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न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर मानसून सत्र में चर्चा की संभावना

सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई आंतरिक जांच में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद उन्हें दोषी ठहराया गया है। इस मामले को लेकर लोकसभा के मानसून सत्र की शुरुआत के साथ ही उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा की जा सकती है। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हो रहा है।

न्यायमूर्ति वर्मा वर्तमान में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यरत हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की जांच रिपोर्ट को चुनौती दी है। हालांकि, केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने साफ किया है कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के किसी भी न्यायाधीश को पद से हटाने का अधिकार संसद के पास है और यह पूरी तरह से एक स्वतंत्र प्रक्रिया है।

रिजिजू ने विभिन्न दलों के नेताओं से इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए बातचीत शुरू कर दी है। उनका कहना है, “उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार के आरोप को लेकर महाभियोग राजनीतिक विषय नहीं हो सकता। इस तरह के मामले में सभी दलों को एकजुट होकर फैसला लेना चाहिए।”

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सूत्रों के अनुसार, सरकार चाहती है कि महाभियोग की पूरी प्रक्रिया मानसून सत्र के दौरान ही पूरी कर ली जाए। संसद में प्रस्ताव पेश होने के बाद, लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति उसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या एक न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति— जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागु, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थीं —ने न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी पाया है।

अब इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाएगा, और यदि संसद में प्रस्ताव पारित होता है, तो न्यायमूर्ति वर्मा को उनके पद से हटाया जा सकता है।

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सरकार का जोर है कि इस संवैधानिक प्रक्रिया को दलगत राजनीति से दूर रखते हुए निष्पक्षता से पूरा किया जाए।