बिहार में NDA की प्रचंड जीत के पीछे क्या थी असली वजह? विपक्ष का आरोप—नीतीश कुमार की ‘महिला रोजगार योजना’ बनी गेम-चेंजर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA को मिली भारी जीत के बाद विपक्ष ने इस सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) को दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले महिलाओं के खातों में भेजी गई आर्थिक सहायता ने पूरे परिदृश्य को बदल दिया।
चुनाव की तारीखों की घोषणा से कुछ ही दिन पहले राज्य सरकार ने 1 करोड़ से अधिक महिलाओं के खातों में ₹10,000 की पहली किस्त ट्रांसफर की थी। कुल मिलाकर ₹14,000 करोड़ की राशि वितरित की गई। विपक्ष का आरोप है कि इस “बड़े पैमाने की नकद सहायता” से सीधे महिला वोटरों का रुझान बदला और इसका लाभ NDA को मिला।
NDA की बड़ी जीत और बढ़ता विरोधी असंतोष
2025 के नतीजों में भाजपा ने 89 सीटें, जबकि जदयू ने 85 सीटें जीतीं। दूसरी ओर महागठबंधन की हालत बेहद कमजोर रही और INDIA गठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया।
वरिष्ठ नेता शरद पवार ने भी कहा कि बिहार में यह योजना NDA के पक्ष में “अनुकूल प्रभाव” पैदा करने में सफल रही, ठीक वैसे ही जैसे महाराष्ट्र में कुछ वर्षों पहले देखने को मिला था।
चुनाव आयोग के आंकड़ों ने भी विपक्ष की नाराजगी को हवा दी है—महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.78% रहा, जो पुरुषों के 62.98% से काफी अधिक है। इसे नीतीश कुमार की “महिला हितैषी छवि” के केंद्र में माना जा रहा है।
योजना कब बनी और कैसे लागू हुई?
बिहार कैबिनेट ने 29 अगस्त को MMRY को मंजूरी दी। इसका उद्देश्य छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देकर महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना बताया गया। योजना में अधिकतम ₹2.1 लाख तक की सहायता चरणबद्ध तरीके से उपलब्ध कराई जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 सितंबर को कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ किया और 6 अक्टूबर को चुनाव की तिथियां घोषित हो गईं। विपक्ष का कहना है कि योजना की पहली किस्त इसी दिन जारी करना संदिग्ध था।
महागठबंधन के नेता मुकेश सहनी ने कहा, “गरीब परिवारों की महिलाएं स्वाभाविक रूप से यह मानकर चलीं कि यह पैसा उनकी जिंदगी बदल देगा—और उन्होंने उसी उम्मीद के आधार पर वोट दिया।”
आचार संहिता क्या कहती है?
चुनाव आचार संहिता के मुताबिक चुनाव घोषणा होते ही सरकार किसी नई आर्थिक घोषणा, लाभ वितरण या ऐसे खर्च को आगे नहीं बढ़ा सकती जो मतदाताओं को प्रभावित करे।
विपक्ष का आरोप है कि 6 अक्टूबर के बाद भी किस्तों का भुगतान जारी रहा, जो नियमों का सीधा उल्लंघन है।
EC ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया?
चुनाव आयोग की तरफ से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। अनौपचारिक रूप से अधिकारियों का कहना है कि जिन योजनाओं को चुनाव से पहले मंजूरी और अधिसूचना मिल चुकी हो, उन्हें रोका नहीं जाता—जब तक कि कोई नया लाभ जोड़ने की कोशिश न की जाए।
लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत का आरोप है कि “EC ने सब कुछ होते हुए देखा, लेकिन कार्रवाई नहीं की।”
उन्होंने कहा, “जब मोहल्लों में महिलाओं को पैसे दिए जा रहे थे, तब आयोग मूकदर्शक क्यों बना रहा?”
पहले भी कई बार रोक चुका है आयोग
यह पहली बार नहीं कि चुनाव आयोग ऐसी योजनाओं को रोक सकता था।
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2024 में आंध्र प्रदेश में आयोग ने मतदान से कुछ दिन पहले ₹14,165 करोड़ के DBT ट्रांसफर को रोक दिया था।
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तमिलनाडु में भी आयोग दो बार चल रही योजनाओं—खेतिहर सहायता और मुफ्त टीवी वितरण—पर रोक लगा चुका है।
लेकिन बिहार में इस बार कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया, और यही विपक्ष के सवालों का केंद्र है।

