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भाई दूज की अनकही कहानी : यम-यमुना से आज तक

आचार्य ललित मुनि

दीपावली की रोशनी जब धीरे-धीरे मंद पड़ने लगती है, घरों में त्योहार की हलचल थोड़ा थम जाती है और दीपों की लौ में एक शांत उजियारा रह जाता है, तब आता है भाई दूज। यह त्योहार केवल कैलेंडर की एक तिथि नहीं, बल्कि एक गहरी भावना है,  प्रेम, सुरक्षा और विश्वास की। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाने वाला यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद आता है और पांच दिवसीय दीपोत्सव को पूर्णता प्रदान करता है। यह वही क्षण है जब बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसकी लंबी आयु, सुख और समृद्धि की कामना करती है।

भाई दूज हिंदू संस्कृति के सबसे संवेदनशील और आत्मीय पर्वों में से एक है। जहां रक्षा बंधन में बहन अपने भाई से सुरक्षा का वचन लेती है, वहीं भाई दूज में वह स्वयं उसे आशीर्वाद देती है। यह उलट क्रम इस त्योहार को विशेष बनाता है — क्योंकि इसमें सुरक्षा की भावना नहीं, बल्कि आशीर्वाद की उदारता प्रमुख होती है।

ऐतिहासिक और पौराणिक आधार

भाई दूज का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में “यम द्वितीया” के नाम से मिलता है। यह दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना के स्नेह की याद दिलाता है। पद्मपुराण और भविष्य महापुराण के अनुसार, यमराज वर्षों तक अपने दायित्वों में इतने व्यस्त रहे कि यमुना से मिलने नहीं जा सके। एक दिन, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई को आमंत्रित किया। उन्होंने विशेष भोजन बनाया, दाल, भात, पूरी, कढ़ी, हलवा और लड्डू। यमराज जब आए, तो यमुना ने उनके चरण धोए, तिलक लगाया और आदरपूर्वक भोजन कराया।

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यमराज भावविभोर हो गए और वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा, “भैया, जो बहन इस दिन अपने भाई का ऐसा सत्कार करे, उसके भाई को यम का भय न हो।” यमराज ने तथास्तु कहा। उसी क्षण कहा जाता है कि यमलोक में पापी जीवों को मुक्ति मिली, और तीनों लोकों में हर्ष छा गया। तभी से यह दिन “यम द्वितीया” या “भाई दूज” कहलाने लगा।

यह कथा हमें बताती है कि भाई दूज का तिलक केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन की रक्षा और स्नेह का प्रतीक है। स्कंदपुराण में यह भी वर्णित है कि यमुना स्नान और तिलक करने से भाई और बहन दोनों दीर्घायु होते हैं।

लोककथाओं में भाई दूज

भारत की लोक परंपराओं में भाई दूज की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उत्तर भारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक वृद्धा माई के सात बेटे थे। छह बेटों की शादी के समय नाग आकर उन्हें डस लेता और वे मर जाते। सातवें बेटे की शादी के समय उसकी बहन ने विशेष व्रत रखा, तिलक लगाया और प्रार्थना की। जब नाग आया, तो बहन के स्नेह और तिलक की शक्ति से वह निष्क्रिय हो गया। भाई की जान बच गई। तब से माना गया कि बहन का तिलक भाई के जीवन की रक्षा करता है। यह कथा राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लोकगीतों में आज भी सुनाई जाती है।

भविष्य पुराण में भी उल्लेख मिलता है कि यमराज ने यमुना से वचन दिया कि जो लोग इस दिन अपनी बहन के घर जाकर भोजन करेंगे और मथुरा के विश्राम घाट पर स्नान करेंगे, उन्हें यम का भय नहीं रहेगा। यह कथा इस पर्व को धार्मिक व्रत का रूप देती है, जिसमें बहनें निर्जल व्रत रखकर भाई को भोजन कराती हैं और उसके दीर्घ जीवन की कामना करती हैं।

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विविधता में एकता का प्रतीक

भाई दूज भारत की सांस्कृतिक विविधता का भी उत्सव है। उत्तर भारत में इसे “भाई दूज” कहा जाता है, बंगाल में “भाई फूटा”, महाराष्ट्र और गोवा में “भाऊ बीज”, और नेपाल में “भाई तिहार”। हर जगह इसकी रस्में थोड़ी भिन्न हैं, पर भावना एक ही , भाई-बहन का स्नेह।

बंगाल में बहनें अपने भाई के माथे पर चंदन का तिलक लगाती हैं और पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। महाराष्ट्र में बहनें भाई के लिए व्रत रखती हैं और भोजन कराती हैं। नेपाल में यह पर्व तीन दिनों तक चलता है, जहां बहनें भाई की पूजा करती हैं और दीये जलाती हैं।

कायस्थ समाज में यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसे चित्रगुप्त जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। चित्रगुप्त, जो यमराज के लेखाकार माने जाते हैं, उनकी पूजा इस दिन होती है। व्यापारी वर्ग इस अवसर पर अपनी बहीखातों की पूजा करते हैं, यह मानते हुए कि यह दिन वर्षभर की समृद्धि की नींव रखेगा।

सामाजिक और आध्यात्मिक अर्थ

भाई दूज केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक संरचना को मजबूत करने का माध्यम भी रहा है। प्राचीन समय में जब संयुक्त परिवार प्रचलित थे, यह त्योहार बहनों को विवाह के बाद भी मायके से जुड़े रहने का अवसर देता था। भाई के घर जाकर बहनें प्रेमपूर्वक भोजन कराती थीं और परिवार के रिश्तों को सुदृढ़ करती थीं। आज जब जीवन की रफ्तार ने परिवारों को भौगोलिक रूप से अलग कर दिया है, भाई दूज एक भावनात्मक पुल का काम करता है। यह हमें सिखाता है कि दूरी चाहे कितनी भी हो, स्नेह कभी फीका नहीं पड़ता।

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ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ दिन

ज्योतिष के अनुसार, भाई दूज के दिन विशेष योग बनते हैं, सौभाग्य योग, शोभन योग और लक्ष्मी-नारायण योग। ये योग दीर्घायु, समृद्धि और परिवार में सुख-शांति लाने वाले माने जाते हैं। भाई दूज के दिन बहनें सुबह स्नान कर पूजा की तैयारी करती हैं। घर में चौक बनाया जाता है, जिस पर तांबे या पीतल की थाली में पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, फूल और मिठाई रखी जाती है। बहन अपने भाई का तिलक करती है, आरती उतारती है और भोजन कराती है।
इस दिन का मंत्र अत्यंत भावपूर्ण है —
“यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को।
जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।”

यह मंत्र न केवल धार्मिक भाव रखता है, बल्कि बहन के मन की गहराई को भी व्यक्त करता है।

आधुनिक जीवन में भाई दूज का महत्व

आधुनिक युग में जब तकनीक ने रिश्तों को डिजिटल बना दिया है, भाई दूज हमें रिश्तों की आत्मा से जोड़ता है। वीडियो कॉल या ऑनलाइन उपहारों के बावजूद, इस पर्व का भाव वही है, अपने प्रिय को स्नेह जताना। बहन का तिलक आज भी भाई के माथे पर नहीं, बल्कि उसके हृदय पर लगता है। और भाई का उपहार केवल वस्तु नहीं, बल्कि सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक होता है।