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अमेरिका पर बढ़ता संकट, भारत में स्वदेशी उत्पादों का प्रभुत्व और टैरिफ के बावजूद स्थिर आर्थिक प्रगति

प्रहलाद सबनानी

अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर 50 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाया गया है। ट्रम्प ने वैसे तो लगभग सभी देशों से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों पर अलग-अलग दर से टैरिफ लगाया है, परंतु भारत द्वारा विशेष रूप से रूस से सस्ते दामों पर कच्चे तेल की खरीद के चलते भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भी लगाया हुआ है।

विभिन्न देशों से अमेरिका को होने वाले उत्पादों के निर्यात पर टैरिफ को लगाए हुए अब कुछ समय व्यतीत हो चुका है और अब इसका असर विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है। यह हर्ष का विषय है कि 27 अगस्त 2025 से लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर लगभग नगण्य सा ही रहा है।

माह सितम्बर 2025 में भारत से अमेरिका को विभिन्न उत्पादों का निर्यात लगभग 12 प्रतिशत कम होकर केवल 550 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर नीचे आ गया है। परंतु भारत का अन्य देशों को निर्यात लगभग 11 प्रतिशत से बढ़कर 3,638 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में किए गए निर्यात से लगभग 7 प्रतिशत अधिक है। सितम्बर 2025 माह में भारत से 24 देशों को निर्यात की मात्रा बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत द्वारा अमेरिका को कम हो रहे निर्यात की भरपाई अन्य देशों को निर्यात बढ़ाकर कर ली गई है।

सितम्बर 2025 माह में न केवल निर्यात में पर्याप्त वृद्धि दर्ज की गई है, अपितु भारत में अक्टूबर 2025 माह में प्रारम्भ हुए त्यौहारी मौसम, धनतेरस एवं दीपावली उत्सव के पावन पर्व पर 6,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के विभिन्न उत्पादों एवं सेवाओं की बिक्री भारत में हुई है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

हर्ष का विषय यह है कि इस कुल बिक्री में 87 प्रतिशत उत्पाद भारत में ही निर्मित उत्पाद रहे हैं। भारत में स्वदेशी उत्पादों की बिक्री का रिकॉर्ड कायम हुआ है। भारत में स्वदेशी उत्पादों को अपनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से लगातार प्रयास कर रहा है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारतीय नागरिकों से स्वदेशी उत्पादों को अपनाने का हाल ही में आह्वान किया था। इस आग्रह का अब भारी संख्या में भारतीय नागरिक सकारात्मक उत्तर दे रहे हैं।

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भारत में लगातार बढ़ रहे उपभोक्ता खर्च के चलते वस्तु एवं सेवा कर (GST) के संग्रहण में भी निरंतर वृद्धि दृष्टिगोचर है, जो अब लगभग 2 लाख करोड़ प्रति माह के स्तर पर पहुंच गया है।

भारतीय पूंजी बाजार भी सकारात्मक परिणाम देता हुआ दिखाई दे रहा है। सितम्बर 2025 के अंत में सेंसेक्स 80,267 के स्तर पर था, जो 21 अक्टूबर 2025 को बढ़कर 84,426 के स्तर पर पहुंच गया। इसी प्रकार, निफ्टी इंडेक्स भी सितम्बर 2025 के अंत में 24,611 के स्तर से बढ़कर 21 अक्टूबर 2025 को 25,868 के स्तर पर पहुंच गया।

दीपावली के पावन पर्व पर रिकॉर्ड तोड़ व्यापार होने एवं पूंजी बाजार के अपने पिछले 52 सप्ताह के लगभग उच्चतम स्तर पर पहुंचने के पीछे मुख्य रूप से तीन कारक जिम्मेदार माने जा रहे हैं —
(1) भारतीय उपभोक्ताओं में भारतीय उत्पादों के प्रति विश्वास निर्मित हुआ है और वे अब भारत में निर्मित उत्पादों को चीन अथवा अन्य विकसित देशों में निर्मित उत्पादों की तुलना में गुणवत्ता के मामले में बेहतर मानने लगे हैं।
(2) विभिन्न भारतीय कंपनियों द्वारा सितम्बर 2025 को समाप्त तिमाही के घोषित परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं।
(3) साथ ही, अक्टूबर 2025 माह में विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारतीय पूंजी बाजार में वापसी हुई है।

वर्ष 2025 में सितम्बर 2025 माह तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार से लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि की निकासी की थी, जबकि अक्टूबर 2025 माह में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा अब तक लगभग 7,300 करोड़ रुपए का नया निवेश किया गया है।

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ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के पश्चात भी भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है, जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर लगातार संकट के बादल मंडराते हुए दिखाई दे रहे हैं।

भारत में मुद्रास्फीति की दर लगातार नीचे आ रही है और यह सितम्बर 2025 माह में 1.54 प्रतिशत तक नीचे आ चुकी है, जो पिछले 8 वर्षों के दौरान अपने सबसे निचले स्तर पर है। जबकि ट्रम्प प्रशासन द्वारा विभिन्न देशों से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर लगाए गए टैरिफ के चलते अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर अब बढ़ती हुई दिखाई दे रही है और अगस्त 2025 माह में यह 2.9 प्रतिशत के स्तर पर रही है।

ट्रम्प प्रशासन ने अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रण में लाने एवं सरकारी ऋण को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर टैरिफ की घोषणा की थी, परंतु भारी मात्रा में टैरिफ बढ़ाने के बावजूद अमेरिका का वित्तीय घाटा कम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है।

आज अमेरिका में वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया है, जबकि भारत में यह प्रतिवर्ष लगातार कम हो रहा है और वित्तीय वर्ष 2025-26 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.4 प्रतिशत के स्तर पर नीचे पहुंच जाने की सम्भावना है। यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में 4.8 प्रतिशत का रहा था।

इसी प्रकार, अमेरिका में सरकारी ऋण 37 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, जो लगातार बढ़ता जा रहा है और यह अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद का 120 प्रतिशत है। अर्थात, अमेरिका में आय की तुलना में अधिक मात्रा में व्यय किए जा रहे हैं। आज अमेरिका में सरकारी ऋण पर ब्याज अदा करने के लिए भी ऋण लिया जा रहा है।

दूसरी ओर, भारत में सरकारी ऋण की मात्रा केवल 3.80 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर है और यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 80 प्रतिशत है, जो लगातार कम हो रहा है। अमेरिका में सकल बचत की दर 22 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 32 प्रतिशत है।

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भारत में सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2024-25 में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है, जबकि अमेरिका में यह वर्ष 2024 में केवल 2.8 प्रतिशत की रही है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत से अमेरिका को विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के बावजूद वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर विश्व बैंक द्वारा अनुमानित है।

वहीं, अमेरिका द्वारा विभिन्न देशों के अमेरिका को निर्यात पर टैरिफ लगाए जाने के बावजूद अमेरिका में वर्ष 2025 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर के नीचे गिरकर 1.6 प्रतिशत रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

स्पष्टतः अमेरिका द्वारा टैरिफ लागू करने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर तो कोई विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर ही विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ प्रतीत हो रहा है। साथ ही, अमेरिका में बेरोजगारी की दर में भी वृद्धि दृष्टिगोचर है, जो अब बढ़कर 4.3 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है, जबकि भारत में यह दर घटकर 5.1 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गई है।

अमेरिका में बैंकों से लिए गए ऋण एवं क्रेडिट कार्ड पर ली गई उधारी की किश्तों के भुगतान में चूक की संख्या में वृद्धि दृष्टिगोचर है। इसके चलते हाल ही में 3 वित्तीय संस्थानों को दिवालिया घोषित किया जा चुका है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्वर्ण की कीमत में अपार वृद्धि (लगभग 4,300 अमेरिकी डॉलर प्रति आउंस के स्तर पर) दर्शाती है कि विभिन्न देशों का अब अमेरिकी डॉलर पर विश्वास कम हो रहा है और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा के भंडार में स्वर्ण की मात्रा को लगातार बढ़ा रहे हैं।

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।