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भारत-बाली सांस्कृतिक संगम: देनपासार में ‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘मेरी मुनिया’ का सफल अंतरराष्ट्रीय मंचन

देनपासार (बाली, इंडोनेशिया), अक्टूबर 2025 — ग्लोबल संस्कृत फोरम, सुग्रीव राज्य हिंदू विश्वविद्यालय (I.G.B. Sugriwa State Hindu University, Denpasar, Bali), Collage Society तथा ययासन धर्म स्थापना आश्रम (Yayasan Dharma Sthapna Ashram, Denpasar, Bali) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भव्य सांस्कृतिक समारोह में भारत की नाट्य परंपरा और बाली की सांस्कृतिक विरासत का अनोखा संगम देखने को मिला। इस अवसर पर दो प्रभावशाली नाटकों — ‘विक्रमोर्वशीयम्’ और ‘मेरी मुनिया’ का अंतरराष्ट्रीय मंचन किया गया, जिसने भारत से बाहर भारतीय रंगकला की गरिमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

मेरी मुनिया’ नाटक का लेखन एवं संगीत सुप्रसिद्ध नाटककार श्री अनिमेष खरे दास द्वारा किया गया, जबकि इसकी डिज़ाइन और निर्देशन की जिम्मेदारी डॉ. विधु खरे दास ने संभाली। डॉ. विधु खरे दास, जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) की प्रसिद्ध रंगकर्मी हैं, पिछले तीन दशकों से नाट्यकला के क्षेत्र में सक्रिय हैं। नाटक में मुख्य भूमिका श्री प्रवीन कुमार पांडेय ने निभाई, जिन्होंने अपने सशक्त और संवेदनशील अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया।

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दोनों नाटकों में सहायक निर्देशक के रूप में डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (JNU) का योगदान विशेष रूप से सराहा गया। उन्होंने प्रस्तुति को भाषिक सौंदर्य, कलात्मक गहराई और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध बनाया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल (पूर्व कुलपति, वर्धा, महाराष्ट्र), प्रो. मुरली पाठक (कुलपति, LBS), डाॅ. तिवारी (IAS, भारत सरकार) और डाॅ. राजेश मिश्र (महासचिव, ग्लोबल संस्कृत फोरम) उपस्थित रहे। समारोह की अध्यक्षता डाॅ. आचार्य (ययासन धर्म स्थापना आश्रम, देनपासार, बाली) ने की।

महाकवि कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक ‘विक्रमोर्वशीयम्’ की प्रस्तुति ने भारतीय नाट्यशास्त्र की शास्त्रीय गरिमा को पुनर्जीवित किया, वहीं ‘मेरी मुनिया’ ने आधुनिक जीवन, मानवीय रिश्तों और सामाजिक जटिलताओं को भावनात्मक संवेदना और यथार्थ के साथ मंच पर उतारा। दोनों प्रस्तुतियों ने भारत और इंडोनेशिया की सांस्कृतिक आत्माओं को जोड़ने का कार्य किया।

कार्यक्रम के समापन पर प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कलाकारों को सम्मानित करते हुए कहा —

“भारत और बाली की साझा सांस्कृतिक विरासत मानवता को जोड़ने का अद्भुत सूत्र है। ऐसे नाट्य मंचन दोनों देशों की आत्मा को एक-दूसरे से जोड़ते हैं।”

समारोह में भारत, इंडोनेशिया और अन्य देशों से आए दर्शकों व अतिथियों ने प्रस्तुतियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भावनात्मक क्षण तब आया जब पूरे सभागार ने खड़े होकर कलाकारों का अभिवादन किया और भारतीय संस्कृति की गूंज बाली की धरती पर प्रतिध्वनित हुई।

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