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भीम-कीचक मंदिर, मल्हार: प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प का विस्मयकारी साक्ष्य

स्वराज्य करुण
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

उस ज़माने में कोई उन्नत टेक्नोलॉजी रही होगी या नहीं, इस बारे में पक्के तौर पर तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन प्राचीन भारत और प्राचीन विश्व के विशाल ऐतिहासिक मंदिरों और ऊँचे-ऊँचे भवनों को देखें या उनके बारे में पढ़ें, तो यह कल्पना करके आश्चर्य होता है कि जिस युग में बड़े-बड़े पत्थरों को तोड़ने और तराशने के लिए आधुनिक औज़ार नहीं थे, दूर-दराज़ से उठाकर लाने के लिए आज की तरह भारी वाहन नहीं थे, भारी मशीनें नहीं थीं, उस दौर में इन विशाल संरचनाओं का निर्माण आख़िर कैसे किया गया होगा?

जिस प्रकार मिस्र के हज़ारों साल पुराने विशाल पिरामिड हमें आश्चर्यचकित करते हैं, ठीक उसी तरह भारत और दुनिया के अलग-अलग देशों के सैकड़ों-हज़ारों साल पुराने विशाल भवनों की निर्माण-कला और उनके निर्माण-काल के बारे में सोचकर हैरत होती है।

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में कस्बेनुमा ऐतिहासिक नगर मल्हार स्थित ‘भीम-कीचक’ मंदिर प्राचीन भारतीय वास्तु-शिल्प का एक अनुपम उदाहरण है। आज से तीन साल पहले बिलासपुर यात्रा के दौरान मैं कुछ देर मल्हार में रुका था। मुझे उस दिन ‘भीम-कीचक’ मंदिर और उसके परिसर के अवलोकन का अवसर मिला। उसकी दीवारों पर कुछ पत्थरों को हाथ से नापकर भी देखा। प्रत्येक पत्थर की चौड़ाई दो हाथ और लंबाई ढाई हाथ की है, यानी कम से कम दो फुट चौड़ी और ढाई फुट लंबी पत्थर की ईंटें।

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मैंने देखा—दरअसल यह एक शिव मंदिर है, हालांकि उसकी जलहरी में शिवलिंग नहीं है। लेकिन मंदिर की भव्यता बताती है कि कभी यह दक्षिण कोसल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख आस्था केंद्र रहा होगा। पुरातत्वविदों ने अनुमान के आधार पर इसे छठवीं-सातवीं सदी का मंदिर बताया है। अगर उनका अनुमान सटीक हो, तो इसे तेरह सौ से चौदह सौ साल पुराना कहा जा सकता है। भारत सरकार द्वारा ‘प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल व अवशेष अधिनियम, 1958 (यथा संशोधित)’ के अंतर्गत इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है। इस आशय का बोर्ड भी वहाँ हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रदर्शित किया गया है।

मल्हार के ‘भीम-कीचक’ मंदिर की अब तक शायद उतनी चर्चा नहीं हो पाई है, जितनी वहाँ के डिडनेश्वरी मंदिर की होती रही है। भीम-कीचक मंदिर छत्तीसगढ़ के मल्हार नगर पंचायत क्षेत्र के पातालेश्वर महादेव वार्ड में (बिलासपुर मार्ग पर) स्थित है। मंदिर परिसर लगभग पौने दो एकड़ में विस्तारित है। इस मंदिर के साथ यहाँ प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों का रख-रखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रायपुर मंडल द्वारा किया जाता है। परिसर में पुरातात्विक महत्व के कई खंडित अवशेष भी हैं, जिन्हें सुव्यवस्थित रूप से रखा गया है। परिसर को एक सुंदर उद्यान के रूप में विकसित किया गया है। संपूर्ण परिसर को लोहे का जालीदार घेरा लगाकर सुरक्षित किया गया है। परिसर की देखभाल के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से एक पूर्णकालिक कर्मचारी तैनात है, जबकि तीन मज़दूर ठेके पर रखे गए हैं।

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परिसर के भीतर (प्रवेश द्वार के पास) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सूचना फलक पर ‘भीम-कीचक’ मंदिर के बारे में दी गई जानकारी के अनुसार—
“यह भव्य मंदिर अवशेष स्थानीय तौर पर देऊर के नाम से प्रचलित है। मंदिर की भित्ति के ऊपर का भाग खंडित है। पश्चिमाभिमुखी इस मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग प्रमाणित करता है कि मंदिर भगवान शिव को समर्पित था। मंदिर की द्वार-शाखा पर गंगा और यमुना का सुंदर अंकन है। द्वार-शाखा पर ही अंदर की ओर शिव और उनके गणों को विभिन्न भाव-भंगिमाओं में दर्शाया गया है। मूर्ति-शिल्प के आधार पर यह मंदिर छठवीं-सातवीं शताब्दी का प्रतीत होता है।”

यानी पुरातत्वविद भी इसका निर्माण-काल पक्के तौर पर बताने की स्थिति में नहीं हैं। यही कारण है कि उन्होंने ‘प्रतीत होता है’ लिखा है। हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रदर्शित इस सूचना फलक में इसे शिव मंदिर तो बताया गया है, लेकिन इसका नामकरण ‘भीम-कीचक’ के नाम पर क्यों हुआ, इस संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सूचना फलक में कोई जानकारी नहीं दी गई है। क्या इस नामकरण का महाभारत की कथा में वर्णित भीम द्वारा कीचक वध के प्रसंग से भी कोई संबंध जुड़ता है? इतिहासकार और पुरातत्वविद इस बारे में बेहतर बता पाएंगे।

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(तस्वीरें: मोबाइल से मेरी आँखों देखी)
— स्वराज्य करुण