सबकी ख़ुशहाली के लिए ‘मेरे दिल की बात’
(स्वराज्य करुण के वर्ष 2011 में प्रकाशित कविता संग्रह पर डॉ. परदेशी राम वर्मा का आलेख)

‘मेरे दिल की बात’ छत्तीसगढ़ के सुपरिचित कवि स्वराज्य करुण का नया काव्य-संग्रह है। इस संग्रह में उन्होंने अपनी 62 कविताओं को संकलित किया है। भिन्न-भिन्न रंग की रचनाओं के माध्यम से अपने दिल की बात कहने का उन्होंने सुंदर प्रयत्न किया है।
स्वराज्य करुण यूँ तो गद्य लेखक के रूप में भी विशेष पहचान रखते हैं, किन्तु मूलतः वे कवि हैं। विगत चालीस वर्षों से वे कविताएँ लिख रहे हैं। उन्होंने बच्चों के लिए भी खूब लिखा है। गीत विधा और ग़ज़ल पर भी उनका भरपूर अधिकार है। वे सरलता के आग्रही हैं। गीतों और ग़ज़लों में भी उनका यह आग्रह देखते ही बनता है:
“ये अपनी धरती
धान का सागर है,
दूर-दूर तक फैले
प्रेम के आखर हैं।”
यह एक बहुत प्रभावी प्रयोग है। छत्तीसगढ़ को “धान का कटोरा” कहा जाता है। इस मुहावरे पर मुग्ध माटी-पुत्र स्वराज्य करुण ने कविता के माध्यम से कितना विराट आकार देने का यत्न किया है! कटोरे को उन्होंने “धान का सागर” कहा और धान के भरे-भरे खेतों को ‘प्रेम के आखर’ कहा। छत्तीसगढ़ प्रेम, समता, अहिंसा और मेल-मिलाप की धरती है। यह धान उपजाने वाला “धान का सागर” है। धान के खेत इसीलिए ‘प्रेम के आखर’ के रूप में कविता में आए हैं।
स्वराज्य करुण का जन्म गरियाबंद में हुआ। छत्तीसगढ़ का यह हरा-भरा क्षेत्र बेहद सुंदर है। इस क्षेत्र की सुंदरता का असर कवि पर होना स्वाभाविक है। उन्होंने अपने जन्मस्थल के सौंदर्य को सदैव रेखांकित किया है:
“नीला पर्वत, निर्मल नदियाँ और यह तालाब,
लगता जैसे दिन में भी कोई सुंदर ख़्वाब।
सौ-सौ जनम इस धरती पर रहे सदा आबाद,
एक अनोखा सुख देती है हमको इसकी याद।”
इस संकलन में अधिकांश कविताएँ प्रकृति की सुंदरता पर हैं। लेकिन हमारे दौर की विसंगतियों पर भी संग्रह में प्रभावी रचनाएँ शामिल हैं। एक ओर जहाँ प्रकृति की सुंदरता पर कवि मुग्ध होकर बार-बार इसी छत्तीसगढ़ में जन्म लेने की कामना करता है, वहीं दूसरी ओर विरूपित हो रही दुनिया के संताप को महसूस कर व्यथित भी होता है:
“बेच रहे देश को आसान किश्तों में,
ग्राहकों की कमी नहीं इस कारोबार में।
बिक जाएगा वतन देखते ही देखते,
ध्यान अगर गया नहीं वतन की पुकार में।”
विसंगतियों पर प्रहार करने का स्वराज्य करुण का यह अंदाज़ ध्यान आकृष्ट करता है:
“कैसे-कैसे मंज़र आए गांधी जी के देश में,
फूल नहीं अब खंजर आए गांधी जी के देश में।”
इस संग्रह में गीत, ग़ज़ल और नई कविताएँ एक साथ हैं। दिल की बात है, जिस ढंग से भी अभिव्यक्त हो, वह ग्राह्य है। स्वराज्य करुण हिन्दी, छत्तीसगढ़ी और ओड़िया — तीन भाषाओं के जानकार हैं। उन्होंने वर्ष 1985 में नृसिंहनाथ मंदिर पर केंद्रित निराकार महालिक की ओड़िया भाषा में लिखित पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया था। इसके पूर्व 1979में उनके कविता संग्रह इन्द्र धनुष के टुकड़े और वर्ष 2002में बाल गीतों के संग्रह हिलमिल सब करते हैं झिलमिल का प्रकाशन हो चुका है।। इस संग्रह में उनकी कई प्रसिद्ध बाल कविताएँ संग्रहीत हैं।
विद्यार्थी जीवन से ही निरंतर लेखनरत स्वराज्य करुण जब विभिन्न दायित्वों से जुड़कर वैचारिक लेखन करते हैं, तब भी पठनीयता बनाए रखते हैं। प्रस्तुत संग्रह ‘मेरे दिल की बात’ की कविताओं में उन्हें मुक्त उड़ान भरने का अवसर मिला है, जिसका उन्होंने खूब लाभ भी उठाया है। व्यवस्था से जन्मी विसंगतियों पर प्रतीकों में मर्यादित प्रहार करने का अवसर उन्होंने नहीं खोया है।
तमाम निराशा और हताशा से भरे दौर में भी वे आशान्वित हैं। वे बहुत बड़ी आशा नहीं करते — वे आम आदमी हैं, इसलिए केवल यही कामना करते हैं:
“न तरसे कोई दो वक़्त की थाली के लिए,
दुआ करें सबकी खुशहाली के लिए।”
कृति: मेरे दिल की बात
✍️ कवि: स्वराज्य करुण
📚 प्रकाशक: जी. नाइन पब्लिकेशन, रायपुर
📅 प्रकाशन वर्ष: 2011
💵 मूल्य: ₹50 मात्र