दर्शन कौर धनोय : जब भी मन करे घूमने का तो निकल पड़े.
घुमक्कड़ जंक्शन पर आज आपकी मुलाकात मुंबई निवासी महिला घुमक्कड़ दर्शन कौर धनोय से करवाते हैं। घुमक्कड़ी इनका जुनून है एवं महीने में एक घुमक्कड़ी कर ही लेती हैं, जो कि महिला घुमक्कड़ होने का परिचायक है। हमने एक भेंट के दौरान हमने इनसे चर्चा की, चलिए जानते हैं ललित शर्मा के साथ दर्शन कौर धनोय के जीवन के अनछुए पहलुओं के बारे में ……
![](https://newsexpres.com/wp-content/uploads/2017/08/darshan-kaur-13.jpg)
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
★मेरा जन्म 1957 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ।उ स समय पिताजी पुलिस डिपार्टमेंट में थे। बिटिया होने की खुशी इतनी थी कि अपने थाने पर तीन राउण्ड फायरिंग करवाई। बचपन ऐशोआराम में गुजरा। इंदौर के फेमस जेलरोड एरिये में रहती थी, जहाँ स्वर सम्राधिनी लता मंगेशकर का जन्म हुआ था । वही हमारी पीढियां रहती आई है। हमारे 4 नानाजी पंजाब से इंदौर, इंदौर महाराज के दहेज में आये थे।और यही बस गए मेरे नानाजी भी इंदौर महाराजा के पहलवान हुआ करते थे जब भी कोई स्पर्धा जीतकर आते तो महाराजा उनको जमीन दे देते थे और यही सम्पत्ति जेलरोड पर मकानों की शक्ल में काफी थी।
परिवार में चार भाइयो कि एकलौती बहन थी। स्वाहिशें निकलने से पहले ही पूरी हो जाती थी। माँ के रहते कभी दुख का मुंह नही देखा।
माँ 1970 में स्वर्गलोक सिधार गई । हम बच्चों को पिताजी ने सीने से लगाकर रखा पर माँ का कोना खाली ही रहा। माँ के असमय जाने से पिताजी की तरफ से बहुत आज़ादी मिली । हम इंदौर से मनासा आ गये जहां उनका ट्रांसफर हुआ था। नया घर ,नया माहौल, यहां खेलने की लालसा जागी तो हॉकी की कैप्टन बन गई और उन्ही दिनों स्कूल की ट्रिप से राजस्थान घूमने को मिला ।
पहली बार घर से दूर सहेलियों के साथ रात ओर दिन अपनी मर्जी से घूमना फिरना मन को इतना भाया की हर साल पिकनिक फिक्स रहती ।उधर नेशनल लेबल पर हॉकी खेलने के कारण दूसरे शहर भी जाना होता था । कई जगह शील्ड जीतकर आते तो कई जगह हार कर आते। ट्रेकिंग भी की क्योकि NCC केडेड थी तो ट्रेकिंग भी करती थी। जिंदगी यू ही गुजरती रही। घुमक्कड़ी करना मेरे जीवन का उद्दयेश्य है मैं अपने आपको तरोताजा महसूस करती हूं । पहाड़ मेरी कमजोरी है।
![](https://newsexpres.com/wp-content/uploads/2017/08/darshan-kaur-7.jpg)
2 – वर्तमान में आप क्या करते हो और परिवार में कौन कौन है?
★हॉउस वाईफ हूं ।घर सम्भालती हूँ। परिवार का सहयोग हमेशा रहता है। दो बेटियां ओर एक बेटे का परिवार है, मिस्टर रेल्वे से रिटायर्ड हो गए हैं । सभी घूमने के शौकीन है पर बड़ी बेटी ज्यादा शौकीन है ।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
★घूमने की रुचि मुझे मेरी माँ से विरासत में मिली उनको बहुत शौक था घूमने का ,उस टाईम भी माँ अमृतसर, पटना, कश्मीर, दिल्ली, नांदेड, उत्तराखण्ड वगैरा घूम चुकी थी जब महिलाओ को घर से बाहर निकलने की परमिशन नही मिलती थी। घुमक्कड़ी मुझे विरासत में ही मिली। जब 6th में थी तो स्कूल की ट्रिप से पहली बार जयपुर, अजमेर,उदयपुर ,जोधपुर घूमने का मौका मिला और इतनी खुशी हुई कि ठान ली कि अब जब भी मौका मिलेगा तो घूमना है।
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1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
★मेरा जन्म 1957 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ।उ स समय पिताजी पुलिस डिपार्टमेंट में थे। बिटिया होने की खुशी इतनी थी कि अपने थाने पर तीन राउण्ड फायरिंग करवाई। बचपन ऐशोआराम में गुजरा। इंदौर के फेमस जेलरोड एरिये में रहती थी, जहाँ स्वर सम्राधिनी लता मंगेशकर का जन्म हुआ था । वही हमारी पीढियां रहती आई है। हमारे 4 नानाजी पंजाब से इंदौर, इंदौर महाराज के दहेज में आये थे।और यही बस गए मेरे नानाजी भी इंदौर महाराजा के पहलवान हुआ करते थे जब भी कोई स्पर्धा जीतकर आते तो महाराजा उनको जमीन दे देते थे और यही सम्पत्ति जेलरोड पर मकानों की शक्ल में काफी थी।
परिवार में चार भाइयो कि एकलौती बहन थी। स्वाहिशें निकलने से पहले ही पूरी हो जाती थी। माँ के रहते कभी दुख का मुंह नही देखा।
माँ 1970 में स्वर्गलोक सिधार गई । हम बच्चों को पिताजी ने सीने से लगाकर रखा पर माँ का कोना खाली ही रहा। माँ के असमय जाने से पिताजी की तरफ से बहुत आज़ादी मिली । हम इंदौर से मनासा आ गये जहां उनका ट्रांसफर हुआ था। नया घर ,नया माहौल, यहां खेलने की लालसा जागी तो हॉकी की कैप्टन बन गई और उन्ही दिनों स्कूल की ट्रिप से राजस्थान घूमने को मिला ।
पहली बार घर से दूर सहेलियों के साथ रात ओर दिन अपनी मर्जी से घूमना फिरना मन को इतना भाया की हर साल पिकनिक फिक्स रहती ।उधर नेशनल लेबल पर हॉकी खेलने के कारण दूसरे शहर भी जाना होता था । कई जगह शील्ड जीतकर आते तो कई जगह हार कर आते। ट्रेकिंग भी की क्योकि NCC केडेड थी तो ट्रेकिंग भी करती थी। जिंदगी यू ही गुजरती रही। घुमक्कड़ी करना मेरे जीवन का उद्दयेश्य है मैं अपने आपको तरोताजा महसूस करती हूं । पहाड़ मेरी कमजोरी है।
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2 – वर्तमान में आप क्या करते हो और परिवार में कौन कौन है?
★हॉउस वाईफ हूं ।घर सम्भालती हूँ। परिवार का सहयोग हमेशा रहता है। दो बेटियां ओर एक बेटे का परिवार है, मिस्टर रेल्वे से रिटायर्ड हो गए हैं । सभी घूमने के शौकीन है पर बड़ी बेटी ज्यादा शौकीन है ।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?
★घूमने की रुचि मुझे मेरी माँ से विरासत में मिली उनको बहुत शौक था घूमने का ,उस टाईम भी माँ अमृतसर, पटना, कश्मीर, दिल्ली, नांदेड, उत्तराखण्ड वगैरा घूम चुकी थी जब महिलाओ को घर से बाहर निकलने की परमिशन नही मिलती थी। घुमक्कड़ी मुझे विरासत में ही मिली। जब 6th में थी तो स्कूल की ट्रिप से पहली बार जयपुर, अजमेर,उदयपुर ,जोधपुर घूमने का मौका मिला और इतनी खुशी हुई कि ठान ली कि अब जब भी मौका मिलेगा तो घूमना है।
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4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं?
★पहाड़ मेरी कमजोरी है ।मुझे पहाड़ी राज्य ही ज्यादा पसन्द है । ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,बर्फ से ढ़के पहाड़, हरियाली से सराबोर पहाड़। इसलिए 5 बार वैष्णो देवी के पहाड़ पर चढ़कर गई । पहाड़ पर चढ़ने का जुनून था। हिमालय से ऊंचा उड़ान भरने का हौसला था मन आज भी चाहता है कि अमरनाथ की यात्रा करू, मानसरोवर जाऊ, गंगोत्री यमुनोत्री जाउ, स्वर्ग रोहिडी जाऊ, पर अब शरीर साथ नही दे रहा है। फिर भी आखरी इच्छा है की लेह लद्धाख की यात्रा करुँ।
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5-उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
★ पहली बार जब हेमकुंड साहब घूमने गईं तो थोड़ा डर लगा ओर रोना भी आया ।मेरे ख्याल से वो मेरे जीवन की अब तक कि गई सबसे खतरनाक घुमक्कड़ी थी।जब इतनी ऊपर जाकर मुझे सांस लेने में तकलीफ होने लगी तो दिल मे विचार आया कि अब इतनी खतरनाक जगह नही जाउंगी ।पर वो यात्रा बहुत रोमांचकारी थी।उ स यात्रा में मेरी सहेली ने बहुत सहयोग दिया।जब यात्रा पूरी हो गई तो मलाल रहा कि डर के मारे इन्जॉय न कर सकी।
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6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते है?
★जब बच्चे छोटे थे तो सारा परिवार साथ ही होता था तो कभी कोई परेशानी नही हुई । लेकिन जब अकेले कही जाती थी तो घर मे बाई को लगाकर जाती थी जिससे किसी को खाने की कोई परेशानी न हो। और बच्चे भी बड़े हो गए थे बेटी भी खाना बना लेती थी लेकिन बच्चों के एग्जाम्स के टाईम् मैं कही नही जाती थी।
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7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताईए?
★मुझे फिल्मे देखना बहुत पसंद है। खाना बनाकर खिलाना पसन्द है । दोस्ती करना पसंद है । खेल पसन्द था स्कूल कॉलेज में, कई टूर्नामेंट में खेली हूं । फिर लिखने का शौक़ है कविताएँ लिखती हूँ और एक ब्लॉग भी है जिस पर अपनी यात्रा लिखती हूँ।
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8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?
★ मेरे ख्याल से घर से बाहर निकलने से मन प्रसन्न होता है। रोज की भागदौड़ से मुक्ति मिलती है। जीवन को फिर से शुरू करने का उत्साह मिलता है। नई उमंग नई तरंग मिलती है। स्ट्रॉन्ग फील होता है।घर से दूर रहने से जुम्मेदारी का अहसास होता है अन्य काम करने में फिर से जोश उत्पन्न होता है।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
★मेरी सबसे रोमांचक यात्रा शिमला की थी क्योंकि उसी समय मैंने पहली बार बर्फ के पहाड़ देखे थे । लम्बे लम्बे देवदार के पेड़ देखे थे और कालका से शिमला तक का खिलौना ट्रेन का सफर मुझे आज भी आनन्द विभोर कर देता है। वो यात्रा मेरे जीवन की सबसे यादगार यात्रा है । कई राज्यो में घूमी हूँ पर नैनीताल, आबू, शिमला, डलहौजी, हेमकुंड साहब, बद्रीधाम, पालनपुर, अमृतसर, नांदेड़ जगन्नाथपुरी, कौसानी, मणिकर्ण,ओंकारेश्वर , उज्जैन जयपुर ,जवालामाता उलेखनीय है।
10 – पुराने घुमक्कड़ का नए घुमक्कड़ों के लिए क्या संदेश है?
★नये घुमक्कडों को मेरा यही संदेश है कि अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही पहाड़ों को लांघना चाहिए। पहाड़ो को आसान एवं मजाक में न ले, उन्हें स्वच्छ रखे, नशा वगैरह से दूर रहे और अपनी धुन के पक्के रहे। जब भी मन करे घूमने का तो निकल पड़े। जोख़िम न ले, लेकिन साहसिक यात्रा करे।
बढ़िया भेंट,
शानदार ! बेमिसाल !! जिंदाबाद !!!
ललित सर का शुक्रिया जिनके द्वारा धुमक्कड़ों का हौसला अफजाई होता है और होता रहेगा।” घुमक्कड़ी दिल से मिलेंगे फिर से “
बहुत ही अच्छा लेख
Very appreciable interview. A female can be inspired from the other. Really very good interview.
मज़ा आ गया बुआ आपको फिर से जानकार
घुमक्कड़ी दिल से
मिलेंगे फिर से
ललित सर को बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे कार्य के लिए, बुआ जी बहुत मन प्रसन्न हो गया आपके बारे में इतनी बातें जानकार आपने एक बात जो कही कि “मेरे ख्याल से घर से बाहर निकलने से मन प्रसन्न होता है। रोज की भागदौड़ से मुक्ति मिलती है”, ये बात बिल्कुल सही है बुआ जी, घुमक्क्ड़ी इंसान को बदल देती है।
धन्य हैं बुआ आप ! बेचारे पिठ्ठू पर लद लीं ! पर चलो जो हुआ सो हुआ ! आपके बारे में जानकर गर्व हुआ कि हमारी बूढ़ी बुआ कभी हॉकी की कप्तान थी, एन.सी.सी. की कैडिट थी। ललित जी का आभार बुआ के बाल्यकाल और जवानी से परिचय कराने के लिये जिससे हम सब उनके बच्चे अनजान थे!
बहुत खूब !
बुआ जी के बारे जानकर बहुत अच्छा लगा । धन्यवाद ललित sir
बहुत बढ़िया बुआ, आपकी इस उम्र में भी घूमेने में इतनी सक्रियता देखकर हमे भी ऊर्जा मिलती है। बधाई हो।???
बुआ जी, महिला घुमक्कड़ों के लिए ही नही बल्कि पुरुष घुमक्कड़ों के लिए भी प्रेरणा है । ओरछा के लिए बुआ इस उम्र में तकलीफ के बावजूद बिना टिकट के दो अनजान (उस समय) लोगो के साथ , परिवार से लड़-झगड़ कर आई , तब सही मैं दर्शन बुआ का मुरीद हो गया । ईश्वर आपकी सेहत ठीक रखे और आप आखिरी दम तक घुमक्कड़ी करती रहे । आदरणीय ललित जी का हार्दिक आभार
बहुत बढिया बुआ जी
बुआ जी नमस्कार । आप के बारे में ओर जानकर बडी प्रसन्नता हुई।
बुआ जी के जीवन के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा। ललित जी का आभार घुमक्कड़ जंक्सन में घुमक्कड़ों से परिचय करने के लिए।
सबका तहेदिल से शुक्रिया । आप सब से मैं हूँ ,इसी तरह प्यार ओर सम्मान बनाये रखे।