भारत के वीर क्रांतिकारी और लंदन में अंग्रेज अधिकारियों के प्रतिशोधी नायक मदनलाल ढींगरा

स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए क्रांतिकारियों ने केवल भारत की धरती पर ही अंग्रेज अधिकारियों को मौत की नींद नहीं सुलाई, बल्कि लंदन में भी क्रूर अंग्रेजों के सीने में गोली उतारी। ऐसे ही क्रांतिकारी थे मदनलाल ढींगरा, जिन्होंने लंदन में भारतीयों का अपमान करने वाले अधिकारी वायली के चेहरे पर पाँच गोलियाँ चलाकर उन्हें ढेर कर दिया।
सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब प्रांत के अमृतसर नगर में हुआ। उनका परिवार सम्पन्न और उच्च शिक्षित था। पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और आर्यसमाज से जुड़े हुए थे। स्थानीय अंग्रेज अधिकारी उन्हें विश्वस्त भी मानते थे। माताजी अत्यंत धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों में रची-बसी थीं। वे आर्यसमाज के प्रवचन आयोजनों की नियमित श्रोता थीं।
बचपन से ही मदनलाल ढींगरा को अंग्रेज और भारतीय परंपरा दोनों का परिचय मिला। विद्यालय जाने पर उन्होंने भारतीय विद्यार्थियों के साथ होने वाले अपमानजनक व्यवहार का विरोध किया। इस विषय की शिकायत घर पहुँच गई। पिता ने समझ-बुझकर शिक्षा प्राप्त करने की सलाह दी। इसी मानसिक द्वंद में उन्होंने विद्यालयीन शिक्षा पूरी की और आगे पढ़ाई के लिए लाहौर महाविद्यालय पहुँचे।
महाविद्यालय के वातावरण में वे संतुलन नहीं बना सके और निकाल दिए गए। पिता की प्रतिष्ठा पर चोट न लगने देने के लिए उन्होंने घर छोड़कर जीवन यापन के लिए पहले क्लर्क की नौकरी की, लेकिन वहां भी स्वाभिमान पर आघात अनुभव किया। इसके बाद मुम्बई चले गए, जहाँ तांगा चलाने लगे। साथ ही एक कारखाने में भी काम किया। श्रमिकों के शोषण से उद्वेलित होकर उन्होंने एक श्रमिक संगठन बनाकर प्रबंधकों द्वारा सम्मानजनक व्यवहार की मांग की, लेकिन वे प्रबंधन के लिए अस्वीकार्य बने और नौकरी छोड़नी पड़ी।
कुछ समय बाद परिवार ने उनसे संपर्क किया और समझ-बुझाकर आगे पढ़ाई के लिए उन्हें लंदन भेज दिया। मदनलाल ढींगरा 1906 में इंग्लैंड गए और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की अभियांत्रिकी शाखा में प्रवेश लिया। यह वही समय था जब लंदन में पढ़ने वाले भारतीय विद्यार्थियों में राष्ट्रभाव जागृत हो रहा था।
इन्हीं दिनों वे प्रसिद्ध राष्ट्रवादी विचारक विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए। सावरकर द्वारा गठित संस्था अभिनव भारत से जुड़े। इसी क्रांतिकारी संस्था में उन्होंने शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण लिया। लंदन का इंडिया हाउस भारतीय विद्यार्थियों की क्रियाकलापों का केंद्र था। मदनलाल ढींगरा इसी इंडिया हाउस में रहते थे।
इस समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों जैसे खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिंदर पाल और काशी राम के फांसी पर जाने की घटनाओं ने विद्यार्थियों में रोष उत्पन्न किया। अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय विद्यार्थियों की गतिविधियों को सीमित करने के आदेश जारी किए। इससे सावरकर और मदनलाल ढींगरा और भी उद्वेलित हुए।
प्रतिशोध लेने के लिए अंग्रेज अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली को मारने की योजना बनाई गई। 1 जुलाई 1909 की शाम, वार्षिकोत्सव में वायली अपनी पत्नी के साथ सभागार में आए। मदनलाल ढींगरा ने उनके चेहरे पर पाँच गोलियाँ दागीं। छठी गोली स्वयं पर चलाने का प्रयास किया, लेकिन पकड़ लिए गए। उन्हें जेल भेजा गया और मुकदमा चला। पेशी के दौरान उन्होंने कहा:
“मुझे प्रसन्नता है कि मेरा जीवन भारत राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा के लिए समर्पित हो रहा है।”
मुकदमा केवल बाइस दिन में पूरा हुआ। 23 जुलाई 1909 को लंदन की बेली कोर्ट ने उन्हें मृत्युदंड का आदेश दिया। 17 अगस्त 1909 को पेंटविले जेल में उन्हें फाँसी दी गई। इस प्रकार मदनलाल ढींगरा ने भारत राष्ट्र के स्वत्व जागरण के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया।
शत-शत नमन उनके बलिदान को।