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पश्चिम की चकाचौंध से मोहभंग, भारतीय जीवन मूल्यों की ओर वैश्विक वापसी

प्रहलाद सबनानी

वैश्विक पटल पर अचानक परिस्थितियां बहुत तेजी के साथ बदलती हुई दिखाई दे रही हैं। अभी तक कुशल युवा भारतीय अपना सपना साकार करने के उद्देश्य से अमेरिका में रोजगार के अवसर तलाशने के लिए जाते रहे हैं, परंतु अब कुछ अलग प्रकार का माहौल बनता हुआ दिखाई दे रहा है। अमेरिका सहित अन्य कई विकसित देशों में रहन-सहन अर्थात जीवन निर्वहन के खर्चे असहनीय स्तर पर पहुंच गए हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन देशों में मुद्रा स्फीति की समस्या लंबे समय से बनी हुई है और अथक प्रयासों के बावजूद इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है।

विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अत्यंत भयावह स्तर पर पहुंच गई है। विकसित देशों में यदि किसी नागरिक को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा उपलब्ध नहीं है, तो उसके लिए इलाज कराना लगभग असंभव हो जाता है। स्वास्थ्य सेवाओं की लागत इतनी अधिक बढ़ चुकी है कि आम नागरिक के लिए इलाज कराना कठिन होता जा रहा है। अमेरिका में तो अब युवाओं के साथ-साथ सेवानिवृत्त नागरिक भी भारत में बसने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

अमेरिका के न्यूयॉर्क, टेक्सास, वाशिंगटन, लॉस एंजेल्स, सिलिकन वैली आदि शहरों से इंजीनियर, सृजक (क्रिएटर), युवा उद्यमी और बुजुर्ग नागरिक भारत के मुंबई, पुणे, गोवा, हैदराबाद, बेंगलुरु, केरल, पोंडिचेरी, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों एवं शहरों में आकर बसने की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।

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भारत की तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था, तुलनात्मक रूप से सस्ती दरों पर उत्पादों की उपलब्धता, सेवा भावना के साथ उच्च स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं और भारत की महान संस्कृति विकसित देशों के नागरिकों को आकर्षित कर रही हैं। भारत का फलता-फूलता तकनीकी उद्योग आज ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करा रहा है जो किसी भी विकसित देश से कम नहीं हैं।

भारत में नागरिकों को मानसिक शांति प्राप्त होती है क्योंकि यहां सनातन संस्कृति का अनुपालन किया जाता है, जबकि विकसित देशों में मानसिक शांति का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव में वहां संयुक्त परिवार प्रणाली लगभग समाप्त हो चुकी है। बच्चे 18 वर्ष की आयु के बाद अलग हो जाते हैं, जिससे माता-पिता अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं और उनकी देखभाल का दायित्व सरकार पर आ जाता है। इसके विपरीत भारत में संयुक्त परिवार सामाजिक संरचना की मजबूत विशेषता है, जहां बुजुर्गों की देखभाल परिवार स्वयं करता है।

हाल के वर्षों में भारत के लिए वीजा प्राप्त करने वाले अमेरिकी नागरिकों की संख्या वर्ष 2021 के बाद से लगभग दोगुनी हो गई है। विकसित देशों में मानसिक बीमारियों का प्रसार तेजी से हुआ है, जिससे मुक्ति पाने के उद्देश्य से कई विदेशी नागरिक हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्रों में बस रहे हैं। वहां उन्हें आध्यात्मिक शांति का अनुभव हो रहा है।

भारत की बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम भी विदेशी नागरिकों को आकर्षित कर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कार्यरत अमेरिकी पेशेवरों को भारत में नए अवसर दिखाई दे रहे हैं। साथ ही भारत में प्रतिभावान इंजीनियरों की प्रचुर उपलब्धता के कारण कई अमेरिकी कंपनियां अपने तकनीकी कार्य भारत में स्थानांतरित कर रही हैं।

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इन कंपनियों को यह अनुभव हो रहा है कि भारत में कम लागत पर अधिक उत्पादकता प्राप्त की जा सकती है। अमेरिका में उत्पादों और श्रम की लागत अत्यधिक बढ़ चुकी है, जिससे कंपनियों की लाभप्रदता प्रभावित हो रही है। इसके विपरीत भारत में लागत कम है और सुविधाएं भी प्रतिस्पर्धी हैं।

भारत विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार भी प्रदान करता है। इसी कारण उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने पर गंभीरता से विचार कर रही हैं। कई कंपनियां भारत में निर्माण कर स्थानीय बाजार में बिक्री के साथ-साथ निर्यात भी कर रही हैं।

भारत में आधुनिक तकनीक, कम जीवनयापन लागत, युवा कार्यबल, नियंत्रित मुद्रा स्फीति, विशाल बाजार और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं। विकसित देशों में पेंशन पर निर्भर नागरिक उच्च लागत वहन नहीं कर पा रहे हैं, जबकि भारत में वे अपेक्षाकृत कम खर्च में सम्मानजनक जीवन जी सकते हैं।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में हाल के वर्षों में अकल्पनीय सुधार हुआ है। यहां विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं अन्य देशों की तुलना में केवल 25 से 30 प्रतिशत खर्च पर उपलब्ध हैं। यही कारण है कि आज अमेरिका के साथ-साथ अरब देशों से भी बड़ी संख्या में लोग भारत में इलाज कराने आ रहे हैं।

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भारतीय संस्कृति, योग, आयुर्वेद और “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना विदेशी नागरिकों को आत्मिक शांति प्रदान करती है। पश्चिमी सभ्यता के केवल “मैं” केंद्रित जीवन से ऊबे नागरिक अब भारत के सामाजिक ताने-बाने में अपनापन खोज रहे हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों के दौरान लाखों विदेशी नागरिक प्रयागराज आए और यहां के आध्यात्मिक वातावरण से प्रभावित होकर भारत में बसने के बारे में सोचने लगे।

भारतीय समाज का लचीलापन और अपनापन विदेशी नागरिकों के लिए भारत को और अधिक आकर्षक बनाता है। यहां उन्हें न केवल स्वीकार किया जाता है, बल्कि सहयोग और सुविधाएं भी सहज रूप से उपलब्ध होती हैं।

विशेष रूप से भारत में बुजुर्गों को मिलने वाला सम्मान अमेरिकी सेवानिवृत्त नागरिकों को गहराई से प्रभावित करता है। अमेरिका में बड़ी संख्या में बुजुर्ग अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार हैं, जबकि भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली उन्हें सुरक्षा और सम्मान प्रदान करती है। केरल, गोवा, पोंडिचेरी, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य अमेरिका से सेवानिवृत्त नागरिकों के लिए स्वर्ग समान प्रतीत हो रहे हैं।

आज भारत आत्मविश्वास के साथ अपने पैरों पर खड़ा है और वैश्विक नागरिकों के लिए आशा, शांति और अवसर का केंद्र बनकर उभर रहा है।

लेखक पूर्व बैंक अधिकारी एवं आर्थिक मामलों के जानकार हैं।