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आधुनिक काल में गुरु की प्रासंगिकता और चुनौतियाँ : शिक्षक दिवस

श्रीमती संध्या शर्मा

भारत में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यह दिन महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को समर्पित है। डॉ. राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षण केवल एक पेशा नहीं, बल्कि जीवन का पवित्र और सम्मानजनक कार्य है।

उन्होंने अपने जन्मदिन को शिक्षकों के सम्मान में मनाने का सुझाव दिया और तभी से यह दिन हमारे समाज में गुरु की भूमिका और महत्व को रेखांकित करने का अवसर बन गया। बदलते समय के साथ यह दिन और भी प्रासंगिक होता जा रहा है, क्योंकि शिक्षा का स्वरूप अब तेजी से बदल रहा है।

शिक्षक केवल ज्ञान के वाहक नहीं होते, वे समाज के आधार स्तंभ और भविष्य के निर्माता होते हैं। वे विद्यार्थियों को न केवल शैक्षणिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि उनके नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राचीन भारत की गुरु-शिष्य परंपरा इसका प्रमाण है, जहाँ गुरु को केवल पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि जीवन के आदर्श मूल्यों का संवाहक माना जाता था।

आज भले ही शिक्षा का ढांचा बदल गया हो, परंतु शिक्षकों का महत्व कहीं से भी कम नहीं हुआ है। वे विद्यार्थियों को वैश्विक नागरिक बनने, तकनीकी प्रगति को अपनाने और सामाजिक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं। शिक्षक दिवस हमें यह अवसर देता है कि हम शिक्षकों के त्याग, समर्पण और समाज निर्माण में उनके योगदान को याद करें और यह आत्मचिंतन करें कि हम उन्हें कितना सम्मान और समर्थन प्रदान कर पा रहे हैं।

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वर्तमान समय में शिक्षा का परिदृश्य डिजिटल क्रांति और वैश्वीकरण से प्रभावित होकर नया रूप ले चुका है। शिक्षक अब केवल कक्षा में पाठ पढ़ाने वाले नहीं रहे, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञ, परामर्शदाता, नवाचारक और प्रेरक की भूमिका निभा रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया ठहर गई थी, तब शिक्षकों ने ऑनलाइन शिक्षा को अपनाकर विद्यार्थियों की शिक्षा को निरंतर बनाए रखा। यही नहीं, आज उन्हें समावेशी और समग्र शिक्षा की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है, जहाँ विभिन्न पृष्ठभूमि और विशेष आवश्यकताओं वाले विद्यार्थियों तक शिक्षा पहुँचाना उनकी प्राथमिकता है।

इस दौर में केवल किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं रह गया, बल्कि आलोचनात्मक चिंतन, समस्या-समाधान, रचनात्मकता और डिजिटल साक्षरता जैसे कौशलों को विकसित करना भी शिक्षक की ही जिम्मेदारी बन गई है। इतना ही नहीं, विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संतुलन के लिए भी शिक्षक परामर्शदाता की तरह मार्गदर्शन कर रहे हैं।

हालाँकि, जितनी बड़ी उनकी भूमिका है, उतनी ही बड़ी चुनौतियाँ भी उनके सामने हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों को संसाधनों की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। इंटरनेट, डिजिटल उपकरण और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता उनके प्रयासों में बाधा डालती है। नई शिक्षण पद्धतियों और तकनीकी साधनों के लिए नियमित प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, परंतु बहुत से शिक्षकों को यह सुविधा समय पर नहीं मिल पाती।

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शिक्षक-छात्र अनुपात भी असंतुलित है, जिसके कारण एक शिक्षक को कई कक्षाओं और बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को संभालना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, आर्थिक दृष्टि से भी कई शिक्षक कठिनाई झेलते हैं। निजी और ग्रामीण स्कूलों में उन्हें कम वेतन और असुरक्षित नौकरी की स्थिति का सामना करना पड़ता है। समाज और अभिभावकों की अपेक्षाएँ भी बढ़ती जा रही हैं, जो शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव डालती हैं।

इन्हीं परिस्थितियों के बीच शिक्षक दिवस हमें शिक्षकों के महत्व की याद दिलाता है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम अपने शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें और साथ ही यह भी विचार करें कि उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए हमें क्या करना चाहिए। शिक्षा प्रणाली में सुधार, शिक्षकों को बेहतर प्रशिक्षण और संसाधन, उचित वेतन और सम्मान, कार्यस्थल पर समर्थन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए परामर्श, ये सब कदम समय की आवश्यकता हैं। शिक्षक दिवस का सच्चा अर्थ तभी पूरा होगा, जब हम केवल औपचारिक सम्मान तक सीमित न रहकर, शिक्षकों को सशक्त बनाने के लिए ठोस प्रयास करें।

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भविष्य की दिशा भी यही है कि हम शिक्षकों को निरंतर प्रशिक्षण और विकास के अवसर दें, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्कूलों को डिजिटल संसाधनों से सुसज्जित करें, शिक्षक-छात्र अनुपात में सुधार करें और उन्हें वह सम्मान और सुरक्षा प्रदान करें जिसके वे वास्तव में अधिकारी हैं। एक मजबूत शिक्षा प्रणाली तभी संभव है जब शिक्षक सशक्त होंगे, क्योंकि वही समाज के निर्माता और राष्ट्र की नींव हैं।

शिक्षक दिवस का सच्चा संदेश यही है कि शिक्षक केवल ज्ञान के संवाहक नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाले पथप्रदर्शक और परिवर्तन के प्रेरक हैं। डिजिटल युग और वैश्वीकरण के इस दौर में जब सब कुछ तेजी से बदल रहा है, तब शिक्षक ही हैं जो आने वाली पीढ़ियों को संतुलन, विवेक और मूल्य दे सकते हैं। आइए, इस शिक्षक दिवस पर हम यह संकल्प लें कि हम न केवल अपने शिक्षकों का सम्मान करेंगे, बल्कि उनके प्रयासों को सशक्त बनाने में भी योगदान देंगे। क्योंकि सशक्त शिक्षक ही सशक्त राष्ट्र की गारंटी हैं।

-नागपुर निवासी लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार हैं।