जिन्होंने मृत्यु को चुन लिया, पर धर्म नहीं छोड़ा: वीर बाल दिवस

‘सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरू गोबिंदसिंह नाम कहाऊं ।’ ऐसा दृढ़ संकल्प लेकर मात्र 40 सिख सैनिक और अपने 17 वर्षीय पुत्र अजीत सिंह और 14 वर्षीय पुत्र जुझार सिंह को लेकर 10 लाख मुगल सैनिकों से युद्ध करते हुए विजय प्राप्त करने वाले दशम गुरू गोबिंदसिंह ने आततायी औरंगजेब से 14 बार युद्ध लड़ा था । जफरनामा के अनुसार चमकौर साहिब के इस युद्ध में उनके दोनों पुत्रों ने मातृभूमि की रक्षा में अपना बलिदान दे दिया।
गुरू गोबिंदसिंह के दो छोटे पुत्रों 9 वर्षीय जोरावर सिंह और 7 वर्षीय फतहसिंह को मुगलों ने धोखे से पकड़कर औरंगजेब के सेनापति वजीर खान के समक्ष प्रस्तुत किया । वजीर ने उन दोनों बालकों को अपनी जान बचाने के लिए इस्लाम को अपनाने की शर्त रखी। किन्तु मृत्यु का भय भी इन नन्हें शूरवीरों को स्वधर्म से डिगा नहीं सका । वह 26 दिसम्बर 1704 का दिन था जब मुगलों ने उन दोनों निडर बालकों को जिन्दा ही दीवार में चुनवा दिया।
दोनों वीर बालकों के बलिदान की स्मृति में ही 2022 में प्रतिवर्ष 26 दिसम्बर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा हुई । निश्चित ही यह दिन बच्चों को अपने आत्मबल को पहचानने, निडर बनने और स्वधर्म व स्वराष्ट्र के प्रति सर्वस्व समर्पण की प्रेरणा देता है। ‘सूरा सो पहचानिए, जो लडै दीन के हेत, पुरजा – पुरजा कट मरै, कबहू ना छाडे खेत’ गुरू गोबिंदसिंह का यह उद्घोष अपने देश और संस्कृति के प्रति जीवन समर्पित कर देने के संकल्प का प्रतीक है।
लेखक साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी हैं।
