स्मृतियों में बसा हुआ दर्द और पीढ़ियों का सबक : विभाजन विभीषिका
भारत का विभाजन विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसे सदियों नहीं भुलाया जा सकता। इस विभाजन ने लोगों को ऐसे घाव दिये हैं, जो भुलाए नहीं भूलते। यह इतिहास की सबसे बड़ी मानवता को लज्जित करने वाली घटना थी जिसे सत्ता के लालचियों परिणामों की कल्पना किये बिना अंजाम दिया। 1947 में हुए विभाजन के दौरान बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए, और भयानक हिंसा का सामना करना पड़ा। इस त्रासदी में लाखों लोग मारे गए और करोड़ों लोग शरणार्थी बन गए।
विभाजन विभिषिका दिवस की शुरुआत 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य उन लाखों लोगों की याद में यह दिवस मनाना है, जिन्होंने विभाजन के दौरान अपने घर, संपत्ति और प्रियजनों को खो दिया था। इस दिन को मनाने का मकसद न केवल उस त्रासदी को याद करना है बल्कि अतीत से सीख लेकर भविष्य के प्रति सावधान भी रहना है।
विभाजन के दस्तावेजों, पुस्तकों अखबारी आंकड़ों से पता चलता है कि यह कितना भयानक था। पाकिस्तान में तो हिन्दू सिक्खों के सफ़ाये का कार्य किया गया। जिसमें मुस्लिम लीग ने अग्रणी भूमिका निभाई। प्राप्त दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि मानवता को लज्जित करने वाले कार्य में मुस्लिम लीग के लोग सम्मिलित थे। मुस्लिम लीग ने ही भारत के विभाजन में मुख्य भूमिका निभाई थी।
उस समय लाहौर जैसा पूर्ण विकसित एवं सर्व सुविधा सम्पन्न नगर भारत में दूसरा नहीं था। यह शिक्षण संस्थाओं से लेकर अस्पताल तथा व्यापारिक केन्द्र के रुप में रुप में विख्यात था तथा उत्तर भारत से लोग शिक्षा ग्रहण करने लाहौर जाते थे। यहाँ अधिकतर आबादी हिन्दू और सिक्खों की थी। जिसे विभाजन के दौरान अपना सम्पत्ति छोड़कर भारत भागना पड़ा। उस समय की इस विभिषिका को याद करके संवेदनशील मनुष्य के आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि कितनी दुश्वारियों एवं कठिनाईयों को इन्हें झेलना पड़ा।
भारत विभाजन का मुख्य कारण
भारत विभाजन का मुख्य कारण मुस्लिम लीग की मांग थी। मुस्लिम लीग, जो उस समय की प्रमुख मुस्लिम पार्टी थी, ने एक अलग मुस्लिम राज्य (पाकिस्तान) की मांग की। इसके नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने यह दावा किया कि मुसलमानों को एक अलग राष्ट्र में बेहतर प्रतिनिधित्व और सुरक्षा मिलेगी। अंग्रेजों ने इस बात को लेकर आग में घी डालने का कार्य किया जिसके कारण भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव और असहमति बढ़ गई थी, जिससे विभाजन की मांग को बल मिला।
विभाजन का एक कारण यह था कि ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत से सत्ता स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम और ब्रिटिश शासन के पतन के साथ, विभाजन एक समाधान के रूप में उभरा। ब्रिटिश सरकार ने विभाजन को एक त्वरित समाधान के रूप में देखा, जिससे सांप्रदायिक तनाव और संघर्षों से निपटना आसान हो जाए। मुस्लिम लीग ने विभाजन के दौरान सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए प्रचार किया। इसके नेताओं ने अक्सर हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने वाले बयान दिए, जिससे सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में इजाफा हुआ।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया और एक एकीकृत भारत की पक्षधर थी। लेकिन, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद गहराते गए। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग मुस्लिम राज्य की मांग की, और यह मांग जोर से मुसलमानों के द्वारा उठाई गई।
इसका परिणाम विभाजन हुआ और नक्शे पर एक लाइन खींच दी गई लेकिन इसके पीछे की त्रासदियों को नजरअंदाज कर दिया गया। विभाजन का आदेश सुनते ही आम जन में बेचैनी और अफ़रा तफ़री मच गई। जिसका फ़ायदा राजनैतिक अपराधियों ने उठाया। विभाजन के दौरान, लोगों को कई प्रकार की विभिषिकाओं (त्रासदियों) का सामना करना पड़ा, जो इतिहास की सबसे बड़ी मानव त्रासदियों में से एक मानी जाती है।
मानव इतिहास में ऐसी त्रासदी कभी नहीं हुई और न इस तरह किसी राष्ट्र का विभाजन हुआ। विभाजन के समय सांप्रदायिक तनाव और हिंसा अत्यधिक बढ़ गई थी। विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच व्यापक हिंसा हुई, जिसमें लाखों लोग मारे गए। पुरुष, महिलाएं, बच्चे—किसी को भी नहीं बख्शा गया।
विभाजन के दौरान सामूहिक हिंसा और हत्याएं भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों में हुईं। इस समय का माहौल बेहद तनावपूर्ण था, और सांप्रदायिक हिंसा ने व्यापक रूप से विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। पंजाब क्षेत्र विभाजन के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। अमृतसर, लाहौर, और इसके आस-पास के क्षेत्रों में भारी हिंसा हुई। लाखों लोग मारे गए और हजारों गांवों को जला दिया गया।
सामूहिक हत्याएं और बलात्कार
गांवों में मुस्लिम भीड़ ने सिख और हिंदू गांवों पर हमले किए। कई गांवों में सामूहिक हत्याएं हुईं, और महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाएं सामने आईं। दिल्ली में भी विभाजन के समय सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं। पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख शरणार्थियों ने यहाँ शरण ली, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई। कई जगहों पर सामूहिक हिंसा और हत्याएं हुईं।
बंगाल (वर्तमान बंगलादेश) में भी व्यापक सांप्रदायिक हिंसा हुई। कोलकाता में “डायरेक्ट एक्शन डे” (16 अगस्त 1946) के दौरान बड़े पैमाने पर दंगे भड़के, जिसमें हजारों लोग मारे गए। बंगाल के नोआखली जिले में अक्टुबर 1946 में हिंदू समुदाय के खिलाफ हुई हिंसा ने भी मानवीयता को शर्मसार किया।
इस नरसंहार में हज़ारों हिंदुओं की हत्या हुई, और महिलाओं के साथ बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं सामने आईं। यह घटना इतनी भयावह थी कि महात्मा गांधी ने नोआखली में शांति यात्रा की शुरुआत की, ताकि वहां के लोगों के बीच शांति और सांप्रदायिक सद्भाव स्थापित हो सके।
मुल्तान (अब पाकिस्तान में) में भीषण हिंसा हुई, जिसमें सैकड़ों हिंदू और सिख मारे गए। मंदिरों और घरों को जलाया गया, और बड़ी संख्या में लोग बेघर हो गए। सियालकोट में भी सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें हजारों लोग मारे गए। रावलपिंडी जिले में मार्च 1947 में हुई सामूहिक हत्याएं विभाजन के दौरान हुई सबसे भयानक घटनाओं में से एक मानी जाती हैं। इस घटना में मुस्लिम भीड़ ने सिख और हिंदू गांवों पर हमला किया। हजारों लोग मारे गए, सैकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। कई गांवों को जला दिया गया, और इस हिंसा ने विभाजन के दौरान मानवीयता को शर्मसार कर दिया।
इस अवधि में महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर यौन हिंसा की घटनाएं हुईं। कई महिलाओं को अगवा किया गया, बलात्कार किया गया, और यहां तक कि जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया। विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों में महिलाओं को व्यापक रूप से हिंसा का सामना करना पड़ा। पंजाब, जो विभाजन के दौरान सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक था, यहाँ बड़े पैमाने पर महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाएं हुईं। लाहौर और उसके आस-पास के इलाकों में सिख और हिंदू महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया गया।
महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर यौन हिंसा
रावलपिंडी में मार्च 1947 में सामूहिक हत्याओं के साथ ही महिलाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर यौन हिंसा हुई। कई महिलाओं का अपहरण किया गया, बलात्कार किया गया और उन्हें जबरन मुस्लिम बनाया गया। सिंध प्रांत के कराची और हैदराबाद में भी महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाएं सामने आईं। कई हिंदू और सिख महिलाओं को अपहरण कर लिया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। 14 अगस्त 1947 का दिन, जब पाकिस्तान अस्तित्व में आया, उस समय की विभाजन विभिषिका के रूप में आज भी याद किया जाता है। इस दिन, विभाजन के कारण सांप्रदायिक हिंसा अपने चरम पर थी, और इसी के साथ बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाएं भी बढ़ गईं।
यह दिन भयानक हिंसा लेकर आया पूर्वी और पश्चिमी पंजाब में महिलाओं को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया। हजारों महिलाओं का अपहरण हुआ और उन्हें यौन हिंसा का शिकार बनाया गया। कई महिलाओं ने अपनी आबरू बचाने के लिए आत्महत्या तक कर ली। कई रिपोर्टों के अनुसार, इस दिन और इसके आसपास के दिनों में, महिलाओं को ट्रेनों में से खींच कर बलात्कार किया गया और फिर उनकी हत्या कर दी गई। इस दिन की घटनाएं विभाजन की त्रासदी का प्रतीक बन गईं, जब मानवीयता के सभी सीमाएं लांघ दी गईं।
विभाजन की त्रासदी, विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ की गई यौन हिंसा, इतिहास में हमेशा याद की जाएगी। यह एक ऐसा समय था जब असंख्य महिलाओं की ज़िंदगी बर्बाद हो गई और विभाजन का सबसे काला चेहरा सामने आया।विभाजन के कारण लाखों लोगों को अपना घर और जमीन छोड़कर जाना पड़ा। उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच नए सीमाओं के अनुसार पलायन करने के लिए मजबूर किया गया। यह पलायन अक्सर असुरक्षित और खतरनाक परिस्थितियों में हुआ, जिसके दौरान बहुत से लोग भूख, प्यास, और हिंसा के कारण मारे गए।
लाखों लोग मारे गए
विभाजन के दौरान लगभग 10 से 15 मिलियन (1 से 1.5 करोड़) लोग विस्थापित हुए। इनमें से अधिकांश लोग या तो पाकिस्तान से भारत में आए या भारत से पाकिस्तान में गए। यह विस्थापन अपने आप में एक भयानक त्रासदी था, जिसमें लाखों लोगों को अपना घर, संपत्ति और जीवनयापन छोड़ना पड़ा। विभाजन के दौरान मृत्यु की संख्या पर सामान्य अनुमानों के अनुसार, लगभग 1 से 2 मिलियन (10 से 20 लाख) लोग मारे गए। इनमें सामूहिक हत्याएँ, दंगे, और सांप्रदायिक हिंसा शामिल हैं। लोगों को अपने घर, संपत्ति, और व्यवसाय छोड़ने पड़े। कई लोगों की संपत्तियां जब्त कर ली गईं या वे हिंसा और अराजकता में नष्ट हो गईं। इससे कई परिवार आर्थिक रूप से बर्बाद हो गए।
इस त्रासदी ने लोगों के दिलों में गहरे घाव छोड़े। अपनों को खोने का दर्द, घर और जमीन से बेदखल होने का दुःख, और नई परिस्थितियों में संघर्ष करने का तनाव, इन सभी ने लोगों को मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत प्रभावित किया। जिसे विभाजन का शिकार हुए लोग कई पीढियों तक नहीं भूल सकते। विभाजन के पीड़ितों और शहीदों की स्मृति को बनाए रखना, उनके संघर्ष और बलिदान को सम्मानित करना हमारी जिम्मेदारी है। इससे सामाजिक न्याय और ऐतिहासिक न्याय की भावना बनी रहती है। विभाजन के बारे में शिक्षा और संवाद का प्रचार करना यह सुनिश्चित करता है कि युवा पीढ़ी अतीत की घटनाओं से परिचित हो और भविष्य में सही निर्णय ले सके।
संदर्भ:
- The Great Partition: The Making of India and Pakistan” (Yasmin Khan)
- Freedom at Midnight” (Larry Collins और Dominique Lapierre)
- The Transfer of Power 1942-47 (V.P. Menon)
- The Times of India, The Hindu,
- इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री