नाई का ऐतिहासिक मकबरा कहाँ है और क्यों महत्वपूर्ण है जानिए

जब मैं घूमते फ़िरते हुमाहूं के मकबरे में पहुंचा तो उसके सामने एक कोने मे एक मकबरा और दिखा। जब जानकारी प्राप्त की तो एक नई कहानी से रुबरु हुआ, यह कहानी दिल्ली के राजपथ में नहीं मिलती, बल्कि उन शांत कोनों में रहती है जहाँ समय तेजी से नहीं चलता, जहाँ कोई लेटा कयामत का इतंजार कर रहा है। हुमायूँ के मकबरे के विशाल परिसर के भीतर, पेड़ों की परछाइयों और लाल पत्थरों की चमक के बीच एक छोटा लेकिन आकर्षक स्मारक खड़ा है। इसे लोग नाई का मकबरा कहते हैं। नाम सुनकर पहली बार कोई भी आश्चर्य कर सकता है, लेकिन इसकी मौजूदगी सिर्फ एक नाई की याद नहीं, बल्कि इतिहास की उस परत की तरफ संकेत करती है जहाँ सम्राटों के जीवन से जुड़े साधारण लोग भी सम्मान के हकदार थे।
दिल्ली को अक्सर इमारतों का शहर कहा जाता है। यहाँ हर मोड़ पर आपको किसी पुरानी तहज़ीब की सांसें सुनाई दे सकती हैं। लेकिन यही शहर कुछ रत्नों को बहुत चुपचाप छिपाकर रखता है, जैसे वह उन्हें सिर्फ खोजने वालों के लिए सुरक्षित रखता हो। नाई का मकबरा ऐसा ही एक रत्न है, जो हुमायूँ के मकबरे की भव्यता से ढका हुआ, फिर भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। यह मकबरा सिर्फ एक संरचना नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संकेत है कि इतिहास सिर्फ राजाओं और विजेताओं का नहीं होता, वह उन लोगों का भी होता है जिनकी भूमिकाएँ अक्सर दफन हो जाती हैं।
हुमायूँ के मकबरे के आसपास का क्षेत्र दिल्ली के सबसे खूबसूरत इलाकों में से एक है। बहिश्त के चार बाग, फव्वारे, सजे हुए रास्ते और पेड़ों की कतारें इसे लगभग किसी फ़ारसी कहानी सा रूप देती हैं। इसी शांत माहौल के दक्षिण-पूर्वी कोने में नाई का मकबरा अपनी जगह बनाए हुए है। इसे खोजने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती, लेकिन इसे महसूस करने में थोड़ा समय जरूर लगता है। पास में बहती यमुना की वजह से यहाँ की हवा ठंडी रहती है, और सुबह की रोशनी इस छोटे से गुम्बद को बिल्कुल नए रंग में दिखाती है।
निजामुद्दीन पूर्व मेट्रो स्टेशन से यह जगह सिर्फ कुछ मिनट की दूरी पर है। एक बार आप हुमायूँ के मकबरे में कदम रखते हैं, तो पूरा परिसर आपके सामने खुल जाता है। भीड़ धीरे-धीरे इधर-उधर फैल जाती है, और जब आप दक्षिण-पूर्व दिशा में बढ़ते हैं, तो एक छोटा चबूतरा नज़र आता है, जिसके ऊपर यह मकबरा खड़ा है। इसकी ऊँचाई और गुम्बद की बनावट, दोनों ही देखते ही समझ में आ जाते हैं कि भले यह छोटा है, लेकिन इसमें वही नज़ाकत है जो भारतीय वास्तुकला की पहचान है।
इतिहासकार इस मकबरे की तारीख 1590-91 ईस्वी पर तो सहमत हैं, लेकिन इसमें कौन दफन है, इस बात पर आज तक कुछ मतभेद हैं। भीतर मौजूद एक कब्र पर हिजरी वर्ष 999 खुदा हुआ है, जो अकबर के शासनकाल से मेल खाता है। लोककथाएँ कहती हैं कि यह हुमायूँ के शाही नाई का मकबरा है। दरबार में नाई की भूमिका मामूली नहीं होती थी; वह राजा के इतने करीब होता था कि बहुत से रहस्य उसी तक सीमित रहते थे। उसे इतना सम्मान देना यह दिखाता है कि शासन में केवल पदानुक्रम का सिस्टम नहीं था, बल्कि उनमें एक भावनात्मक जुड़ाव भी था।
लेकिन हर बात का दूसरा पहलू भी होता है। कुछ इतिहासकार इसे कोका यानी दूध भाई का मकबरा बताते हैं। इसका उल्लेख अंग्रेज़ों के समय बने कुछ दस्तावेजों में मिलता है। कोका शब्द फ़ारसी में दूध भाई के लिए इस्तेमाल होता है। यह सम्भव है कि कभी किसी गलतफ़हमी ने इस मकबरे को गलत पहचान दे दी हो। लेकिन आज भी, सैकड़ों किताबें शोध और लोक इसे नाई का मकबरा ही मानती हैं।
मकबरे की बनावट इसकी सबसे खास बात है। यह वर्गाकार आधार पर बना है और ऊपर दोहरा गुम्बद चढ़ा है। बाहरी गुम्बद ऊँचा और गोल है, जबकि अंदर वाला छोटा है, ताकि कमरे का अनुपात संतुलित रहे। यह तत्कालीन वास्तुकला की एक खूबसूरत उदाहरण है। इससे भवन बाहर से भव्य दिखता था और भीतर आने वाले को एक शांत माहौल मिलता था। इसे बनाने में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है, जो हुमायूँ के मकबरे से मेल खाता है। अंदर दो कब्रें हैं। एक पर तारीख खुदी है और दूसरी पर कुरान की कुछ आयतें। यह सादगी इसे और सुंदर बना देती है।
हुमायूँ के मकबरे का परिसर भारत के सबसे बड़े मकबरा समूहों में से एक है। यहाँ 150 से अधिक कब्रें हैं। कुछ बहुत प्रसिद्ध, कुछ लगभग अनाम। लेकिन हर एक कब्र, चाहे कैसी भी हो, उस दौर की समाज व्यवस्था को अपने तरीके से समझाती है। नाई का मकबरा इस दृष्टि से बिल्कुल अनोखा है, क्योंकि यह सत्ता और सामान्य जीवन के बीच की दूरी को मिटाता है। यहाँ से एक दिलचस्प विचार निकलता है कि तत्कालीन दरबार में हर इंसान की भूमिका मायने रखती थी।
अगर आप थोड़ी दूरी चलें, तो कई अन्य संरचनाएँ भी नज़र आती हैं। नीला गुम्बद अपनी नीली टाइलों की चमक से बाकी इमारतों से अलग दिखता है। आइसा खान का मकबरा अपनी अफगानी शैली के कारण खास है। बुढ्ढा का गुम्बद शांत और अनाम है, लेकिन उस समय के जीवन की झलक दिखाता है। इनके बीच नाई का मकबरा छोटा है, लेकिन भावनात्मक और ऐतिहासिक रूप से उतना ही महत्वपूर्ण।
आज की तारीख में यह जगह सिर्फ पुरातात्विक महत्व की नहीं है। यह दिल्ली के लोगों के लिए एक शांत स्थल है। जो लोग इतिहास से जुड़ना चाहते हैं, वे यहाँ आकर आराम से बैठ सकते हैं। पेड़ों की छाया, हल्की हवा, और मकबरे की शांत बनावट इसे ध्यान या फोटोग्राफी के लिए भी आदर्श बनाती है। एएसआई इस परिसर की देखभाल करता है, और इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल हुए तीन दशक से अधिक हो चुके हैं।
लेकिन हर पुरानी चीज़ की तरह, इसे भी खतरे हैं। बढ़ती आबादी, निर्माण, प्रदूषण, और दिल्ली की तेज़ होती लय इन स्मारकों को चुनौती देती है। उन्हें बचाने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं, लेकिन लोगों की जागरूकता भी उतनी ही जरूरी है। नाई का मकबरा इसे याद कराता है कि इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं बसता, वह इन संरचनाओं में धड़कता है।
अगर आप दिल्ली घूमने आते हैं, तो हुमायूँ के मकबरे को ज़रूर देखें, लेकिन उसके साथ इस छोटे से मकबरे तक भी कुछ कदम बढ़ाएं। यहाँ खड़े होकर जब आप आसमान को देखते हैं, तो महसूस होता है कि इतिहास कितनी कहानियों से भरा हुआ है। कुछ बहुत बड़ी और कुछ छोटी, लेकिन हर एक कहानी जरूरी है। नाई का मकबरा इसी बात का प्रमाण है। यह साधारण नहीं, बल्कि असाधारण साधारणता का स्मारक है। एक ऐसी जगह, जहाँ एक नाई की याद आज भी हवा में तैरती है, और यह बताती है कि इतिहास में हर किसी का अपना महत्व होता है।

