इस तथ्यों के आधार पर ग्राम तुरमा के प्राचीन इतिहास की बात करें तो लगभग 1300 से 1400साल का इतिहास साक्ष्यो के आधार पर प्रतीत हो रहा है । सारे तथ्यों के अध्ययन से अनुमानित किया जा सकता हैं कि यहां का इतिहास बहुत ही प्राचीन है।

See also  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सुनी 'मन की बात' की 123वीं कड़ी

जनजाति समाज के गौरवशाली इतिहास को बताते हुए जनजाति समाज में जो उनके रीति नीति में वैज्ञानिकता झलकती है उस संबंध में प्रकाश डालने का प्रयास किया।एकता में ही ताकत है इस भावना को सभी के बीच में बताते हुए सभी के लिए प्रेम भरा संदेश उन्होंने दिया।

इस कार्यक्रम में गोंड समाज के समस्त मातृशक्ति, पितृशक्ति, युवाशक्ति, खल्लारी महाकालेश्वर महासभा के पदाधिकारी एवं खल्लारी परिक्षेत्र के समस्त पदाधिकारी,ग्राम प्रमुख (रायपंच) श्री बंशीलाल मरकाम,खल्लारी महाकालेश्वर महासभा के उपाध्यक्ष श्री तिरीथ मरकाम जी, महासचिव श्री दौलत छेदैहा जी, सलाहकार श्री आनंदराम मरकाम जी, खल्लारी परिक्षेत्र के अध्यक्ष श्री टॉपलाल छेदैहा जी, महासभा के प्रवक्ता श्री पूनाराम मंडावी जी, सचिव श्री घनश्याम सिंह मरकाम जी, समाज सेवक श्री संतोष छेदैहा, महिला प्रभाग अध्यक्ष श्रीमती बिमला मरई,युवा प्रभाग अध्यक्ष नरेश कुमार मरई, उपाध्यक्ष रघुवीर मरई, महेत्तर मरई, बैशाखू छेदैहा, रामप्रसाद छेदैहा, राजेंद्र,बीररिंग, बृजलाल,भारत, सुधेराम, मालिकराम सुन्दर सिंह मरई, रमेश, शिवकुमार,भागीरती छेदैहा, छन्नू, भागबली नेताम, ग्राम तुरमा के सरपंच श्री लक्ष्मीनारायण बंजारे, उपसरपंच मिट्ठू लाल पाल, पंच सवाना मरई ग्राम के बड़े बुजुर्ग श्री चिंताराम पाल ,श्री विशेष पाल फिरंताराम पाल, श्री नाथूराम यदु, बेदरामराम यदु, श्री मदन निषाद श्री ललित यादव, देउक यादव, प्रेम यादव, भूतपूर्व सरपंच श्री परस मनहरे,उमाशंकर मनहरे एवं ग्राम के समस्त लोगों ने कार्यक्रम की बहुत ही अच्छे सराहना किये।

संवाददाता

तीजराम पाल ग्राम तुरमा