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कठिन वैश्विक परिस्थितियों में भारत की आर्थिक मजबूती की कहानी

अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक गति के लिए चुनौती थे, लेकिन इन चुनौतियों ने जिस तरह नई नीतियों और रणनीतियों को रास्ता दिखाया, वह भारत की आर्थिक संरचना की मजबूती का संकेत बन गया। अगस्त 2025 में जारी एक्जीक्यूटिव ऑर्डर ने रूसी तेल पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त ड्यूटी लगा दी, जिससे भारत को तुरंत असर झेलना पड़ा। अक्टूबर के संकेतों ने स्थिति और कठिन बना दी, क्योंकि रोसनेफ्ट और लुकोइल जैसी प्रमुख कंपनियों से होने वाले आयात अचानक 50 प्रतिशत तक घट गए। यह ऐसे समय हुआ जब वैश्विक बाजार पहले से दबाव में थे। कीमतें 5 से 7 प्रतिशत तक बढ़ गईं और भारत जैसे देश, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर रहते हैं, को इसका सीधा झटका लगा।

फिर भी, दूसरी ओर तस्वीर उतनी नकारात्मक नहीं थी। भारत ने हाल के वर्षों में ऊर्जा भंडारण को लेकर अपने कदम काफी व्यवस्थित किए थे। सामरिक पेट्रोलियम रिजर्व में 5.33 मिलियन टन कच्चे तेल का भंडार पहले से मौजूद था। इसका फायदा यह हुआ कि अचानक आई वैश्विक अस्थिरता के बावजूद देशी खपत पर कोई बड़ा दबाव नहीं आया। इसके साथ ही रूस से मिलने वाली डिस्काउंटेड खरीद ने ऊर्जा बिल को नियंत्रित रखा। इसका नतीजा यह रहा कि FY26 की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी 8.2 प्रतिशत बढ़ी, जो दुनिया की अनिश्चित परिस्थितियों में एक मजबूत संकेत है।

प्रतिबंधों का पहला प्रभाव यही था कि सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ा। ऊर्जा की लागत उत्पादन के हर चरण को प्रभावित करती है और यह स्थिति किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती है। लेकिन भारत ने इसे एक संकट की तरह नहीं, बल्कि एक अवसर की तरह संभाला। डाइवर्सिफिकेशन इस रणनीति का आधार बना। नवंबर 2025 में अमेरिका के साथ एक महत्वपूर्ण एलएनजी डील हुई, जिसके तहत हर वर्ष 2.2 मिलियन टन गैस मिलने का रास्ता साफ हुआ। इससे भारत के ऊर्जा मिश्रण में स्थिरता आएगी और भविष्य में तेल पर निर्भरता धीरे-धीरे कम होगी।

इसी के साथ भारत ने मध्य पूर्व की ओर रुख और मजबूत किया। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से आयात 25 प्रतिशत तक बढ़ाया गया। अफ्रीका के नाइजीरिया जैसे देशों से नए अनुबंध हुए। इन कदमों ने ऊर्जा स्रोतों को विविध बनाया और यह बताता है कि भारत ऊर्जा सुरक्षा को लेकर अब पहले से ज्यादा परिपक्व रवैया अपना रहा है। रूस से आयात में अक्टूबर में हल्की वृद्धि दिखी, क्योंकि पुराने कॉन्ट्रैक्ट चल रहे थे, लेकिन नवंबर आते-आते यह कमी 30 से 40 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी। यह एक ऐसे संक्रमण का हिस्सा था, जिसमें भारत वैकल्पिक स्रोतों की ओर बढ़ते हुए भी अपनी ऊर्जा जरूरतों को संतुलित रख रहा था।

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अगर व्यापक दृष्टि से देखा जाए तो यह पूरी प्रक्रिया सप्लाई चेन को मजबूत करने का उदाहरण है। केनेसियन दृष्टिकोण कहता है कि ऊर्जा लागत घटती है तो उत्पादन बढ़ता है, निवेश और उपभोग दोनों गति पकड़ते हैं। सस्ते रूसी तेल ने FY25 में भारत के करंट अकाउंट डेफिसिट को सिर्फ 1.2 प्रतिशत पर रोककर अर्थव्यवस्था को स्थिर आधार दिया। प्रतिबंधों के बाद भारत ने रूस के साथ रूपया-रूबल व्यापार व्यवस्था को अपनाया, जिससे भुगतान में डॉलर निर्भरता 15 प्रतिशत तक कम हो गई। यह कदम न सिर्फ कारोबारी सहजता बल्कि दीर्घकालिक वित्तीय स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा सकता है।

भारत ने यह समझ लिया था कि ऊर्जा संकट की स्थिति को केवल आयात बदलकर हल नहीं किया जा सकता। घरेलू उत्पादन और वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर देना भी उतना ही जरूरी है। रिफाइनिंग क्षमता को 250 मिलियन टन तक बढ़ाने का लक्ष्य इसी सोच का हिस्सा था। निजी क्षेत्र और सार्वजनिक उपक्रम दोनों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण निवेश किया। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए PM Surya Ghar योजना ने बड़ी भूमिका निभाई। इस योजना के तहत 10 गीगावॉट नई क्षमता जुड़ी, जिससे भारत के ऊर्जा मिश्रण में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ी और तेल आयात में 5 प्रतिशत की कमी का अनुमान सामने आया। इथेनॉल मिश्रण 20 प्रतिशत तक पहुंच गया, जिससे ईंधन बिल में लगभग 2 बिलियन डॉलर की बचत हुई। यह नीतियां भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता के भविष्य की नींव बना रही हैं।

इन सभी कदमों का असर सीधे जीडीपी पर दिखा। IMF के अनुसार, ऊर्जा दक्षता में सुधार 0.5 से 1 प्रतिशत तक अतिरिक्त विकास दर दे सकता है। भारत की यह लचीलापन बताता है कि संकटकाल में भी कैसे नीतियां, तकनीक और विविधीकरण मिलकर वृद्धि के रास्ते तैयार कर सकते हैं। हालांकि जोखिम अभी भी खत्म नहीं हुए हैं। यदि वैश्विक तेल कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहीं तो घरेलू मुद्रास्फीति 5.5 प्रतिशत तक पहुंच सकती है, जो ग्रोथ में 0.3 प्रतिशत की गिरावट ला सकती है। यह संकेत देता है कि ऊर्जात्मक मजबूती और आर्थिक सुरक्षा को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए प्रयास लगातार जारी रखने होंगे।

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इन चुनौतियों और अवसरों के बीच भारत के प्रमुख सेक्टरों ने अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया दी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने नई ऊर्जा पकड़ते हुए 9.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। लंबे समय से धीमी गति से चल रहा यह सेक्टर अब PLI स्कीम और मेक इन इंडिया की मदद से नए निवेश और उत्पादन का केंद्र बन रहा है। 14 सेक्टरों में आकर्षित 1.97 लाख करोड़ रुपये का निवेश रफ्तार दे रहा है। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल निर्माण और दवाइयों का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। सस्ते तेल ने उत्पादन लागत को लगभग 10 प्रतिशत तक घटाया, जिससे उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ी। यह स्थिति भारत के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि यह गति बनी रहती है तो मैन्युफैक्चरिंग आने वाले वर्षों में जीडीपी में 25 प्रतिशत तक योगदान दे सकता है। यह रोजगार और निर्यात दोनों को मजबूत करेगा।

दूसरी तरफ सर्विसेज सेक्टर ने भी मजबूत प्रदर्शन किया। डिजिटल प्लेटफॉर्म, फिनटेक और आईटी सेवाओं ने इस वृद्धि में योगदान दिया। Q2 में इस क्षेत्र की वृद्धि 9.2 प्रतिशत रही। UPI जैसे प्लेटफॉर्म ने लेन-देन को तेजी और पारदर्शिता दी। ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स की बढ़ती संख्या ने न सिर्फ वैश्विक संस्थानों का भरोसा जीता बल्कि देश में 1.5 लाख से अधिक नौकरियां भी पैदा कीं। ऊर्जा स्थिरता ने इस क्षेत्र की लागत को नियंत्रित रखा, जिससे भारत की सेवाओं की वैश्विक डिलीवरी क्षमता मजबूत बनी रही। हालांकि आउटसोर्सिंग बाजार में वैश्विक मंदी की आशंका एक खतरा है, फिर भी सर्विसेज सेक्टर ने अपने खुद के नवाचारों और डिजिटल क्षमताओं की बदौलत स्थिरता बनाए रखी है।

इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण की बात करें तो सरकारी निवेश ने इसकी गति बढ़ाई है। बजट 2025-26 में दिए गए 11.11 लाख करोड़ रुपये के कैपेक्स आवंटन ने सड़क, रेल, मेट्रो और हवाई अड्डों के विस्तार को नई रफ्तार दी। NIP के तहत चल रहे प्रोजेक्ट्स भविष्य में विकास का आधार बनेंगे। यह क्षेत्र आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाता है, क्योंकि हर एक रुपये के निवेश से ढाई से तीन रुपये तक की आर्थिक गतिविधि पैदा होती है। भूमि अधिग्रहण और समय पर क्रियान्वयन की चुनौती अभी भी है, लेकिन गति स्पष्ट रूप से सकारात्मक दिखती है।

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कृषि और ग्रामीण भारत ने अर्थव्यवस्था को स्थिर आधार दिया। कृषि की वृद्धि 3.5 प्रतिशत रही, लेकिन ग्रामीण मांग में 12 प्रतिशत की वृद्धि ने उपभोग को नए स्तर पर पहुंचाया। अच्छे मानसून, MSP बढ़ोतरी और ईंधन की कम लागत ने किसानों की आय बढ़ाई। ग्रामीण उपभोग शहरी बाजारों को संतुलन देता है और यह ऐसे समय में और भी महत्वपूर्ण है जब वैश्विक मांग अस्थिर है। एग्री-टेक के बढ़ते उपयोग से उत्पादकता बढ़ सकती है और भारत की खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी। जलवायु परिवर्तन की चुनौती बनी हुई है, लेकिन तकनीक और बेहतर नीतियों के साथ इस खतरे का समाधान संभव है।

सरकारी नीतियों का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। GST दरों में सुधार ने उपभोग बढ़ाया। वित्तीय अनुशासन से फिस्कल डेफिसिट 4.9 प्रतिशत पर रखा जा सका। RBI की नीतियां मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में सफल रहीं। प्रतिबंधों के बाद ऊर्जा सुरक्षा नीति में हुए संशोधन ने डाइवर्सिफिकेशन को और बढ़ावा दिया। आत्मनिर्भर भारत जैसे कार्यक्रमों ने उत्पादन और नवाचार को नई दिशा दी।

वैश्विक संदर्भ में भारत ने अपनी स्थिति मजबूत की है। G20 में इसकी भूमिका, मुक्त व्यापार समझौते और नए वैश्विक साझेदारी अवसर खोल रहे हैं। IMF ने FY26 के लिए 6.8 प्रतिशत की स्थिर विकास दर का अनुमान जताया है। यह बताता है कि चुनौतियों के बावजूद भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूत खिलाड़ी बना हुआ है।

अमेरिकी प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि में FY26 Q2 की 8.2 प्रतिशत जीडीपी ग्रोथ ने भारत के आर्थिक लचीलेपन को नई पहचान दी है। ऊर्जा डाइवर्सिफिकेशन, तकनीक, नीतिगत सुधार और आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाए गए कदमों ने न सिर्फ अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखा, बल्कि इसे नए रास्तों पर भी आगे बढ़ाया। भविष्य की राह समावेशी विकास, स्थिरता और नवाचार पर निर्भर होगी। भारत ने चुनौतियों का सामना न सिर्फ दृढ़ता से किया बल्कि उन्हें परिवर्तन का अवसर बना दिया। यही भविष्य की आर्थिक ताकत का आधार है।

-न्यूज एक्सप्रेस डेस्क