सुप्रीम कोर्ट में बिहार और अन्य राज्यों के विशेष मतदाता सूची संशोधन (SIR) पर सुनवाई
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में बिहार में विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई चल रही है। साथ ही, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में SIR के विस्तार को लेकर दायर नई याचिकाओं पर भी अदालत विचार कर रही है।
तमिलनाडु में इस प्रक्रिया को DMK पार्टी ने चुनौती दी है, जबकि पश्चिम बंगाल में इसे कांग्रेस के राज्य इकाई ने असंवैधानिक बताया है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की बेंच कर रही है।
बिहार के मामले में याचिकाकर्ताओं ने उठाए मुख्य मुद्दे:
याचिकाकर्ता का कहना है कि SIR प्रक्रिया के तहत वोटरों को बिना पर्याप्त सुरक्षा उपायों के सूची से हटाया जा सकता है, जिससे लाखों नागरिकों का मताधिकार प्रभावित हो सकता है और चुनाव की निष्पक्षता खतरे में पड़ सकती है।
वहीं, चुनाव आयोग (ECI) का कहना है कि SIR उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और यह प्रक्रिया आवश्यक है ताकि केवल योग्य नागरिकों को ही मतदाता सूची में शामिल किया जाए।
जानकारी के अनुसार, बिहार के ड्राफ्ट मतदाता सूची में 1 अगस्त को 65 लाख नाम हटाए जाने की सूचना दी गई थी। 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि हटाए जाने वाले 65 लाख नामों की सूची ऑनलाइन अपलोड की जाए।
इसके बाद 22 अगस्त को कोर्ट ने यह आदेश दिया कि जो लोग ड्राफ्ट मतदाता सूची से बाहर रह गए हैं, वे आधार कार्ड के जरिए भी मतदाता सूची में खुद को शामिल कर सकते हैं। इससे पहले आयोग केवल 11 अन्य पहचान दस्तावेजों को ही स्वीकार करता था।
SIR प्रक्रिया 30 सितंबर को पूरी हुई। 24 जून को बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाता थे, जिसमें 7.42 करोड़ मतदाताओं को सूची में बनाए रखा गया। हटाए गए नामों की संख्या 65 लाख से घटकर 47 लाख रह गई।
सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची से हटाए गए या जोड़े गए नामों पर कोई सार्वजनिक आदेश नहीं दिया। इसके बजाय प्रभावित व्यक्ति राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के पास अपील कर सकते हैं।
16 अक्टूबर की सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि आयोग को SIR पूरी होने के बाद मतदाता डेटा प्रकाशित करने की जिम्मेदारी पता है। वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, जो ECI का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने अदालत को बताया कि डेटा प्रकाशित करने के लिए किसी विशेष निर्देश की आवश्यकता नहीं है।

