जय श्री : घुमक्कड़ी एक खुली पुस्तक वाला विद्या-व्यसन है।
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
शहर किसी भी सामान्य छोटे शहर जैसा ही था। पढ़-लिख कर जीवन में कुछ बन जाने का सपना अधिकांश के मन में था, लेकिन कुछ ही परिवार उन दिनों बेटियों को ऐसी इजाजत देते थे। तो बहुत प्रतिभावान लड़कियों को मेने स्नातक होते-होते विवाह और गृहस्थी में बंध जाते देखा। मेरे पापा गणित के शिक्षक थे और मां गृहिणी। दादा-दादी भी पढ़े लिखे थे। मेरी दीदी ने जब CA शुरू किया 1988 में और फिर रैंक के साथ पूरा किया 1991 में, तो कई प्रश्नवाचक आँखे देखने को मिली। लेकिन उन्ही से प्रेरणा पाकर मैंने भी CA कर लिया 1996 में/ परिवार में पढ़ने के लिए बहुत प्रोत्साहन था। इसके अलावा जैसा उस समय होता था, लड़कियों को गृहस्थी के काम में भी उतनी ही दक्षता दिखानी होती थी तो पढाई के साथ-साथ सभी काम सीखे। स्कूली शिक्षा हिंदी माध्यम से पूरी की। फिर खुद ही मेहनत करके अंग्रेजी में दक्षता हासिल की। दर्पण के सामने खड़े होकर निहारने की बजाय अंग्रेजी की किताब उठाकर बोल-बोलकर अंग्रेजी बोलना सीखा, क्योंकि आस-पास तो कोई अंग्रेजी बोलता नहीं था।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं?
परिवार में मेरे पति जो कि सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में है और दो बेटे- छोटा नौ वर्षीय और बड़ा पंद्रह वर्षीय। मम्मी-पापा आते जाते रहते हैं।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
विवाह के बाद लेकिन घूमने का सिलसिला शुरू हुआ क्योंकि मेरे पति मनीष भी मेरी ही तरह विद्या-व्यसनी है और उन्होंने अपने मम्मी-पापा के साथ अनेको यात्राएँ की थी तो यायावरी उनके दिल-दिमाग में थी। पहला ट्रिप था हमारा हनीमून ट्रिप जो उन्होंने २३ दिन का बनाया था। उसमे उन्होंने मंदिर (मदुरै), जंगल (बांदीपुर), हिल स्टेशन (येरकाड और कोडाइकनाल), पक्षी-विहार (रंगनाथित्तु) और एक शहर (मैसूर) रखा था। मेरे लिए ये एक सरप्राइज की तरह रखा गया था और ऐसी कोई जगह नहीं थी जो मुझे और उन्हें न पसंद आई हो। उसके बाद उनके ऑफिस से कई बार वे यूरोप गए। तब उतने पैसे नहीं थे लेकिन फिर भी वे नहीं माने और मैंने भी अपने खर्च पर उनके साथ यूरोप की यात्राएं की। पीछे मुड़ कर देखती हूँ तो उनका निर्णय सही लगता है क्योंकि बैंक तो बढ़ जाता लेकिन वे यादगार अनुभव और यादें न बढ़ पाती। उसके बाद से हर ट्रिप मैं ही प्लान करती हूँ।
4 – घुमक्कड़ी से आप क्या समझते हैं एवं ब्लॉग लेखन कब एवं क्यों प्रारंभ किया?@ घुमक्कड़ी एक खुली पुस्तक वाला विद्या-व्यसन है। आप चाहे तो सिर्फ भूगोल तक इसे सीमित रखे या फिर इसे सभी विषयों में फैला लें। तो मेरे लिए तो घुमक्कड़ी इतिहास, भूगोल से होता हुआ पशु-पक्षी, तितलियों से उड़कर कला और साहित्य तक और उससे भी परे का एक असीमित नीले आकाश वाला पुस्तकालय है। घुमक्कड़ी मेरे लिए जीवन में बदलाव का नहीं अपितु जीवन को ही और गहरे में जीने और जानने का जरिया है।
लेखन मैं कभी से करती थी. डिबेट और लेखन की अनेक प्रतियोगिताएं जीतीं हैं मैंने स्कूल और कॉलेज में। मेरे पति भी लिखने में बहुत रूचि रखते हैं, मुझसे भी ज्यादा। वे यात्रा वृत्तांत, कवितायेँ, साहित्य समीक्षा अपनी डायरी में लिखते थे। मैं अपनी फोटो-एल्बम के लिए लिखती थी। ऐसे ही एक बार अपनी सिक्किम यात्रा के कुछ चुनिंदा फोटो और संक्षिप्त लेख लिख कर दोस्तों को भेजे थे। तब हमारे मित्र नंदन झा ने घुमक्कड़ डॉट कॉम शुरू ही किया था। उनके कहने पर घुमक्कड़ पर लिखना शुरू किया और ब्लॉग लेखन का सिलसिला चल पड़ा। उसके बाद अपना ब्लॉग manishjaishree.com बनाया जिसमें मैं, मनीष और मेरा बड़ा बेटा हम सभी लिखते हैं।
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?@ जैसा की मैंने बताया, मेरी पहली यात्रा मेरा हनीमून ट्रिप थी और उसी में मैंने शहर, जंगल, हिल स्टेशन, बर्ड सैंक्चुअरी जैसे बहुआयामी अनुभव ले लिए थे। उस ट्रिप के बाद हमें ये समझ आ गया था कि व्यू पॉइंट देखना, कार में साइट सीइंग करने जाना दोनों को पसंद नहीं आता। इसके अलावा जल्दी-जल्दी सब कुछ देख लेना भी मेरे और उनके स्वभाव पर नहीं जाता। तो हम जहाँ भी जाते है, स्थानीय लोगों से पूछकर, उन्हें साथ ले पैदल ही घूमते हैं। अगर यात्रा किसी कला या ऐतिहासिक स्थल की है तो हम पहले से पढ़ कर जाते हैं, वहां जाकर उसे बारीकी से देखते हैं, कई प्रश्न और जिज्ञासाएं लेके घर लौटते है और उसके बारे में और भी पढ़ते हैं।
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?@ ऐसी कोई यात्रा नहीं जो मैंने परिवार के बिना की हो। हाँ, कुछ ऑफिसियल यात्राओं को छोड़ कर। जैसा कि मैंने अपने ब्लॉग पर भी लिखा है- “मेरे बच्चे टॉय-ट्रेन होने से पहले ही ट्रेवल-ट्रैन हो गए थे।” बड़ा बेटा जब दो साल का था उसके साथ हमने एक दिवसीय ट्रैकिंग करना शुरू कर दिया था। हाँ, छुट्टियों का सामंजस्य जरूर बिठाना पड़ता है तो कभी हम बच्चों के हिसाब से छुट्टी लेते हैं और कभी बच्चों की अपने हिसाब से छुट्टी करवाते हैं।
7 – आपकी अन्य रुचियों के साथ तीन घुमक्कड़ों के नाम बताइए जिनके घुमक्कड़ी लेखन ने आपको प्रभावित किया?
@ पढ़ना और लिखना मेरी अन्य रुचियाँ हैं। संगीत सुनना और भजन गाना मुझे बहुत प्रीतिकर है। लेखन मुझे कइयों का पसंद है। कुछ की बेबाकी अच्छी लगती है तो कुछ का सिलसिलेवार ब्यौरा, कुछ लोगों का एक परिपूर्ण आलेख लिखने की शैली अच्छी लगती है। विषय अनुसार भी लेखक अलग अलग हैं। कुछ ट्रेकिंग के महारथी हैं तो कुछ तीर्थों के, कुछ पूर्णतः घुमक्कड़ हैं। इसलिए किन्ही तीन के नाम लेना मुश्किल है।
8 – क्या आप घुमक्कड़ी को जीवन के लिए आवश्यक मानते है?
@ हाँ! अपने दिमाग की खिड़कियां खुली रखने के लिए, जीवन को जैसा है वैसा देखने के लिए, पृथ्वी के भिन्न भिन्न जड़-चेतन रूपों-अरुपों को देखने के लिए और सबसे बढ़कर ये अनुभव करने के लिए इस असीम निस्तार में हम एक रेत के कण जितने भी नहीं, और ऐसे कितने ही कण बने और मिट गए। लोक और परलोक दोनों के बारे में मन में प्रश्न उठेंगे और उनके उत्तर की खोज जीवन को परिपूर्णता देगी।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ देश में अभी तक बंगाल, कश्मीर, झारखण्ड, बिहार, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल और नागालैंड को तो छू भी नहीं पाए हैं. इसके विपरीत कुछ राज्यों में एक महीने से भी अधिक समय रहे हैं क्योँकि हम सभी यात्राएं बच्चों के साथ ही करते हैं और खुद हमें भी slow travel करना ही अच्छा लगता है तो अनेको यात्राएं करने के बाद भी लिस्ट हमारी लम्बी नहीं। हाँ! अनुभव और जगहें दोनों अनूठी हैं। जैसे की सिक्किम में तेरह दिन रहकर भी हम ने अपने आपको सिर्फ पेलिंग और युकसोम तक ही सीमित रखा। वहां हर दिन एक नया ट्रेक किया जहाँ सामान्यतः पर्यटक नहीं जाते। केरल की भी पंद्रह-पंद्रह दिन की दो यात्राएं दिल्ली में रहते हुए की थी लेकिन अभी भी मशहूर जगहों पर जाना बचा ही है। किन्नौर की पंद्रह दिन की यात्रा में कल्पा से ऊपर नहीं गए। मेरे बेटे ने अपने कम्बोडिआ के ब्लॉग में लिखा कि ” Mummy Papa take even more time to see the sculptures than the sculptures took to create them.” ये अलग बात है कि दोनों बेटे कार में “व्यू पॉइंटिंग” के नाम से भी परहेज करते हैं और ट्रेकिंग और हाईकिंग करते वक्त समय नाम की चीज भूल जाते हैं। विदेश में एशिया में थाईलैंड व कम्बोडिया, यूरोप में इटली, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड और आयरलैंड देखा है।
सबसे रोमांचक यात्रा रही जब हमने बड़े बेटे के साथ, जब वो दो वर्ष का था। इटली में अति प्रसिद्ध ‘चीन्क्वे तेर्रे (cinque Terre)’ नामक ट्रेक किया। ये ट्रेक मेडिटेरेनियन सी के किनारे ऊँचे cliffs पर बसे पांच गाँवों को जोड़ता है। सभी गांवों से तीखी उतराई करके नीचे बने रेल स्टेशनों से ट्रैन पकड़ कर अगले गांव भी पहुँच सकते हैं। जब ट्रेक करने की सोची तो मन में ये तसल्ली थी कि अगर छोटे बच्चे के साथ नहीं कर पाए, तो उतर कर ट्रैन पकड़ लेंगे और लौट आएंगे। लेकिन उसने पूरे चार गांव तक हमारे साथ पैदल हाईकिंग की। हमारी रफ़्तार उसके साथ कम थी क्योंकि किसी गांव में आइसक्रीम खानी थी तो कभी समंदर किनारे जाकर पत्थर फेंकने थे, पानी और डायपर ब्रेक अलग से। उससे भी अधिक वहां बहुत से ट्रेकर उसे रोक कर प्रशंसा करते, नाम पूछते, उससे भी हमें देर हुई लेकिन वही एक नए-नए माता-पिता के लिए सबसे यादगार क्षण रहे। फिर वो शाम का खाना सात बजे खाकर जो सोया तो ट्रैन में और फिर अगले दिन सुबह आठ बजे तक सोया ही रहा। उसी ट्रेक को हमने दुबारा किया जब वह चार वर्ष का था। इस बार भी चार ही गांव कर पाए क्योंकि अब रफ़्तार तो तेज़ थी लेकिन जिद भी और बहुत समय समंदर किनारे पत्थर फेंकने में ही बीता।
10 – घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ जो घुमक्कड़ हैं ही, उनके लिए क्या संदेश।
जय श्री जी, आज आपके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला .बहुत अच्छा लिखा है आपने .मुझे ख़ुशी है कि एक बार आपसे और आपके पति देव से रूबरू मिल चूका हूँ .
आपसे परिचय करवाने के लिए ललित शर्मा जी का भी बहुत धन्यवाद .
बहुत धन्यवाद नरेश जी. वह मीटिंग हमें भी बड़ी याद आती है.
Bahut badiya jay shri ji , maja aaya apki ghumakkadi k bare me jankar .
Sath hi apke sahas ko bhi pranam jo 2 sal ke bete ko aapne 4 gav ki trekking krwa di.
Punah badhayi apko evam aabhar lalit ji ka??
वो ट्रेक आसान किन्तु लम्बा ट्रेक था. बच्चे अपनी आदतें और गुण साथ ही लाते हैं. हम तो निमित्त मात्र होते हैं उनको अवसर देने के।
जयश्री जी, अभी तक आपके ब्लॉग लेखन शैली के कायल थे, अब आपके घुमक्कड़ जीवन शैली के फैन हो गए । ललित जी को भी आभार आपसे मिलवाने के लिए ।
हार्दिक आभार मुकेश जी. लेखन शैली को पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद।
बहुत बढ़िया….
धन्यवाद अनिल जी
प्रेरक साक्षात्कार। आराम वाली घुमक्क्ड़ी सबसे बेहतरीन होती है। जयश्री जी के ब्लॉग को पढता रहता हूँ। आज उनके बारे में काफी कुछ जानने को मिला।
धीमी घुमक्कड़ी किन्तु आराम वाली नहीं क्यूंकि हम पुरे दिन पैदल होते हैं. वैसे उसी में आराम लगता है हमें।
धन्यवाद विकास जी.
धन्यवाद अभयानंद जी.
ललित जी- आपका हार्दिक आभार मुझे इस प्लेटफार्म पर स्थान देने के लिए। आपको लेख पसंद आते हैं, ये जानना मेरे लिए बहुत प्रेरणादायी रहा. मैं तो आपके लेखों और ज्ञान की कायल हूँ ही.
जयश्री जी आपके बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा, अभी तक आपका ब्लॉग तो नही पढ़ा जानकारी ही नहीं थी। ललित शर्मा जी का धन्यवाद की ऐसी शख्सियत से परिचित कराया।