विवेक तिवारी : जीवन में रोमांच घुमक्कड़ी से ही है।
घुमक्कड़ जंक्शन में आज आपकी मुलाकात करवाते हैं शिक्षा से वकील एवं पेशे से कृषक छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला निवासी विवेक तिवारी से। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने परम्परागत कृषि को ही अपना व्यवसाय चुना, जो कि भारत के लिए बहुत ही आवश्यक है, भविष्य में जो खेतों में अन्न उपजाएगा वही भरपेट खा सकता है, ऐसी स्थिति सामने आने वाली है। खेती से निवृत होकर विवेक अपनी घुमक्कड़ी साधते हैं एवं भरपूर घुमक्कड़ी करते हैं। चर्चा करते हैं इनसे घुमक्कड़ी की………
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
@ बाल्यकाल व स्कूल की शिक्षा दीक्षा बेमेतरा में ही हुई जो कि मेरा जन्मस्थान है। बचपन से ही unpredictable और मूडी किस्म का था। किसी वर्ष मेरिट लिस्ट में आता था तो अगले ही साल तृतीय श्रेडी। सात आठ वर्ष की उम्र का था घर के पास किसी सरकारी भवन से धीमी धीमी आवाजें सुनी। बड़ी आकर्षक व मोहक। हिम्मत करके उस प्रांगण में घुस गया। अंदर एक हॉल था। एक मोटे से आदमी ने डांट कर भगा दिया। पर मैं गया नहीं। अंदर से किसी ने कहा आने दे बच्चे को। शायद उनका मुखिया था वो। जो भी हो मुझे क्या। अंदर गया तो आंखे खुशी और विस्मय से भरी रह गई। बैंड, गिटार, कांगो, तबला, झुनझुना और माइक। आर्केष्ट्रा ग्रुप का अभ्यास चल रहा था। मैं घंटो बैठा रहा।सुनते। ट्यूशन का टाइम निकल गया। गुरुजी घर आकर चले भी गए। घरवालों ने सारे दोस्तों के घर ढूंढा पर मैं तो कहीं और था। घर पहुंचा तो जम के कुटाई हुई। फिर तो रोज का नियम हो गया था ये।किसी दिन किस्मत अच्छी रही तो गाने को भी मिल जाया करता था।
स्कूल में नाट्य में बढ़ चढ़ के भाग लेता था। पर अफसोस इस बात का है कि कैरियर के चक्कर मे इन सब रुझानों पर कभी आगे कुछ हो नहीं पाया। किशोरावस्था में तो बस दोस्ती ही मेरी दुनिया थी।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?@ कई नौकरियां, वकालत, और व्यवसाय पर हाथ आजमाने के बाद फिलहाल भारतीय रेलवे में सिविल कॉन्ट्रैक्ट का व्यवसाय के साथ कृषि कार्य मे संलग्न हूँ। अभी तो अकेला ही हूँ। पूरी दुनिया मेरा परिवार है जिसमे आप सब भी है।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?@ ये तो मैं खुद नहीं जानता। 11 साल की उम्र में ही सारी जमापूंजी और घर का कबाड़ लोहा पीतल बेच कर सात रुपया पचास पैसा लेकर सायकल से बड़े शहर घूमने निकल गया था, जो घर से 75 किमी दूर था। एक दोस्त भी साथ था। शहर से बाहर 5 किलोमीटर आने के बाद हिम्मत जवाब दे गई और घर वापस।
4 – क्या आपकी घुमक्कड़ी मे ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं?@ खेल तो नहीं पर हां, ट्रेकिंग जरूर। ट्रेकिंग एक जीवन शैली है। सच कहूं तो जीवन की कमांडो ट्रेनिंग है ये। आपकी शारीरिक और मानसिक कूवत की परीक्षा भी लेती है। और मजबूत भी बनाती है।
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?@ एक छोटी किंतु अविस्मरणीय यात्रा थी। फरवरी 1997 रायपुर से अमरकंटक रोड ट्रिप था। अचानकमार और मैकल सतपुड़ा के पर्वत श्रृंखला और घने जंगलों की खूबसूरती ने सम्मोहित कर दिया था। वातावरण में जो संजीदगी और जीवंतता उन दिनों उस स्थान पर थी, आज भी कहीं नही देखने को मिलती मुझे। लौटते समय लमनी व छपरवा के बीच जब गाड़ी शांत लुढ़कते हुए घाटियों से उतर रही थी मोड़ के बाद अचानक एक वयस्क तेंदुआ सड़क पार कर रहा था। हेड लाइट की चौन्धियाती रोशनी उसपे पड़ी। गाड़ी और तेंदुए, दोनो ने आपातकालीन ब्रेक लगाया और 60 सेकंड से अधिक का नयन मिलान हुआ।
इसी यात्रा में ये महसूस हुआ कि प्रकृति से दूर जीवन व्यर्थ है। जल्द ही प्रकृति की ओर पलायन करूँगा। आज भी ये विचार उतना ही ताजा है जितना 20 साल पहले।
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
@ वैसे तो आनंदित अविवाहित रहने की वजह से जिम्मेदारियां अपेक्षाकृत कम है। मगर उतनी भी कम नहीं। कुछ समझौता, कुछ त्याग, कुछ अतिरिक्त प्रयास के साथ सब कुछ समायोजित हो जाता है। जहाँ चाह वहाँ राह।
7 – अन्य रुचियों के विषय में बताइए?
@ घुमक्कड़ी के अलावा मेरी रुचि संगीत, सिंगिंग, कुकिंग में भी है।
8 – क्या आप मानते हैं घुमक्कड़ी जीवन के लिए आवश्यक है?
@ जरूर। बशर्ते वो पर्यटन से अलग हो। शिक्षण संस्थाएं डिग्रियां देती है केवल नौकरियां पाने के लिए। वहीं दुनिया एक पाठशाला है और घुमक्कड़ी वास्तविक शिक्षा है जो आपको व्यापक मानसिकता और जीवन दर्शन सिखाती है। दुनिया एक किताब है और जो एक जगह रहते है वो इसका एक पन्ना ही पढ़ पाते है। इसे कोई घुम्मकड़ ही समझ सकता है। जिस तरह फिल्मो में हीरो सर पे कफ़न या जान हथेली पे लेकर निकलता है, वैसे ही यथार्थ जीवन में घुम्मक्कड़ अपना घर काँधे पर लेकर चलता है। जहाँ गया वहीँ का हो गया। अपने अस्तित्व को भुलाने के अहसास को पाने के लिए वर्षो साधना करते है लोग। वो उसे सहज ही पा लेता है। उसको सारी दुनिया घर की तरह लगने लगती है। “वसुधैव कुटुम्बकम” का ज्ञान बोध उसे सहज ही हो जाता है, जिसको पाने के लिए लोग वेद पुराण,ज्ञान ध्यान में भटकतेे है। यकीन मानिए घुम्मक्कड़ी से बेहतर और कुशल शिक्षक कोई और हो ही नहीं सकता।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ सबसे रोमांचक यात्रा मेरे मित्र सुदीप नायर के साथ त्रिवेंद्रम(केरल) से रायपुर(छत्तीसगढ़) तक की सड़क यात्रा (2058किमी) थी। थोड़ी सोच विचार के बाद हमने आसान और सुगम रास्ता छोड़कर जानबूझ कर दूसरा रास्ता चुना था, क्योंकि हम घने और कोर नक्सली क्षेत्र से गुजरना चाहते थे। कोंटा से सुकमा तक की 70 किमी की दूरी तय करने में हमे 9 घंटे लगे थे जिसमें 1 घंटे वो भी शामिल हैं जब नक्सलियों ने हमारा रास्ता रोक लिया था।
सभी यात्राओं ने मुझे इतना ही सिखाया है कि जिंदगी है छोटी और समय है बहोत कम, आलोचनाओं की परवाह क्यूँ करे हम। जिंदगी भर का हिसाब किताब लगा के बैठ जाएंगे तो जिंदगी जी नहीं पाएंगे। आज इस पल को जी लें। कल जो होगा देखेंगे।
10 – घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ जिंदगी जैसे बने जीना हकीकत है, बाकी सब किताबों की नसीहत है। घूमते रहिये, जीवन में रोमांच घुमक्कड़ी से ही है। दुनिया गोल है, कभी किसी मोड़ पर हमारी मुलाकात होगी। इन्ही आशाओं के साथ।
दिलचस्प इंटरव्यू। सवाल तो हर किसी से यही पूछे गए पर इस बार जवाब पढने में ज्यादा मजा आया।
बहुत बढिया ! ललित जी के प्रयास से नए नए लोगो से मिलने का अवसर मिला ।
अपरिचित चेहरा ओर अनजाने से जवाब ! लेकिन घुमक्कड़ी अंजानो को भी परिचित बना देती है। ललित सर काबिलेतारीफ है और उनका ये घुमक्कड़ी जंक्सन्ध भी ???
बहुत ही नायाब है आपकी कहानी। सात रुपये वाली , तेंदुए वाली, और संगीत वाली। दिलचस्प।