स्मृतिशेष: लोकतंत्र सेनानी (मीसाबंदी) सुभाष आहूजा

पूर्व सांसद, लोकतंत्र सेनानी (मीसाबंदी) सुभाषचंद्र जी आहूजा नहीं रहे! कल उनका दुखद निधन हुआ।
उनके प्रति ये आदरांजलि उनका भांजा, उनका परिजन होने के नाते और एक स्वयंसेवक दोनों के नाते व्यक्त कर रहा हूँ।
वो आपातकाल के दिन हुआ करते थे। हमारा परिवार आमला में संघ, जनसंघ के आने-जाने वाले प्रचारकों व पदाधिकारियों का एक सुनिश्चित भोजन, मिलन, बैठक का स्थान हुआ करता था। आपातकाल में कांग्रेस और शासनतंत्र में हमारें परिवार को इन पंक्तियों के साथ ही चिह्नित किया जाता था कि, इनका घर तो आमला में संघियों का अड्डा है। आपातकाल में मामाजी, अर्थात् सुभाष भैया को जेल में बंद किया जाना हमारे परिवार पर और अधिक भारी पड़ा। संघ प्रचारकों के आने जाने के ठप्पे के बाद मामाजी के मीसाबंदी होने से हमारा परिवार कांग्रेस और कांग्रेस रिमोटेड जिला प्रशासन के सीधे रडार पर आ गया! इसके बड़े दुष्परिणाम मेरे पिताजी को और समूचे परिवार को झेलने पड़े थे। हमारे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर छापे पड़े! केस दर्ज हुए, अनावश्यक धाराएँ लादी गई!! आर्थिक हानियाँ पहुंचाई गई!!! सामाजिक स्तर पर हमारे परिवार में हमारे बुजुर्गों को परिहास, व्यंग्य ही नहीं अपितु घोर उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ता था।
मेरी स्मृतियों में है मेरा वह बाल्यकाल जब हम मामाजी से मिलने और कभी कभार भोजन देने हेतु या कभी वार-त्यौहार पर भेंट करने हेतु बैतूल स्थित जेल में जाया करते थे। मुझे आज भी भली-भाँति याद है उनका चेहरा! कभी किसी प्रकार का तनाव, क्लांति, दुख उनके चेहरे पर तब भी नहीं हुआ करता था!! जिंदादिल थे वे!!! और सम्पूर्ण जीवन उन्होंने जिंदादिली से ही जिया!!!!
क्षमा माँगकर, संघ परिवार छोड़ने की घोषणा करके, जेल से छूट जाने के प्रस्ताव दसियों बार दिए गए थे उन्हें; किंतु, उन्होंने कभी ऐसा करना स्वीकार नहीं किया। वे अपनी विचारधारा से किसी भी मूल्य पर समझौता करना नहीं चाहते थे, किया भी नहीं! आपातकाल की समाप्ति तक वे जेल में ही रहे। आपातकाल की समाप्ति तक ही; उन पर, उनके परिजनों यानि हम पर तमाम प्रकार के अत्याचार, उपेक्षा, आर्थिक हानि, प्रशसनिक छापे आदि का क्रम चलता रहा किंतु उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया।
सुभाष मामाजी, भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। सबसे कम आयु के सांसद होने का कीर्तिमान दीर्घसमय तक उनके नाम पर रहा। सबसे कम आयु का सांसद होने के कारण वे आदरणीय अटल जी के प्रियतम सांसद रहे।
सांसद रहते हुए उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। सांसद रहते हुए तब उनका परिवार आर्थिक रूप से दुर्बल जैसा ही था। बहुत बड़ी आर्थिक स्थिति नहीं थी उनकी, किंतु बैतूल जिले में उनकी आर्थिक शुचिता के किस्से बहुधा ही सुनने में आते रहते थे। अपने सिद्धांतों के लिए परिवार की आर्थिक स्थिति को कमजोर होने देना तो पसंद किया उन्होंने किंतु कभी आर्थिक अनियमितता न होने दी। स्वाभिमानी इतने कि किसी से मदद भी नहीं लेते थे, रिश्वत तो बड़ी दूर की बात थी उनके लिए।
समूचा बैतूल उन्हें सुभाष भैया, नेताजी के नाम से पुकारता था। वे सचमुच नेता थे। जितना सरल, विशाल व सहज उनका हृदय था ठीक वैसा ही उनका आचरण था। सभी से बड़े ही उदारहृदय मिलते थे वे। राजनीति में थे किंतु अजातशत्रु थे!
आज जब वे हमारे मध्य नहीं हैं तब आभास होता है कि हमने एक बड़े राजनैतिक सूर्य को खो दिया है…
डॉ. प्रवीण दाताराम गुगनानी, 9425193070