हरजिंदर अनूपगढ़ : प्रकृति को समीप से देखना घुमक्कड़ी है।
घुमक्कड़ जंक्शन में आज आपकी मुलाकात करवाते हैं अनूपगढ़ पंजाब के हरजिंदर अनूपगढ़ से। पेशे से शिक्षक हरजिंदर अपनी घुमक्कड़ी से गांव का नाम रोशन कर रहे हैं। घुमक्कड़ी ऐसी लगी है कि घर से झूठ बोलकर जाना भी पड़े तो इससे गुरेज नहीं करते क्योंकि घुमक्कड़ी बला ही ऐसी है। इनसे घुमक्कड़ी की चर्चा करते हैं और जानते हैं इनके विषय में……
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
घुमक्कड़ जंक्शन में जगह देने के लिए ललित सर आपका दिल से आभारी हूँ। आपका घुमक्कड़ जंक्शन नए-नए घुमक्कड़ मित्रों से परिचित करवाता है। इतनी बढ़िया सीरीज को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने के लिए आप बधाई के पात्र हैं। मेरा बचपन भी औरों की तरह मस्ती में बीता। पंद्रह बर्ष की आयु तक अपने छोटे से और अति पिछड़े गांव अनूपगढ़ में ही पला बढ़ा। पिता जी सरकारी स्कूल में अध्यापक थे और माँ परम्परागत गृहणी। प्राइमरी तक की शिक्षा यहीं अपने गांव में ही हुई। षष्ठी से आठवीं कक्षा तक पड़ोसी गांव के स्कूल में साइकिलों पर पढ़ने जाना पड़ता था। मैट्रिक में मुझे अपनी मौसी के पास पढ़ने भेजा गया। वहां मुझे एक टीचर मिले जिनको मैने अपना गुरूदेव बना लिया। मैं पढ़ने में तो पहले ही होशियार था उन्होंने मुझे निखारा और तराशा, आज मैं यहां पर भी हूं इसका श्रेय उन्ही को जाता है। उसके बाद पंजाबी और इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन की और इसके साथ ही बी.एड की प्रोफेशनल डिग्री भी ली।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?
वर्तमान में मैं सरकारी प्राइमरी स्कूल में अध्यापन कार्य कर रहा हूँ, छोटे-छोटे बच्चों की प्यारी और तोतली बातें सुनते-सुनते पता ही नहीं चलता कैसे दिन गुजर जाता है। हमारा परिवार काफी बड़ा है। परिवार में मेरे माता-पिता, पत्नी, बेटी और बेटे के इलावा बड़े भाई, भाभी जी, भतीजा, भतीजी और एक मेरी मौसी के लड़के को मिला कर कुल ग्यारह सदस्य हैं।परिवार के। पिता जी रिटायर्ड अध्यापक हैं और भाई कृषक हैं। बड़े परिवार का यह फायदा है कि मुझ पर कोई जिम्मेवारी नहीं है।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
घूमने की रुचि कब पैदा हो गई पता ही नहीं चला। हमारे गांव के बीच से नहर गुजरती है, बचपन में मैं शाम को साइकिल पर नहर के किनारे-किनारे चलता पड़ोसी गांव में पहुंच जाता। घने पेड़ों से घिरा रास्ता और साथ में बहती नहर का दृश्य मुझे हमेशा अच्छा लगता था। मेरे लिए तो यहीं किसी सैलानी स्थल से कम नहीं था। बाकी बच्चे गांव की गलियों में खेलना पसंद करते लेकिन मुझे गांव से दूर वीरान खेतों और हमारे गांव के रेतीले टिब्बों (टिल्लों) में खेलना अच्छा लगता था। बचपन से ही मुझे एकांत और शांति पसंद थी। इसी कारण मुझे बचपन से ही पहाड़ बहुत लुभावने लगते थे। यूनिवर्सिटी में पढ़ते वक्त जब अपने दोस्त के साथ किनौर में उसके गांव गया तो वहां की शांति और नयनाभिराम दृश्यों में खोकर रह गया। वहां के लोगों का सादा जीवन, मेहमाननवाजी, छरछराते झरने, रमणीक हवाएं हमेशा के लिए मन मस्तिष्क में वस गईं। यहीं से घुमक्कड़ी की शुरुआत हुई।
4 – क्या आपकी घुमक्कड़ी मे ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं?@ मेरी घुमक्कड़ी में रोमांचक खेल शामिल नहीं हैं, हाँ! अब ट्रेकिंग जरुर इसमें सम्मिलित हो गई है। पहले तो मैं बाईक पर ही घूमता था लेकिन अब मैंने ट्रेकिंग को अपनाया है, तो अब आगे भविष्य में मेरी घुमक्कड़ी का मुख्य उद्देश्य ट्रेकिंग ही रहेगा। भविष्य में चादर ट्रैक, पिंन पार्वती ट्रैक और रूपकुंड ट्रैक का प्लान है। अगले जून में श्री खंड जाना है|
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?@ पहली यात्रा बचपन में मैंने तब की जब मैं पांचवीं कक्षा में पढ़ता था। यह पूरी तरह से एक धार्मिक यात्रा थी। हम लोग फतेहगढ़ साहब, मोरिंडा, रोपड़, कीरतपुर साहब, विशोडा साहब, आनंदपुर साहब और नैनादेवी जैसे तीर्थ स्थलों पर गए। नंगल डैम भी गए मगर कुछ लोग जो सिर्फ धार्मिक स्थल ही देखना चाहते थे उन्होंने यहां पर वक्त खराब करने से इंकार कर दिया। इसी यात्रा में मैंने जीवन में पहली बार टीवी से बाहर वास्तविक जीवन में पहाड़ों के दर्शन किए। उस वक्त छोटा होने के कारण मेरे लिए यह यात्रा भी एक अजूबे के समान थी। इस यात्रा से मुझे सिक्ख ऐतिहास से संबंधित उन स्थानों को देखने का मौका मिला जिनके बारे में किताबों में पढ़ा था। फतेहगढ़ साहब वोह धरती यहां दसवें गुरु गोविंद सिंह के छोटे शहजादे दीवारों में चुनवा कर शहीद कर दिए गए थे, आनंदपुर साहब की वोह धरती यहां दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, उस धरती पर नतमस्तक होने का मौका मिला। उस यात्रा से मुझे इतनी सीख जरुर मिल गई कि ऐतिहासिक स्थलों के बारे में किताबों से उतना ज्ञान नहीं मिलता जितना उन स्थानों पर घूम कर मिल सकता है।
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?@ परिवार में किसी को भी घूमने का शौक नहीं है जिस के कारण परिवार और शौक में सामंजस्य बिठाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कभी माँ की डांट तो कभी श्रीमती का गुस्सा झेलना पड़ता है। अब मैने बीच का रास्ता निकाल लिया है, तीन चार टूर घर वालों की अनुमति से लगा आता हूँ और दो तीन घर से झूठ बोल कर। कभी झूठ बोलना पड़ता है कि विभाग की तरफ से सेमिनार लगाने दिल्ली जा रहे हैं। कभी स्काउट एंड गाइडेंस का कैंप लगाने तारा देवी जाने का बहाना बनाना पड़ता है। कभी गेम्स में ड्यूटी लग गई है ऐसा बोलना पड़ता है। तो कभी डलहौजी में लेखक मित्रों का कोई समारोह होने का झूठ बोलना पड़ता है। ऐसे में झूठ को छिपाने के लिए मोबाइल में तस्वीरें भी हाईड करनी पड़ती हैं और भी झूठ पे झूठ बोलने पड़ते हैं। अब मैंने सोचा है कि अपने बच्चों को आठ नौ साल की उम्र में ही साथ ले जाना शुरू कर दूंगा।
7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताइए?@ घूमने के इलावा मुझे यात्रा वृतांत पढ़ने और अपनी यात्राओं के बारे में लिखने का भी शौक है। पंजाबी समाचार पत्रों मेरे यात्रा वृतांत अक्सर छपते रहते हैं। इस के इलावा मुझे उपन्यास पढ़ना भी अच्छा लगता है।
8 – क्या आप मानते हैं घुमक्कड़ी जीवन के लिए आवश्यक है?
@ घुमक्कड़ी से प्रकृति को नजदीक से देखने और इसका लुत्फ उठाने का मौका मिलता है। घने जंगल, चमचमाते हिंम शिखर, कल-कल बहते नदियां नाले, झरनों का संगीत और सर्पीली सड़कों की खूबसूरती को देखकर मनुष्य को प्रकृति का वास्तविक ज्ञान होता है। उसे समझ में आता है कि प्रकृति कितनी अनमोल और हसीन है तथा इसकी संभाल हमारे लिए कितनी जरूरी है।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ सबसे रोमांचक चंद्रताल की यात्रा रही। हमारी स्विफ्ट गाड़ी इस रास्ते के लिए सही नहीं थी लेकिन फिर भी हम बिना किसी अड़चन के कुंजम पास को पार कर गए। आगे चंद्रताल वाला रास्ता और भी रिस्की था लेकिन रोमांच और खूबसूरती से भरपूर। जैसे ही हम चंद्रताल की ओर लास्ट प्वाइंट से आधा किलोमीटर पीछे पहुंचे तो गाड़ी का टायर फट गया। जब स्टेपनी वाला टायर चढ़ाने के लिए फटा टायर उतारने लगे तो एक स्टड (नट) लूज होने के कारण टायर नहीं बदल पाए। अब हमारे दो साथी मुंबई से आए टूरिस्टों की गाड़ी में बैठकर मैकेनिक को लेने बातल की तरफ चल पड़े। हमारा एक साथी और मैं दोनों वहीं गाड़ी के पास रुक गए। गाड़ी में बैठे-बैठे ही हमने भयंकर ठंड में भूखे प्यासे रात गुजारी| लेकिन सुबह सूर्योदय से पहले चंद्रताल का नजारा देख कर सारी थकान और टेंशन फुरररररररररर हो गई| दूसरी शाम को वहां एक खोखे में खिचड़ी बना कर पेट पूजा की| यह जिंदगी का सबसे रोमांचक और खूबसूरत सफर था| वोह पल हमेशा के लिए एक सुनहरी याद बन कर जीवन से जुड़ गए|मैंने ज्यादा यात्राएं हिमाचल में ही की हैं| इसमें लाहौल स्पिती, कुल्लू, मंडी, कांगड़ा, सिरमौर, किनौर, हमीरपुर, शिमला, सोलन जिलों के बहुत से दर्शनीय स्थल शामिल हैं| उत्तराखंड के रानीखेत, नैनीताल, भीमताल, ऋषिकेश, पांवटा साहब, देहरादून, मंसूरी जैसे स्थल हैं| इसके बिना पंजाब के सभी ऐतिहासिक स्थल और राजस्थान में जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, नागौर, चुल्लू, पोकरण जैसे स्थानों पर घूमने का मौका मिला। सभी यात्राओं से यहीं सीखने को मिला कि इंसानियत और प्रकृति से प्रेम करना चाहिए।
10 – घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ घुमक्कड़ों के लिए क्या संदेश दूँ, हां! मेरे जैसे नव घुमक्कड़ भाईयों के लिए एक संदेश है कि अगर घर वाले ज्यादा रोका टोकी करें तो कभी कभी झूठ का सहारा भी ले लेना चाहिए| अंत पढ़ने वाले सभी बहनों और भाइयों को नमस्कार।
मुझे गर्व हो रहा है कि जिस घुमक्कड़ जंक्शन में बड़े बड़े घुमक्कड़ मित्रों के बारे में पढा करता हूं अाज उसी घुमक्कड़ जंक्शन में मेरे बारे में छपा है।अापका धन्यबाद ललित सर
हरजिंदर भाई, आपके जीवन परिचय को बढ़िया लगा । घुमक्कड़ी यूं ही चालू रखिये । ललित जी का धन्यवाद