विपक्ष का केंद्र पर हमला: नए विधेयकों को बताया लोकतंत्र और संघीय ढांचे पर सीधा प्रहार
नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में पेश किए गए तीन नए विधेयकों को लेकर देश की राजनीति में जबरदस्त हलचल मच गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुधवार को पेश किए गए इन विधेयकों में से एक संविधान संशोधन विधेयक भी है, जो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों जैसे शीर्ष कार्यपालिका पदाधिकारियों को भ्रष्टाचार या गंभीर अपराध के आरोप में 30 दिनों से अधिक जेल में रहने पर पद से हटाने का कानूनी प्रावधान करता है।
इस कदम को लेकर INDIA गठबंधन के नेताओं ने तीखा विरोध दर्ज कराया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि ये विधेयक देश की संघीय व्यवस्था, न्याय प्रणाली और लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला हैं। नेताओं का कहना है कि केंद्र सरकार इस माध्यम से विपक्ष-शासित राज्यों को कमजोर करने और जांच एजेंसियों के माध्यम से चुनी हुई सरकारों को गिराने की योजना बना रही है।
“लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है”: ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख ममता बनर्जी ने इसे “सुपर इमरजेंसी” की ओर बढ़ता कदम बताया और आरोप लगाया कि यह विधेयक न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खत्म करने और अदालतों की शक्तियों को छीनने की कोशिश है। उन्होंने कहा, “यह भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को हमेशा के लिए समाप्त करने की साजिश है।”
“तानाशाही की ओर देश को ले जा रही केंद्र सरकार”: एम. के. स्टालिन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक प्रमुख एम. के. स्टालिन ने विधेयकों को “लोकतंत्र की जड़ों पर हमला” बताया। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार देश को एक प्रधानमंत्री-केन्द्रित तानाशाही में बदलना चाहती है।
“कानून का दुरुपयोग होगा”: प्रियंका गांधी
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने इन विधेयकों को “तानाशाहीपूर्ण” करार दिया और कहा कि अब किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्री को बिना सजा के, सिर्फ गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाया जा सकेगा। “यह जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। यह भ्रष्टाचार विरोधी कदम नहीं, बल्कि सत्ता का दुरुपयोग है,” उन्होंने कहा।
विपक्ष के अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयकों को संविधान के “पावर सेपरेशन” सिद्धांत के खिलाफ बताया और आरोप लगाया कि केंद्र सरकार भारत को “पुलिस स्टेट” में बदलना चाहती है। उन्होंने सवाल उठाया, “अगर मुख्यमंत्री को जांच एजेंसी गिरफ्तार कर सकती है, तो प्रधानमंत्री को कौन गिरफ्तार करेगा?”
राजद सांसद सुधाकर सिंह ने आरोप लगाया कि यह विधेयक भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश की राह पर ले जाएगा, जहां विपक्षी नेता या तो जेल में हैं या देश से बाहर।
सीपीआई(एम) के पोलित ब्यूरो ने कहा कि यह सरकार न्यायिक निगरानी से बचने के लिए व्यापक कानून लाकर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर रही है। वहीं, सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा कि यह कदम विपक्षी सरकारों को गिराने का हथियार बनेगा।
सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह विधेयक संघीय ढांचे और संसदीय लोकतंत्र का अंतिम प्रहार है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक ईडी, सीबीआई, आईटी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश है।
सीपीआई ने कहा कि बिना अदालत की सजा के केवल गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाना संविधान में निर्दिष्ट “निर्दोष होने की मान्यता” के सिद्धांत का उल्लंघन है।

