वर्षाजल संग्रहण का उपाय करो वरना केपटाउन बनते देर नहीं लगेगी
मानसून के आने के बाद ग्रीष्म ॠतु अपने अवसान पर है, वर्षा ॠतु प्रारंभ हो गई है, वर्षा ॠतु का स्वागत जल प्रबंधन के उपायों से करना चाहिए। हमने गर्मी के मौसम में देखा है कि भारत में विभिन्न स्थानों पर किस तरह से पेयजल के लिए मारामारी हो रही थी, लोगों को दिन भर पानी के लिए लाइन लगानी पड़ रही थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि, ‘ध्यान रहे कि आग पानी में भी लगती है और कोई आश्चर्य नहीं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के मसले पर हो।’
भारत के विभिन्न राज्यों और शहरों में जल संकट की स्थिति भिन्न है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और दिल्ली जैसे राज्य और शहर गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है और लोगों को पेयजल की आपूर्ति के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में भारत में पेयजल की भारी किल्लत हो सकती है। जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है। भारत में भी कई शहर केपटाउन बन सकते हैं।
दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन शहर, जो अपने सुंदर समुद्र तटों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, हाल ही में एक गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। इस शहर को जलविहीन घोषित कर दिया गया है, जो दर्शाता है कि विश्व भर में पेयजल की कमी और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव कितने गंभीर हो सकते हैं। भारत में दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, बंगलुरू, हैदराबाद आदि पांच शहरों के निवासी पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं।
केपटाउन में जल संकट का प्रमुख कारण पिछले कई वर्षों से लगातार हो रही सूखा और जल संसाधनों का असमान वितरण है। 2018 में, केपटाउन ‘डे जीरो’ के बहुत करीब आ गया था, जब शहर के नल पूरी तरह से सूख जाने की संभावना थी। इस संकट ने न केवल स्थानीय निवासियों को प्रभावित किया, बल्कि पर्यटकों और व्यवसायों को भी भारी नुकसान पहुंचाया।
विश्वभर में पेयजल की कमी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, लगभग 2.2 अरब लोग सुरक्षित पेयजल की कमी का सामना कर रहे हैं। इस कमी के मुख्य कारणों में जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। कृषि, उद्योग, और घरेलू उपयोग के लिए जल की बढ़ती मांग ने भी इस संकट को और अधिक गंभीर बना दिया है।
ग्लोबल वार्मिंग का जल संकट पर महत्वपूर्ण प्रभाव है। बढ़ते तापमान से बर्फ और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों और जलाशयों में पानी की कमी हो रही है। इसके अलावा, बदलते मौसम पैटर्न के कारण सूखा और बाढ़ की घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है। ये घटनाएं जल संसाधनों की उपलब्धता को और अधिक अनिश्चित बना रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जल स्रोतों में लवणता बढ़ रही है, जिससे पेयजल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
खाद्य सुरक्षा: जल की कमी के कारण कृषि उत्पादन में कमी आएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं और भूखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
स्वास्थ्य समस्याएँ: सुरक्षित पेयजल की कमी से जलजनित बीमारियों में वृद्धि हो सकती है। दूषित जल पीने से डायरिया, हैजा, और अन्य गंभीर बीमारियाँ फैल सकती हैं।
सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता: जल की कमी से समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ सकता है। जल के लिए होड़ बढ़ने से देशों के बीच और समुदायों के भीतर संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है।
प्रवास और विस्थापन: जल संकट के कारण लोगों को अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग, जहां जल संसाधनों की कमी होती है, वे शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर सकते हैं।
जल संकट का सामना कर रहे लोगों के लिए समाधान निम्नलिखित हो सकते हैं।
जल संचयन: वर्षा जल संचयन तकनीकों का उपयोग कर जल संसाधनों की वृद्धि की जा सकती है। इससे सूखे के समय में जल की उपलब्धता बनी रहती है। क्षतिपूर्ति और रिसाइक्लिंग: जल के पुन: उपयोग और रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे जल की बर्बादी कम हो सके।
कृषि में सुधार: ड्रिप सिंचाई: ड्रिप सिंचाई तकनीक का उपयोग कर कृषि में जल की बचत की जा सकती है। इससे पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचता है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है। जल संवेदनशील फसलें: कम जल की आवश्यकता वाली फसलों का उत्पादन करना चाहिए।
सार्वजनिक जागरूकता: शिक्षा और जागरूकता अभियान: जल संरक्षण की महत्ता को समझाने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों का आयोजन करना चाहिए। सामुदायिक भागीदारी: जल संरक्षण में समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।
प्रौद्योगिकी और नवाचार: जल शोधन तकनीक: समुद्री जल को पीने योग्य बनाने के लिए अत्याधुनिक शोधन तकनीकों का विकास और उपयोग करना चाहिए।
स्मार्ट जल प्रबंधन: स्मार्ट मीटरिंग और सेंसर तकनीकों का उपयोग कर जल उपयोग की निगरानी और प्रबंधन किया जा सकता है।
सरकारी नीतियाँ और सहयोग: सख्त नियम और कानून: जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए सख्त नियम और कानून लागू करने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय सहयोग: जल संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाना चाहिए।
केपटाउन का जल संकट हमें इस बात की याद दिलाता है कि जल हमारी सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है, और हमें इसे सहेजने के लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है। वैश्विक पेयजल कमी और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निपटने के लिए हमें सतर्क रहना होगा और समाधान खोजने की दिशा में सक्रिय प्रयास करने होंगे। जल संरक्षण, प्रौद्योगिकी का उपयोग, और सामुदायिक जागरूकता के माध्यम से हम इस संकट का सामना कर सकते हैं और एक सुरक्षित और स्थिर भविष्य की दिशा में बढ़ सकते हैं।
जल संग्रहण का कार्य कैसा है जिसमें व्यक्ति अपने स्तर पर अकेले कुछ नहीं कर सकता शायद सामूहिक प्रयास की जरूरत है जिसमें सरकार की भूमिका आवश्यक है
किसी भी दल की सरकार हो
बहुत ही सार्थक और सटीक आलेख
वास्तविक बात कही गई है जल संकट को खत्म करना है तो बहुत बातों को समझना और जनजीवन पर लागू करना होगा